७४. ‘पॅलेस्टाईन जानेवाले ज्यूधर्मियों के लिए आरक्षित….’

द्वितीय विश्‍वयुद्धकाल में पॅलेस्टाईनस्थित ब्रिटिशों की नीति – ज्यूधर्मियों के प्रति स़ख्त और अरबों का अनुनय करनेवाली ही रही। पूरे युरोप में, ख़ासकर जर्मनी में ज्यूधर्मियों के अस्तित्व की समस्या खड़ी रही होने के बावजूद भी, ज्यूधर्मियों के पॅलेस्टाईन में स्थलांतरित होने पर अधिक से अधिक स़ख्त निर्बंध लगाये जाने लगे।

लेकिन इस कारण मायूस न होते हुए पॅलेस्टाईनस्थित ज्यूधर्मियों ने उसमें से अपने हिसाब से रास्ता निकाला था और किसी न किसी मार्ग से वे दुनियाभर के ज्यूधर्मियों को ‘बिनापरवाना’ पॅलेस्टाईन में घुसाये जा रहे थे।

‘बिनापरवाना’ पॅलेस्टाईन में आने की कोशिश करनेवाले ज्यूधर्मियों को तत्कालीन ब्रिटीश उपनिवेश मॉरिशस में ले जाकर छोड़ने के लिए तैयार खड़े ‘पॅट्रिया’ जहाज़ को हॅगाना ने ब्रिटिशों के दिल में ख़ौफ़ पैदा करने के लिए विस्फोटकों की सहायता से जलसमाधि दे दी।

यह ‘बिनापरवाना’ स्थलांतरण अधिकांश समय समुद्रीमार्ग से होता था। ऐसे ही दो जहाज़ – ‘मिलॉस’ और ‘पॅसिफिक’ कुल १७७१ ‘विनापरवाना’ ज्यूधर्मीय स्थलांतरितों को लेकर पॅलेस्टाईन प्रान्त के हैफा बंदरगाह की ओर आते समय ब्रिटीश नौसेना ने रोके और उन्हें पॅलेस्टाईन प्रान्त में प्रवेश करने से मना कर दिया। इस प्रकार समुद्री मार्ग से पॅलेस्टाईन बिनापरवाना आने की कोशिश करनेवाले ज्यूधर्मियों को, तत्कालीन ब्रिटीश उपनिवेश होनेवाले मॉरिशस में ले जाकर छोड़ने का ब्रिटिशों का निर्णय हुआ था और उसके लिए ‘पॅट्रिया’ नामक एक बड़े जहाज़ का प्रबंध भी करा दिया गया था। इन दो जहाज़ों पर के स्थलांतरितों को पॅट्रिया में ले जाने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद, वहाँ पर ऐसा ही १७८३ ‘बिनापरवाना’ ज्यूधर्मियों से भरा और एक ‘अ‍ॅटलांटिक’ नामक जहाज़ ब्रिटीश नौसेना ने रोककर वहाँ लाया। उसमें के स्थलांतरितों को भी पॅट्रिया में ले जाया जानेवाला था।

ज्युइश सेल्फ डिफेन्स युनिट ‘हॅगाना’ के सदस्य यह सब देखकर बेचैन हो रहे थे। यह इस तरह ज्यूधर्मियों के देशनिकाले को किस तरह रोका जा सकता है इस बारे में उनमें विचारविनिमय शुरू था और उसमें स़ख्त मार्ग का अवलंबन करने का निर्णय किया गया। पॅट्रिया जहाज़ पर गुप्त रूप से विस्फोटक रखकर उनका विस्फोट कराया गया। लेकिन जहाज़ का बहुत बड़ा नुकसान करने का ईरादा नहीं था। बल्कि, यह सब इसीलिए किया गया था, ताकि तुरन्त अपनी यात्रा शुरू करना जहाज़ के लिए संभव न हों और ब्रिटिशों के दिल में ख़ौफ़ पैदा हों; लेकिन हुआ उल्टा ही। हॅगाना का अँदाज़ा ग़लत हुआ और उम्मीद से बड़ा विस्फोट होकर उसमें पॅट्रिया का बहुत नुकसान हुआ और उसे चन्द १५ मिनटों में जलसमाधि प्राप्त हुई। उसपर होनेवाले लगभग २५० ज्यूधर्मियों की इस दुर्घटना में मौत हो गयी।

इटली जर्मनी के पक्ष में विश्‍वयुद्ध में कुदने के कुछ ही समय में तेल अवीव व हैफा शहरों पर भी बमवर्षाव किया गया, जिसमें हैफा स्थित बंदरगाह का और रिफायनरी का नुकसान हुआ।

इस घटना से ब्रिटीश प्रशासन में खलबली मच गयी और उन तीनों जहाज़ों पर शेष बचे ज्यू स्थलांतरितों को क़िनारे पर लाया गया। ‘अटलांटिक’ जहाज से आनेवालों को मॉरिशस भेजा जानेवाला था, लेकिन पॅट्रिया दुर्घटना से बचे लोगों को अस्थायी रूप में पॅलेस्टाईन प्रान्त में रहने की अनुमति दी गयी थी। लेकिन इस घटना के कारण कुछ समय तक ज्युईश स्थलांतरण पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगायी गयी। ‘अपनी कई पीढ़ियों को मृत्यु के बाद पॅलेस्टाईन में जिन्होंने दफ़न किया है, वे अरब ज्यूधर्मियों के स्थलांतरण की परेशानी भला कहाँ तक सहेंगे’ ऐसा दांभिक सवाल इसके लिए ब्रिटिशों द्वारा इस निर्णय के समर्थनार्थ पूछा जा रहा था। ‘लेकिन मूलतः अरब पॅलेस्टाईन प्रान्त में आये वे बतौर ‘आक्रमक’ ही; और यहाँ पर बहुत पहले से बसनेवाले ज्यूधर्मियों को उन्होंने वहाँ से निकाल बाहर कर दिया और इस प्रान्त पर कब्ज़ा कर लिया, इस ‘इतिहास’ को ब्रिटिशों द्वारा सहूलियतपूर्वक भुलाया जा रहा है’ इस आशय की दलीलें पेश करते हुए – ‘इस दुनिया में पॅलेस्टाईन ही ऐसी एक जगह है, जहाँ दुनिया भर के बेघर हुए, दुनिया से परेशानी झेल रहे ज्यूधर्मियों को सहारा मिल सकता है’ ऐसा दावा वाईझमन आदि ज्यूधर्मीय नेता कर रहे थे।

ज्यूधर्मियों के स्थलांतरण पर अब हालाँकि पूर्ण रूप से पाबंदी डाली गयी थी, मग़र फिर भी किसी न किसी मार्ग से पॅलेस्टाईन तक पहुँच सके ज्यूधर्मियों के लिए विभिन्न किब्बुत्झ का निर्माण करने का काम ज्युईश एजन्सी अनुरोधपूर्वक कर ही रही थी; और वह भी पॅलेस्टाईन प्रान्त के नये नये, अब तक वीरान पड़े भागों में। ज्यूधर्मीय बसे हुए प्रदेशों की व्याप्ति बढ़ती रहें, यह इसके पीछे का उद्देश्य था। किसी किब्बुत्झ में बसे ज्यूधर्मियों की विशेषताओं से और उनके उद्योग-व्यवसायों से वह किब्बुत्झ उस उस बात के लिए मशहूर होता था – कहीं कोई किब्बुत्झ खेती के प्रयोगों के लिए, तो कही कोई किसी विशिष्ट पेड़ों की खेती के लिए, कभी कोई मच्छिमारी के लिए, तो कोई बतौर धार्मिक केंद्र।

अब युरोप को व्याप्त कर चुका विश्‍वयुद्ध युरोप की सीमाओं को लांघकर युरोप के बाहर की दुनिया को भी अपने भीतर खींच रहा था। ख़ासकर इटली जर्मनी के पक्ष में विश्‍वयुद्ध में कूदने के कुछ समय बाद तो पॅलेस्टाईन प्रान्त की दहलीज़ तक युद्ध आ पहुँचा – तेल अवीव शहर पर इटालियन विमानों से बमहमले किये गए, जिनमें १३७ ज्यूधर्मियों को अपनी जानें गँवानी पड़ीं थीं। तेल अवीव के साथ ही हैफा शहर पर भी बमों की बौछार की गयी, जिसमें वहाँ के बंदरगाह का और रिफायनरी का नुकसान हुआ।

जर्मन सेनापति रोमेल

उसीके साथ, जर्मन सेनापति रोमेल के नेतृत्व में अफ्रिका महाद्वीप को पादाक्रांत करने चलीं जर्मन फ़ौज़ें एक के बाद एक अफ्रिकी प्रदेशों को अपने कब्ज़े में करते हुए सुएझ नहर और पॅलेस्टाईन की दिशा में आ रहीं होने की ख़बर भी आयी थी। दोस्तराष्ट्रों के मध्यपूर्वस्थित उपनिवेशों पर कब्ज़ा करना, यह तो जर्मन फ़ौज़ों का लक्ष्य था ही; लेकिन उसीके साथ ज्यूधर्मियों का नैहर माना जानेवाला पॅलेस्टाईन प्रान्त यह तो इन जर्मन फ़ौज़ों का ‘विशेष लक्ष्य’ था। जर्मनी में जो ज्यूविद्वेष जारी होता, उसका पॅलेस्टाईन प्रान्त तक विस्तार करने का जर्मनों का ईरादा था; लेकिन सौभाग्यवश वह बारी नहीं आयी और इन जर्मन फ़ौज़ों को दोस्तराष्ट्रों की फ़ौज़ों ने बीच में ही रोककर उन्हें परास्त कर दिया। इस कारण ज्यूधर्मियों पर मँड़रा रहा यह संकट टल गया था। लेकिन यह ख़ौफ़ की टँगी तलवार दूर होने के लिए लगभग २०० दिनों को (‘२०० डेज् ऑफ ड्रेड’) गुज़रना पड़ा था।

लेकिन अब दिन पलटनेवाले थे….

पॅलेस्टाईन प्रान्त में ज्यूधर्मियों के स्थलांतरण पर जो पाबंदी थी, वह उठी चर्चिल के विश्‍वयुद्धकाल में ब्रिटन के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही! सन १९४३ से तो ‘कोटा पद्धति’ भी ख़ारिज़ कर दी गयी। इतना ही नहीं, बल्कि दुनिया के किसी भी कोने से कोई भी ज्यूधर्मीय यदि अपने बलबूते पर तुर्की तक आ पहुँचा, तो उसे बिनाशर्त पॅलेस्टाईनप्रवेश का परवानापत्र प्रदान करने के आदेश भी ब्रिटीश सरकार से अंकारास्थित अपने दूतावास को अधिकृत रूप में दिये गये थे।

ब्रिटीश सरकार की इस नयी नीति का लाभ उठाकर, ‘मिल्का’ यह पहला जहाज़ ब्युकोविना प्रदेश से (हाल के रोमानिया और युक्रेन में विभाजित हुआ प्रदेश) लगभग २४० ज्यूधर्मियों को लेकर तुर्की के बंदरगाह पहुँचा। वहाँ से उनका अगला प्रवास रेल्वे से होनेवाला था। उनके स्वागत के लिए, इस्तंबूलस्थित ‘हैदरपाशा’ रेल्वेस्टेशन में खड़ी रेलगाड़ी के चार बोग़ियों पर शान से बोर्ड़ झलक रहा था –
‘पॅलेस्टाईन जानेवाले ज्यूधर्मियों के लिए आरक्षित’!(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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