समय की करवट (भाग ७५) – कोल्ड़ वॉर की हॉट लाईन

समय की करवट (भाग ७५) – कोल्ड़ वॉर की हॉट लाईन

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी- १७८

नेताजी- १७८

भारतीय स्वतन्त्रतासंग्राम के लिए मुसोलिनी का अधिकृत समर्थन प्राप्त करने के कारण, अब जर्मनी से जापान जाकर अगली जंग जारी रखी जाये, यह विचार सुभाषबाबू के मन में ज़ोर पकड़ रहा था। स्वतन्त्रतासंग्राम को निर्णायक पड़ाव तक ले जाने की दृष्टि से, फ़िलहाल जापान में चल रहीं सक्रिय गतिविधियों को मद्देनज़र रखते हुए उनके मन […]

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परमहंस-१२१

परमहंस-१२१

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख रामकृष्णजी का विवाह हालाँकि हो चुका था, लेकिन वह नाममात्र था। अपनी पत्नी के साथ ही सभी स्त्रियों को वे ‘देवीमाता का अंश’ ही समझते थे और उसीके अनुसार उनका स्त्रियों से साथ का आचरण होता था। अतः उनकी संगत में स्त्रियों को अंशमात्र? भी डर या संकोच नहीं लगता […]

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क्रान्तिगाथा-७६

क्रान्तिगाथा-७६

‘स्वराज्य पार्टी’ के स्थापनाकर्ताओं में एक और महत्त्वपूर्ण नाम था – मोतीलाल नेहरू का। मई १८६१ में उनका जन्म हुआ। कानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने वकालत करना शुरू कर दिया और वे एक मशहूर वकील बन गये। शुरुआती समय में इंडियन नॅशनल काँग्रेस के माध्यम से कार्य करते हुए दो सालों तक […]

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नेताजी- १७७

नेताजी- १७७

वहाँ जर्मनी में भारतीय मुक्तिसेना बनाने की सुभाषबाबू की कोशिशों को क़ामयाबी मिल रही थी और जापान में भी इसी तरह की कोशिशें चल रही हैं, यह जानने के बाद उनका हौसला बुलन्द हो गया था। इसी दौरान सुभाषबाबू के साथ हुई मुलाक़ात के बाद जापानी राजदूत ने उनके बारे में स्वयं की अनुकूल राय […]

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परमहंस-१२०

परमहंस-१२०

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख श्रद्धावान के मन में ईश्‍वर के प्रति, अपने सद्गुरु के प्रति होनेवाली उत्कटता में कितनी आर्तता होनी चाहिए, इसके बारे में बताते हुए रामकृष्णजी ने कुछ उदाहरण दिये – ‘एक बार हमारे यहाँ आनेवाले एक भक्त को कहीं पर तो बबूल का एक पेड़ दिखायी दिया। उस बबूल के पेड़ […]

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समय की करवट (भाग ७४) – क्रायसिस क्युबा का, लेकिन फँसे ख्रुश्‍चेव्ह….

समय की करवट (भाग ७४) – क्रायसिस क्युबा का, लेकिन फँसे ख्रुश्‍चेव्ह….

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी-१७६

नेताजी-१७६

दूसरे विश्‍वयुद्ध के अतिपूर्वीय मोरचे पर सब जगह जापानी सेना की पकड़ मज़बूत होती जा रही थी और अँग्रेज़ी सेना पीछे हट रही थी। जगह जगह से जापानी सेना द्वारा गिऱफ़्तार किये गये ब्रिटीश फ़ौज के भारतीय युद्धबन्दियों को भारतीय मुक्तिसेना में से लड़ने के लिए कॅप्टन मोहनसिंग के हवाले किया जा रहा था। बँकॉक […]

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परमहंस-११९

परमहंस-११९

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख ‘जैसे जैसे श्रद्धावान भक्तिमार्ग प्रगति करता जाता है, वैसे वैसे – ‘ईश्‍वर श्रद्धावान के नज़दीक ही होते हैं और वह भी सक्रिय रूप में’ यह एहसास उस श्रद्धावान के दिल में जागृत होता रहें ऐसे अधिक से अधिक संकेत उसे प्राप्त होते रहते हैं। उसके जीवन में ईश्‍वर की विभिन्न […]

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क्रान्तिगाथा-७५

क्रान्तिगाथा-७५

काशी में यानी बनारस में बनारस हिन्दु युनिव्हर्सिटी की स्थापना में डॉ. अ‍ॅनी बेझंट इस विदेश से आयी, लेकिन भारत के लिए कार्य करनेवाली विद्वान महिला का महत्त्वपूर्ण सहभाग था। साथ ही ‘महामना’ की उपाधि से नवाज़े गये पंडित मदनमोहन मालवीयजी का भी योगदान उतना ही महत्त्वपूर्ण था। महज़ हिन्दी ही नहीं, बल्कि संस्कृत और […]

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