गंगटोक भाग – १

कड़ाके की धूप के कारण जब बेचैनी बढ़ने लगती है और लगातार पसीना बहने लगता है, तब इससे छुटकारा पाने के लिए हर किसी के मन में यह इच्छा तीव्रता से उत्पन्न होती है कि कुछ दिनों के लिए ही सही, लेकिन किसी ऊँचे पहाड़ पर या जहाँ बरफ से ढँके पर्वत हों, ऐसी किसी जगह की सैर करनी चाहिए। ऐसी गर्मियों में हम सब के पसन्दीदा हिमालय में बसे हुए किसी न किसी हिल स्टेशन पर हम जा सकते हैं। हमारे भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित और पूर्व से लेकर पश्चिम तक फैला हुआ यह हिमालय। हिमालय का इतना वर्णन करने का कारण यह है कि हम आज हिमालय में बसे एक अनूठे शहर की सैर करनेवाले हैं।

हिमालय में हर जगह की आबोहवा अलग अलग होती है। कुछ जगहों पर तपती धूप में भी बऱफ दिखायी देती है, वहीं कभी किसी जगह पर इस कड़ी गर्मी से छुटकारा देनेवाली सुखदायी ठण्डक का अनुभव होता है।

गंगटोकस्कूल में कई बार यह रटा था कि ‘सिक्कीम’ राज्य की राजधानी ‘गंगटोक’ है। कुछ सालों बाद नक़्शा देखने पर यह पता चला कि गंगटोक अर्थात् सिक्कीम भी हमारे भारत में पूर्व की तऱफ बसा हुआ है। हिमालय की पूर्वीय पर्वतश्रेणियों में लगभग ४,५०० से ५,००० फीट की ऊँचाई पर ‘गंगटोक’ बसा हुआ है। देखा जाये तो अपने देश के अन्य राज्यों की तुलना में सिक्कीम यह एक छोटासा राज्य है और इस राज्य की राजधानी होनेवाला ‘गंगटोक’ यहाँ का सबसे बड़ा शहर है।

देखिये, गर्मी के बारे में बातें करते करते हम अचानक गंगटोक पहुँच भी गये। आइए, सबसे पहले यह जानते हैं कि इस शहर में ऐसा क्या ख़ास है, जो हमें गर्मी से छुटकारा दिलाता है।

हिमालय की पूर्वीय पर्वतश्रेणियों में बसे हुए इस शहर में पूरे सालभर मन को सुकून देनेवाली आबोहवा होती है। इस शहर में से उसके इर्दगिर्द बसे हुए कई हिमाच्छादित शिखरों का दर्शन आसानी से होता है। पर्वत पर ही बसे होने के कारण सालभर हराभरा रहनेवाला घना जंगल, यह यहाँ की विशेषता है। बारिश के मौसम में होनेवाली धुँवाधार बारिश इस जंगल के लिए पोषक है। हालाँकि यहाँ पर विशेष रूप में बऱफबारी नहीं होती, लेकिन ग्लोबल वॉर्मिंग या अन्य किसी कारणवश, गत कुछ सालों में एक-दो बार इस शहर ने बऱफबारी का अनुभव किया है। संक्षेप में कहा जाये, तो यहाँ से दूर दूर तक दिखायी देनेवाले हिमाच्छादित शिखर, हरेभरे जंगलों की शीतलता और यहाँ की सुखदायी आबोहवा गर्मी को भगा देते हैं और हाँ, ठण्ड और बरसात के मौसम में यह घने कोहरे की चादर ओढ़कर अपनी ही धुन में रहता है।

ख़ैर! इस शहर की आबोहवा के बारे में इतना जानने के बाद अब हम गंगटोक और सिक्कीम के भूगोल के बारे में जान लेते हैं।

सिक्कीम में रेल और हवाई यातायात उपलब्ध नहीं हैं। इसका महत्त्वपूर्ण कारण है, इस राज्य का भौगोलिक स्थान। सिक्कीम में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए या भारत के किसी भी राज्य में से यहाँ आने के लिए रास्तों की सुविधा उपलब्ध है। गंगटोक जाने के लिए जलपायगुडी या बागडोगरा, ऐसे दो पर्याय उपलब्ध हैं। या तो जलपायगुडी तक रेल से स़फर कर फिर आगे आप गंगटोक तक रास्ते से जा सकते हैं; या फिर बागडोगरा तक हवाई जहा़ज से आकर फिर आगे गंगटोक तक हेलिकॉप्टर से जा सकते हैं। लेकिन इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस स़फर में यहाँ का मौसम अहम भूमिका निभाता है। बरसात के मौसम में, कभी-कभार धुँवाधार बारिश के कारण लॅण्डस्लाईड्स या जमीन का धसना ऐसी घटनाएँ होती हैं और हेलिकॉप्टर की आवाजाही भी मौसम की अनुकूलता पर निर्भर है।

इस शहर में कदम रखते ही दिखायी देते हैं, चारों ओर फैले हुए हिमाच्छादित शिखर और उसके साथ ही हराभरा घना जंगल।

सिक्कीम राज्य में चार जिलें हैं – पूर्व सिक्कीम, पश्‍चिमी सिक्कीम, उत्तरी सिक्कीम और दक्षिणी सिक्कीम। हर एक जिलें का अपना एक मुख्यालय है। इसलिए गंगटोक यह सिक्कीम राज्य की राजधानी होने के साथ साथ पूर्व सिक्कीम जिलें का मुख्यालय भी है।

‘गंगटोक’ इस शब्द के अर्थ के बारे में कई मतमतान्तर हैं। एक मत के अनुसार ‘गंगटोक’यानि कि पर्वत का माथा।

गंगटोक और सिक्कीम इनका शुरुआती इतिहास उपलब्ध नहीं होता। प्राप्त इतिहास से यह जानकारी मिलती है कि इसवी १३वी सदी में असाम की पहाड़ियों में से ‘लेपचा’ नामक लोग सिक्कीम में आकर बस गये। इसके बाद का सिक्कीम का इतिहास १७वी सदी के मध्य से प्राप्त होता है। तिब्बत और सिक्कीम भौगोलिक दृष्टि से बहुत ही क़रीब होने के कारण सिक्कीम के इतिहास में तिब्बत का अस्तित्व बार बार दिखायी देता है। बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए ल्हासा से लामा सिक्कीम आ गये और यहाँ पर शासन करने के लिए उन्होंने पहले राजा या ‘ग्यालपो’ को नियुक्त किया। ये सिक्कीम के राजा ‘नामग्याल’ इस उपनाम या बिरुद को धारण करते थे। यहाँ के पहले राजा थे, ‘पेनचू नामग्याल’। इस तरह सिक्कीम में राजा के होते हुए भी शासन था तिब्बत का ही। १८वी सदी के अन्त तक इन ‘नामग्याल’ राजाओं ने बिना किसी दिक्कत के शासन किया, लेकिन इसवी १७८० में पहली बार उन्हें नेपाल तथा भूतान से हुए आक्रमणों का सामना करना पड़ा। इसवी १७९३ में त्सुगफू  नामग्याल राजा के शासनकाल में चालाक़ अंग्रे़जों ने, नेपाल द्वारा हुए आक्रमण से सिक्कीम को बचाने की आड़ लेकर अपनी सेना के साथ सिक्कीम में कदम रखा। यहाँ से आगे अंग्रे़जों ने, ‘हम विदेशियों के आक्रमणों से सिक्कीम की रक्षा कर रहे हैं’ ऐसा रवैया अपनाया। सिक्कीम और अंग्रे़ज की मित्रता के रूप में सिक्कीम के राजा ने दार्जिलिंग की पहाड़ियाँ अंग्रे़जों को उपहारस्वरूप दे दीं। लेकिन चालाक़ अंग्रे़ज तो कुछ और ही चाहते थे। उन्होंने, सिक्कीम में से प्रवास करनेवाले अंग्रे़ज अधिकारियों के साथ बदसलूक़ी की गयी, इस बहाने से सिक्कीम का कुछ हिस्सा अपने राज्य के साथ जोड़ दिया। गंगटोक अब भी सिक्कीम की राजधानी नहीं था। सिक्कीम का कुछ हिस्सा इस प्रकार हथिया लेने के बाद एक सुलहनामे के द्वारा अंग्रे़जों ने सिक्कीम के राजकीय अस्तित्व को तो मान्यता दी, लेकिन उन्होंने सिक्कीम को अंग्रे़जों द्वारा संरक्षित इला़के का दर्जा दिया। इस घटनाक्रम के दौरान सिक्कीम में राजा का अस्तित्व तो था, लेकिन हुकूमत अंग्रे़जों की ही थी। इसी दौरान इसवी १८९४ में ‘थुटोब नामग्याल’ नामक राजा ने अपनी राजधानी तुमलाँग से गंगटोक में स्थलान्तरित की। उसके बाद फिर इस राजधानी के शहर में राजा की प्रतिष्ठा के लायक वास्तुओं का निर्माण किया गया। इसके बाद सिक्कीम के इतिहास में गंगटोक राजधानी के रूप में अस्तित्व में आ गया।

भारत को आ़जादी मिलने तक सिक्कीम में कई राजकीय गतिविधियाँ हुईं। लेकिन भारत के आ़जाद होने से अंग्रे़जों की सिक्कीम पर रहनेवाली हुकूमत समाप्त हो गयी। भारत की आ़जादी के बाद सिक्कीम के विदेश मन्त्रालय, यातायात मन्त्रालय और रक्षामन्त्रालय का जिम्मा भारत सरकार पर था। इसवी १९५० में एक सुलहनामे के द्वारा सिक्कीम की रक्षा की पूरी जिम्मेदारी भारत सरकार ने उठायी और अन्ततः इसवी १९७५ में ‘सिक्कीम’ अपनी गंगटोक इस राजधानी के साथ भारत के एक घटकराज्य के रूप में स्वतन्त्र भारत में शामिल हो गया।

दरअसल सिक्कीम के पूरे इतिहास में गंगटोक का इतना ही इतिहास प्राप्त होता है। गंगटोक यह बौद्धधर्म के अध्ययन का एक केन्द्र था और आज भी है। इसीलिए यहाँ पर पहली मॉनेस्ट्री का निर्माण होने के बाद ही इतिहास में इसका उल्लेख प्राप्त होता है।

यहाँ पर एक बात का उल्लेख करना आवश्यक है। १९ वी सदी के अन्त से लेकर २०वी सदी की शुरुआत तक अंग्रे़जों के शासनकाल में भारत का तिब्बत के साथ ‘नथूला’ और ‘जेलप्ला’ इन घाटियों में से व्यापार चलता था। हालाँकि गंगटोक यह इस व्यापारी मार्ग का एक प्रमुख शहर था, मग़र फिर भी इस व्यापार का इस शहर के विकास के लिए विशेष फायदा नहीं हुआ। फायदा हुआ तो वह इतना ही कि यहाँ पर अच्छी सड़कों का निर्माण किया गया।

ऐसे इस सुदूर पूर्व में बसे हुए गंगटोक शहर के इतिहास और भूगोल के बारे में तो हमने जान लिया। लेकिन अब यहाँ के जंगलों में हमें घूमना है, दूर से ही सही, लेकिन बरफ से ढँके पहाड़ों को देखना है, यहाँ की शुद्ध और ता़जी हवा को महसूस करना है और हाँ, यहाँ की खुशमिजा़ज कुदरत की तरह ही खुशमिजा़ज रहनेवाले लोगों से भी मिलना है। लेकिन उसके लिए थोड़ा इन्त़जार करना पड़ेगा!

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