जर्मन प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कंपनी पर कब्ज़ा करने की चीन की कोशिश विफल की गई

बर्लिन/बीजिंग – जर्मनी के प्रौद्योगिकी क्षेत्र की शीर्ष कंपनी के तौर पर जानी जा रही ‘आयएमएसटी’ पर कब्ज़ा करने की चीन की कोशिश नाकाम की गई है। जर्मन सरकार ने इस कंपनी और उसकी तकनीक राष्ट्रीय सुरक्षा के नज़रिये से काफी संवेदनशील होने का दावा करके चीनी कंपनी का प्रस्ताव ठुकराया है। बीते तीन वर्षों में जर्मनी ने चीनी कंपनी से इन्कार करने का यह चौथा अवसर है। इससे पहले ‘लेफेल्ड’, ‘५० हर्ट्ज’ और ‘पीपीएम प्युअर मेटल्स’ कंपनी पर कब्ज़ा करने के लिए चीन ने पेश किया गया प्रस्ताव ठुकराया गया था।

china-germany‘आयएमएसटी’ कंपनी राड़ार और सैटलाईट तकनीक क्षेत्र की शीर्ष कंपनी के तौर पर पहचानी जाती है। यह कंपनी मोबाईल तकनीक क्षेत्र में भी सक्रिय है और ‘५ जी’ एवं ‘६ जी’ तकनीक से संबंधित अहम भूमिका निभा रही है, ऐसा भी कहा जा रहा है। जर्मनी के अलावा यूरोपिय महासंघ के प्रौद्योगिकी अनुसंधान के संबंधित कुछ प्रकल्पों में भी ‘आयएमएसटी’ कंपनी शामिल है।

चीन के रक्षा एवं अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित ‘चायना एरोस्पेस ऐण्ड इंडस्ट्री ग्रुप’ (कॅसिक) कंपनी ने ‘आयएमएसटी’ पर कब्ज़ा करने के लिए गतिविधियां शुरू की थीं। इससे संबंधित प्रस्ताव भी जर्मन सरकार के सामने रखा गया था। ‘कॅसिक’ चीन की सरकारी कंपनी है और मिसाइल निर्माण क्षेत्र में नामांकित कंपनी के तौर पर पहचानी जाती है। इस कंपनी ने ‘मोबाईल लेज़र सिस्टम’ एवं ‘सुपरसोनिक ऐंटी शिप बैलेस्टिक मिसाइल’ का निर्माण किया है, ऐसा भी कहा जाता है।

china-germanyजर्मन सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उपस्थित करके चीनी कंपनी का प्रस्ताव ठुकराया है। ‘जर्मनी के हवाई क्षेत्र के कई अहम प्रकल्पों से ‘आयएमएसटी’ जुड़ी हुई है। इस कंपनी के कई उत्पाद एवं तकनीक जर्मन रक्षाबलों को भी प्रदान किए जाते हैं। इसके साथ ही ‘५ जी’ और ‘६ जी’ नेटवर्क स्थापित करने में भी ‘आयएमएसटी’ का योगदान अहम साबित होगा’, इन शब्दों में जर्मन सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उपस्थित करने की बात सामने आयी है। जर्मन सरकार या कंपनी ने इस विषय पर अभी अधिकृत प्रतिक्रिया बयान नहीं की है। चीन के विदेश मंत्रालय ने भी हमें इस मामले की जानकारी ना होने की बात स्पष्ट की है।

इससे पहले चीन को यूरोप का बाज़ार खुला करने में एवं यूरोप और चीन के संबंधों में सुधार करने के लिए जर्मनी ने पहल की थी। लेकिन, बीते कुछ वर्षों में चीन की आक्रामक नीति की वजह से यूरोपिय महासंघ के सदस्य देशों से नाराज़गी के स्वर सुनाई देने लगे थे। इस वर्ष देखी गई कोरोना की महामारी ने इस नाराज़गी में बढ़ोतरी की है और यूरोप में चीन के खिलाफ असंतोष की भावना तीव्र हो रही है। इसी दौरान हाँगकाँग एवं उइगरवंशियों के मुद्दे पर भी यूरोपिय देश लगातार चिंता व्यक्त कर रहे हैं। चीन से विदेशी कंपनियों से हो रहा बर्ताव भी दोनों पक्षों के बीच तनाव का मुद्दा बना है।

china-germanyइस पृष्ठभूमि पर जर्मनी ने चीन के संबंध में अपनाई भूमिका में बदलाव करना शुरू करने के संकेत बीते कुछ महीनों से प्राप्त हो रहे हैं। अप्रैल में जर्मनी के एक अख़बार ने कोरोना की महामारी के मुद्दे पर चीन से अरबों डॉलर्स हर्ज़ाने की माँग की थी। सितंबर में जर्मनी के विदेशमंत्री ने तैवान के मसले पर चीन के नेताओं को फटकार भी लगाई थी। जर्मनी की चान्सेलर एंजला मर्केल ने चीनी कंपनियों को यूरोपिय बाज़ारों में प्रवेश देने से इन्कार करने की स्पष्ट चेतावनी भी दी थी। चीनी कंपनी को जर्मन कंपनी पर कब्ज़ा करने से रोकने का निर्णय करके मर्केल ने दिया इशारा जर्मनी ने सच्चाई में उतारा हुआ दिख रहा है।

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