पॉल ब्रोका (१८२४-१८८०)

‘क्यों, लगता है ‘टॉक टाईम’ फ्री मिलता है!’ यह कहकर घंटों देर तक केवल फोन एवं मोबाईल पर बातें करनेवालों को मस्ती-मजाक में ही टोक दिया जाता है। मानवी अस्तित्व में अपनी भावनाओं को व्यक्त करना है, क्या और कैसे बात करनी है यह निश्‍चित करनेवाला, मुख से बाहर निकलनेवाले शब्दों पर लगाम कसने वाला एक केन्द्र हमारे मस्तिष्क में होता है, उसे speech centre कहते हैं।

पॉल ब्रोकामस्तिष्क में यदि चोट लग जाती है, रक्त की गुठली बन जाती है अथवा रक्तस्राव होता है तो इस केन्द्र के काम में बाधा आ जाती है। मनुष्य को बुलवाने का काम मस्तिष्क में होने वाला एक केन्द्र करता है और इस केन्द्र के खोजकर्ता हैं ‘पॉल ब्रोका’।

२९ जून, १८२४ के दिन फ्रान्स के सँत-फुआ-लग्रँड नामक गाँव में पॉल ब्रोका का जन्म हुआ। कर्तव्यदक्ष साहसी पिता एवं सुसंस्कृत बुद्धिमान माँ की छत्रछाया में उनकी परवरिश हुई। इसी कारण जीवन में योग्य, न्याय्य एवं नीतिमत्ता के आधार पर ही आचरण करने का पाठ वे बचपन से ही पढ़ते चले आ रहे थे। एक विलक्षण बुद्धिमान छात्र के रूप में वे लोगों में जाने-पहचाने जाते थे। उन्होंने अपनी उम्र के चौबीसवे वर्ष में वैद्यकीय शिक्षा को अनगिनत पुरस्कार, पारितोषिक एवं सम्मानों के साथ पूरा किया। १८४८ में पॉल ने ‘यूनिव्हर्सिटी ऑफ पॅरिस’ का सबसे अधिक युवा प्राध्यापक बनने की महिमा रच डाली। अपनी संतान के पंख में होनेवाली आकाश में उड़ान भरने की असीम ताकत का अंदाज़ा लगाते हुए अपनी व्यक्तिगत अपेक्षाओं को माता-पिता ने अपने बच्चे के सिर पर नहीं ड़ाला।

पॉल ब्रोकाकूर्चा एवं हड्डियों की रचना से संबंधित संशोधन पॉल ने आरंभिक काल में किया। परन्तु इसके पश्‍चात् कॅन्सर के संदर्भ में मूलभूत संशोधन उन्होंने शुरू कर दिया। मस्तिष्क के विच्छेदन में उन्होंने महारत हासिल की थी। मस्तिष्क में संदेशवहन करनेवाली यन्त्रणा से संबंधित अधिक अध्ययन करने के लिए वे कार्यरत रहे। मस्तिष्क के विशिष्ट हिस्सों की कार्यप्रणाली निश्‍चित करने के अनुसन्धान के कारण पॉल ब्रोका का नाम अमर बन गया।

मस्तिष्क काम न कर सकनेवाले अनेक रुग्ण वॉर्ड में हुआ करते थे। सिर पर आनेवाली चोट के कारण, मस्तिष्क में होनेवाले रक्तस्त्राव के कारण बेहोशी की अवस्था में उनका शरीर लूला पड़ जाता था। इन सभी से संबंधित अध्ययन पॉल ने बड़ी ही बारिकी से किया। एक परिषद में एक विशेषज्ञ ने आवेश में आकर कह दिया कि ‘मनुष्य के मस्तिष्क के सामनेवाले संपूर्ण हिस्से को बगैर चोट पहुँचे अगर उसकी वाचा चली गई हो, यदि ऐसी एक भी केस मिल गई तो मैं अपना सिद्धांत छोड़ दूँगा।’ इन विशेषज्ञों को इस बात की पूरी जानकारी थी कि भाषा की निर्मिति मानवीय मस्तिष्क के अग्रीम हिस्से से होती है। एक विशिष्ट केन्द्र का कार्य उनके सिद्धांत में नहीं बैठता था। पॉल ब्रोका ने तुरंत ही उनकी इस चुनौती का स्वीकार कर लिया और उसका वहन भी किया। दो-तीन दिनों के पश्‍चात् पॉल के वॉर्ड में ५१ वर्ष के एमलेबॉर्ग नामक रूग्ण को भर्ती किया गया। उनकी वाचा भी चली गयी थी और साथ ही उसके आधे अंग में लकवा मार गया था। बिलकुल तीस वर्षों से वह रूग्ण असहाय अवस्था में ही पड़ा था। ‘टॅन’ बस इस एक ही शब्द का उच्चार वह कर सकता था और इसीलिए उनका नाम भी ‘टॅन’ पड़ गया था। भावमुद्रा के आधार पर ही वह बात करने की कोशिश करता था। उसकी वाचा मात्र हमेशा के लिए बैठ चुकी थी। इस रूग्ण का एक सप्ताह में ही निधन हो गया। नियति ने मानों जान बूझकर ही उसे पॉल के पास भेजा था। पॉल ने इस मरीज की मृत्यु के बाद उसके मस्तिष्क का विच्छेदन किया, मस्तिष्क के बाँयीं ओर के अर्ध गोले के आगे वाले हिस्से के तीसरे मोड़ के एक केन्द्र की ओर निर्देश किया। ‘टॅन’ को उस बिंदू के पास ही मस्तिष्क की एक पुरानी बीमारी का (CRONIC STAGE) का पता चल गया। पॉल ने अपना सिद्धांत इस प्रकार प्रस्तुत किया कि यह एक विशेष बिंदू ही वाचा के प्रकटीकरण (localization of speech) का कारण है। मस्तिष्क का बाँया हिस्सा वाचा के लिए कारण बनता है। यह सिद्धांत भी पॉल ने ही प्रस्तुत किया। इस संबंध में काफी वाद-विवाद हुआ, गड़बड़ी मच गई। पॉल का सिद्धांत यह सूक्ष्मदर्शक के अन्तर्गत कोशिकाओं के अध्ययन के पश्‍चात् ही प्रकट हुआ था। मस्तिष्क के इस क्षेत्र को ‘ब्रोकाज एरीय’ (Broca’s area) के नाम से जाना जाता है। ‘टॅन’ नामक इस मरीज़ का मस्तिष्क पॅरिस के म्युजियम में आज भी जतन करके रखा गया है।

मानवीय मस्तिष्क के साथ मानव की मानसिक एवं बौद्धिक क्षमता एवं बुद्धिमत्ता के अध्ययन में पॉल को विशेष रुचि थी। क्रॅनिअल अँथ्रोपोमेट्री (cranial anthropometry) का पॉल ने अधिक विकास किया। उत्खनन की गयी कब्रों आदि में से भी मानवों की खोपड़ियों का भी उन्होंने अध्ययन किया। मानवीय खोपड़ियों का विभिन्न प्रकार से मापन करने की पद्धति को रूढ़ करके इसकी खातिर कुछ मापक यंत्रों की निर्मिति भी की। मानववंशशास्त्र का अध्ययन कुछ रूढिवादियों को मंजूर नहीं था, परन्तु योग्य एवं न्यायसंगत बातों के प्रति कटिबद्ध रहकर, विरोध को दुर्लक्षित करके अपने मत को साबित करने में सफल हुए। १८४८ में स्वतंत्र विचार करनेवाले उदारवादी संगठन की स्थापना उन्होंने की। उनके ऊपर पुलीस का पहरा भी रखा गया, परन्तु उन्होंने इन विरोधों के बावजूद भी हार नहीं मानी।

मस्तिष्क में होनेवाली रक्तवाहिनियों के विकार पर (Aneurysm) ९०० पन्नों की किताब, अन्य १०० पुस्तकों के साथ १८८० तक उनके द्वारा लिखे गए २२३ शोध निबंध प्रकाशित हुए। समाज में रहनेवाले गरीबों के आरोग्य हेतु वे प्रयत्नशील रहे। अजातशत्रु यह विशेषण रखनेवाले पॉल के लिए मस्तिष्क में होनेवाली रक्तवाहनियों की बीमारी यह एकमात्र शत्रु थी। इसी बीमारी के कारण सन १८८० में वे इस दुनिया को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर चले गए। पॅरिस के एक रास्ते को ब्रोका का नाम दिया गया है। इसके साथ ही उनका पुतला भी वहाँ पर उभारा गया है। इसके साथ ही पॅरिस के म्युझियम में ब्रोका मस्तिष्क जतन करके रखा गया है। पाठकों को सोचने पर मजबूर कर देनेवाले पॉल का विज्ञान से भी परे होनेवाला एक विधान इस प्रकार है – ‘I would rather be transformed ape than a degenerate son of Adam.’

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