७१. भविष्य में इस्रायल की ‘पहचान’ बने प्रयोगः ‘किब्बुत्झ’

पॅलेस्टाईन प्रान्त में स्वतंत्र ‘ज्यू-राष्ट्र’ की स्थापना करने के लिए अंतिम संघर्ष की तैयारी चालू किये ज्यूधर्मियों ने, बतौर ‘एक समाज’ विकसित होने के लिए पहले से ही विभिन्न क्षेत्रों में गत कुछ वर्षों से कुछ उपक्रम भी शुरू किये थे।

उनमें से अहम थे ‘कम्युनिटी लिव्हिंग’ के प्रयोग – ‘किब्बुत्झ’ और ‘मोशेव्ह’!

‘सब ज्यूधर्मीय एकसमान – कोई छोटा नहीं, कोई बड़ा नहीं;

सारे उपलब्ध संसाधनों पर सभी ज्यूधर्मियों का समान रूप में अधिकार;

ज्यूधर्मियों की किसी भी ज़रूरत की आपूर्ति बाहर की दुनिया (ज्यूधर्मियों के अलावा अन्य लोग) पर निर्भर न हों’

ऐसे प्रकार का जो आदर्श समाज झायॉनिझम के प्रणेता पॅलेस्टाईन प्रान्त में ज्यूधर्मियों के लिए निर्माण करना चाहते थे, उसका मानो प्रतीक ही ये किब्बुत्झ और मोशेव्ह थे।

सन १९१० में गॅलिली के सागर की दक्षिण की ओर अस्तित्व में आया पहला किब्बुत्झ – देगानिया अलेफ और उसकी सन २०१० में खींची गयी तस्वीर

इस्रायल की भौगोलिक संरचना

पहला किब्बुत्झ सन १९१० में ही अस्तित्व में आया था। ‘देगानिया अलेफ’ नामक इस किब्बुत्झ की स्थापना करते समय तत्कालीन ज्यूधर्मियों की आँखों के सामने ‘सहकारी तत्त्व पर ख़ेती’ यही संकल्पना थी। समाजवादी तथा झायॉनिस्ट संकल्पनाओं का आदर्शवादी मेल इस किब्बुत्झ में बिठाने का विचार उसके पीछे था।

मूलतः इस संकल्पना के बारे में सोचा गया, वह ज़रूरत के कारण ही। क्योंकि सन १९१० के समय पॅलेस्टाईन प्रान्त की भौगोलिक परिस्थिति बहुत ही कठिन थी। गॅलिली के पास की आर्द्रभूमि, पथरीले ज्युडियन टीलें और दक्षिणी रेगिस्तानी प्रदेश ऐसे विभिन्न ज़मीनप्रकारों में साधारणतः यह प्रान्त बट गया था। पॅलेस्टाईन में स्थलांतरित हो रहे ज्यूधर्मियों की लगन हालाँकि अपरंपार थी, इस प्रकार की ज़मीनों में, उपलब्ध अपर्याप्त संसाधनों के आधार पर, हर किसी द्वारा स्वतन्त्र रूप में खेती करना व्यवहार्य नहीं था। कइयों के पास ख़ेती का अनुभव भी नहीं था। और तो और, सर्वत्र मलेरिया, कॉलरा जैसी बीमारियों का प्रादुर्भाव था ही। उसीके साथ, घरों में घुसकर लूटपाट करना यही व्यवसाय होनेवाले कुछ स्थानिक अरबी टोलियों का भी ख़तरा था। मुख्य बात, ज्यूधर्मियों का इस तरह पॅलेस्टाईन प्रान्त में स्थलांतरित होना, यह स्थानिक अरबों को चुभनेवाला मुद्दा होने के कारण, अरबों से कुछ सहयोग मिलने की उम्मीद रखने में कोई मतलब नहीं था।

तब तक जो उद्योग-व्यवसाय पॅलेस्टाईन प्रान्त में, उससे पहले आये ज्यूधर्मियों ने शुरू किये थे, उनमें – ‘व्यवसाय ज्यूधर्मियों के, लेकिन उनमें काम करनेवाले कर्मचारी स्थानिक अरब’ ऐसा एक समीकरण तैयार हो चुका था। लेकिन अरबों का ज्यूधर्मियों को होनेवाला बढ़ता विरोध ध्यान में लेते हुए, यह समीकरण इन नये से आनेवाले (‘तीसरी आलिया’ के) ज्यूधर्मियों को उतना पसन्द नहीं था। ‘हमारीं ज़मीनों में कष्ट भी हम ही करेंगे, उसके लिए अरब मज़दूरों की क्या ज़रूरत है? ‘मालक-नौकर’ यह ‘पूँजीवादी’ प्रकार ही नहीं चाहिए’ यह कल्पना उनके मन में तैयार हो रही थी।

जेरुसलेमस्थित ‘ज्युइश नॅशनल फंड’ का ऑफिस

उसीके साथ, जिस तरह पहले दो ‘आलियाओं’ में से पॅलेस्टाईन में स्थलांतरित हुए ज्यूधर्मियों को ख़ेती का कुछ भी अनुभव नहीं था, वैसी परिस्थिति अब इस ‘तीसरी आलिया’ के ज़रिये स्थलांतरित हुए ज्यूधर्मियों की नहीं थी। इस आलिया में सोव्हिएत क्रांति को नज़दीक से देखे, रशिया की ख़ेती का अनुभव होनेवाले रशियन ज्यूधर्मीय थे।

साथ ही, जबसे यह समस्या ज्ञात हुई तबसे, पॅलेस्टाईन में स्थलांतरित होना चाहनेवाले दुनियाभर के ज्यूधर्मियों के लिए, पॅलेस्टाईन के लिए निकलने से पहले कुछ समय ख़ेती का प्रशिक्षण आयोजित किया जाने लगा था। इस कारण, अब रशिया के अलावा अन्य स्थानों से आनेवाले लोगों के पास भी ख़ेती के काम करने का थोड़ाबहुत अनुभव था। उसीके साथ, पॅलेस्टाईन प्रान्त में ये ज़मीनें ख़रीदने के लिए दुनियाभर के ज्यूधर्मियों द्वारा ‘ज्युइश नॅशनल फंड’ के ज़रिये यथाशक्ति आर्थिक सहायता शुरू हुई थी।

इन सारी बातों के परिणामस्वरूप, पहले किब्बुत्झ की स्थापना हुई थी। शुरू शुरू में केवल १२ ज्यूधर्मीय सदस्यों ने इकट्ठा होकर इस पहले किब्बुत्झ की स्थापना की थी। किसी भी मामले के फैसलें ये सबकी अनुमति से ही होते थे।

साधारणतः निम्नलिखित आशय की यह संकल्पना थी –

किब्बुत्झ सदस्यों के बच्चों के लिए किब्बुत्झ में इस तरह डे-केयर चलाये जाते थे।

‘उस किब्बुत्झ में होनेवाली ज़मीन यह समान रूप में उन किब्बुत्झ के सभी सदस्यों के मालिक़ियत की होगी; ख़ेती के औज़ार-जानवर-बीज-खाद-पानी आदि संसाधनों का सारी ज़मीन पर समान रूप से उपयोग किया जायेगा; ख़ेती के लिए बाहर से कोई मज़दूरों को काम पर नहीं रखा जायेगा, बल्कि सारे सदस्य ही सारे ख़ेत में श्रमदान करेंगे; सदस्यों के परिवारवाले भी जितना हो सकें उतना श्रमदान करेंगे; सदस्यों के छोटे बच्चों को दिन भर एकत्रित रूप में एक जगह सँभालने की सुविधा सदस्यों के घरों की स्त्री-सदस्या एक के बाद एक प्रदान करेंगी;

साथ ही, बच्चों को व्यवहार-उपयोगी शिक्षा देने की सुविधा किब्बुत्झ में ही प्रदान की जायेगी; किब्बुत्झ में बच्चों के लिए बाक़ायदा स्कूलों का भी प्रबंध किया जायेगा; जो अनाज उगेगा, उसपर सारे सदस्यों का समान रूप में अधिकार होगा; सारे सदस्यों की ज़रूरत पूरी हो जाने के बाद जो अनाज आदि बचेगा, उसे बेच सकते हैं और उसमें से नित्य-उपयोगी, गृह-उपयोगी चीज़ें सारे सदस्यों के लिए थोक (होलसेल) तरीके से ख़रीदी जायेंगी और किब्बुत्झ में होनेवाले स्टोअर को ज़रिये सदस्यों तक पहुँचायीं जायेंगी; किब्बुत्झ के सभी सदस्यों के लिए रसोईघर सामायिक होगा, जिसमें सभी के लिए एकसाथ ही खाना पक़ाया जायेगा और वह खाना सारे सदस्य अपने परिजनों के साथ एक बड़े डायनिंगहॉल में बैठकर खायेंगे; यहाँ तक कि सदस्यों के लिए मनोरंजन का प्रबन्ध भी किब्बुत्झ में ही किया जायेगा – विभिन्न कलाओं के क्लासेस आदि चलाकर, कार्यक्रम आयोजित कर।’

कई किब्बुत्झ में से सदस्यों के कुछ बच्चों को चुनकर उन्हें किब्बुत्झ के खर्चे से वैद्यकीय शिक्षा अर्जित करने के लिए भी भेजा गया, ताकि वे वैद्यक सीखकर किब्बुत्झ के सदस्यों को वैद्यकीय सुविधाएँ प्रदान कर सकेंगे।

शुरुआती दौर में पॅलेस्टाईन में स्थलांतरित होनेवाले ज्यूधर्मियों के पास पैसे ही न होने के कारण उन्हें किब्बुत्झ में रहने के सिवाय और कोई चारा भी नहीं था। इस कारण, उस दौर में किब्बुत्झ की संख्या पॅलेस्टाईन प्रान्त भर में तेज़ी से बढ़ गयी। उनमें बिलकुल छोटी छोटी बातों में भी समय के अनुसार बदलाव किये गये। जैसे कि – हर हफ़्ते विभिन्न फैसलें करने के लिए होनेवाली सदस्यों की सभा डायनिंग हॉल में बुलायी जाती थी, वह धीरे धीरे सदस्यों की अनुमति से खुले मैदान मेें, कँपफायर के साथ वगैरा होने लगी, उसीके साथ मनोरंजन के कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये जाने लगे। यानी अपने रोज़मर्रा के रूक्ष जीवन में ऐसे कुछ थोड़ेबहुत रंजक बदलाव लाकर जीवन से नीरसता को हटाने की सदस्यों की कोशिशें रहती थीं।

लेकिन ‘किब्बुत्झ’ यह आदर्शवादी संकल्पना थी। लेकिन यह संकल्पना हमेशा ही प्रत्यक्ष रूप में सफल हुई ऐसा नहीं था।(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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