‘मक्की’ संबंधित चीन ने किया निर्णय पर्याप्त नहीं – भारत के पूर्व राजनीतिक अधिकारी का दावा

नई दिल्ली – पाकिस्तान जैसे देश के लिए आतंकवादियों का बचाव करके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी किस हद तक घेराबंदी करवानी है, इसपर चीन को सोचना आवश्यक ही था। इसी कारण से चीन ने ‘लश्कर ए तोयबा’ का नेता अब्दुल रेहमान मक्की पर सुरक्षा परिषद की कार्रवाई को ना रोकने का निर्णय किया। चीन का यह निर्णय स्वागतार्ह हैं, फिर भी भारत को चीन से इससे भी अधिक उम्मीदें हैं। एलएसी पर जारी तनाव कम करने के लिए चीन कदम उठाएं और भारत की संप्रभुता एवं अखंड़ता का हम सम्मान करते हैं, यह दिखाए, ऐसा बयान भारत के पूर्व राजनीतिक अधिकारी सय्यद अकबरुद्दीन ने किया है।

‘मक्की’साल २०२० के जून महीने से चीन ने कुल तीन बार पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों पर कार्रवाई करने की सुरक्षा परिषद की कोशिशों को रोक दिया था। इनमें मक्की के साथ अब्दुल रौफ अझहर और साजिद मीर जैसे आतंकियों का समावेश था। पाकिस्तान के दहशतगर्दों का बचाव करने वाले देश के तौर पर चीन की पहचान बन रही थी। खास तौर पर भारत ने राजनीतिक स्तर पर आक्रामक अभियान चलाकर आतंकवादियों के प्रायोजक देशों के साथ ही उनका बचाव कर रहे देश भी आतंकवाद के लिए उतने ही ज़िम्मेदार होने के जोरदार आरोप लगाना शुरू किया था। साथ ही अंतरराष्ट्रीय परिषद का आयोजन करके भारत ने अपनी यह भूमिका सभी देशों के सामने बड़ी आक्रामकता से रखी ती। इसका दबाव चीन पर बना और चीन ने मक्की पर सुरक्षा परिषद की कार्रवाई करने की कोशिशों में लगाया ‘टेक्निकल होल्ड’ हटाया है, ऐसी चर्चा शुरू हुई हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ में भारत के पूर्व राजदूत सय्यद अकबरुद्दीन ने भी ऐसे ही संकेत दिए हैं।

पाकिस्तानी आतंकवादियों का बचाव करने पर वैश्विक स्तर पर अपनी घेराबंदी हो सकती हैं, यह अहसास होने पर चीन ने मक्की से जुड़ा यह निर्णय किया, ऐसा अकबरुद्दीन ने कहा है। लेकिन, यह एक निर्णय पर्याप्त नहीं हैं। इसका भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों पर ज्यादा सकारात्मक परिणाम होने की संभावना नहीं। इसके लिए चीन ने इसके आगे जाने वाले निर्णय करने होंगे। ‘एलएसी’ पर बना तनाव कम करने के लिए चीन ने उचित कदम उठाने की आवश्यकता है। क्यों कि, साल २०२० में हुए गलवान घाटी के संघर्ष के बाद भारत-चीन के द्विपक्षीय संबंध भारी मात्रा में बाधित हुए हैं, इसका अहसास अकबरुद्दीन ने कराया।

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