अफ्रीका में फ्रान्स का हस्तक्षेप खत्म – फ्रान्स के राष्ट्राध्यक्ष मैक्रॉन का ऐलान

लिब्रविए – ‘अफ्रीकी देशों के कारोबार में हस्तक्षेप करने की पुरानी भूमिका की ओर फ्रान्स इसके आगे कभी भी नहीं बढ़ेगा। अफ्रीका में फ्रान्स का हस्तक्षेप अब खत्म हुआ हैं’, ऐसा फ्रान्स के राष्ट्राध्यक्ष इमैन्युएल मैक्रॉन ने घोषित किया। अफ्रीका के चार देशों का दौरा शुरू करने से पहले मैक्रॉन ने अफ्रीकी देशों से संबंधित नीति में बदलाव करके वहां पर तैनात सेना हटाने का ऐलान करके ध्यान आकर्षित किया था।

फ्रान्स का हस्तक्षेपराष्ट्राध्यक्ष मैक्रॉन के गैबॉन, अंगोला, डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो और कांगो इन चार अफ्रीकी देशों के दौरे की शुक्रवार से शुरूआत हुई। इससे पहले फ्रेंच राष्ट्राध्यक्ष ने अफ्रीकी देशों में फ्रान्स के होते रहे हस्तक्षेप का ज़िक्र किया। उपनिवेशवाद के बाद भी अफ्रीकी देशों पर फ्रान्स का बड़ा प्रभाव था। अफ्रीका में अपने हितसंबंध सुरक्षित करने के लिए फ्रान्स ने वहां पर तानाशाही हुकूमत को समर्थन प्रदान किया था। उपनिवेशवाद खत्म होकर इतने साल बीत जाने के बाद भी मानसिकता में कुछ भी बदलाव नहीं हुआ था, इन शब्दों में राष्ट्राध्यक्ष मैक्रॉन ने अपने ही देश की नीति की आलोचना की।

अफ्रीकी देशों में यह हस्तक्षेप खत्म करने के लिए पुरानी भूमिका की ओर कभी भी ना मुड़ने के लिए फ्रान्स अफ्रीका में अपना हस्तक्षेप खत्म कर रहा हैं, यह ऐलान राष्ट्राध्यक्ष मैक्रॉन ने किया। कुछ दिन पहले ही फ्रान्स के राष्ट्राध्यक्ष ने इन अफ्रीकी देशों में तैनात पूरी सेना हटाने का ऐलान किया था। फ्रान्स के अफ्रीका के जिबौती, गैबॉन, आइवरी कोस्ट, सेनेगल इन देशों में स्थायी सैन्य अड्डे मौजूद हैं। इसके अलावा ‘साहेल’ क्षेत्र के देशों में भी फ्रान्स ने सैन्य अड्डे स्थापीत किए थे। अफ्रीकी देशों में बढ़ रहा विरोध और फ्रान्स से हो रही आलोचना की पृष्ठभूमि पर फ्रेंच सेना को वहां से लौटना पड़ा था।

इसी बीच, अफ्रीकी महाद्वीप में फ्रान्स का विरोध बढ़ने के पीछे रशिया और प्रमुखता से चीन होने का दावा किया जाता है। जिबौती में फ्रान्स की अहमियत कम होने का लाभ चीन ने उठाया हैं और इस देश में चीन ने अपने सैन्य एवं नौसैनिक अड्डे भी बनाए हैं।

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