क्रान्तिगाथा-७५

काशी में यानी बनारस में बनारस हिन्दु युनिव्हर्सिटी की स्थापना में डॉ. अ‍ॅनी बेझंट इस विदेश से आयी, लेकिन भारत के लिए कार्य करनेवाली विद्वान महिला का महत्त्वपूर्ण सहभाग था। साथ ही ‘महामना’ की उपाधि से नवाज़े गये पंडित मदनमोहन मालवीयजी का भी योगदान उतना ही महत्त्वपूर्ण था।

महज़ हिन्दी ही नहीं, बल्कि संस्कृत और अँग्रेज़ी भाषाओं पर भी प्रभुत्व रहनेवाला यह व्यक्तित्व भारतीय स्वतन्त्रतासंग्राम का एक अग्रणी व्यक्तित्व था। उनकी कलम और भाषणों ने जनजागृति तो की ही, लेकिन उनके द्वारा अपनी बढ़ती उम्र की परवाह न करते हुए जनजागृति करने का कार्य भी अनमोल है।

भारतीयों को ग़ुलामी की ज़ंजीरों से मुक्त करने के लिए जागृत करने के ध्यास से ही पंडित मदनमोहन मालवीयजी प्रेरित थे और इसके लिए ही उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया था।

बहुत ही गरीब परिस्थिती में जन्मे पंडितजी को उनकी परिस्थिती देश की सेवा करने से रोक नहीं सकी। दिसंबर १८६१ में प्रयाग में पंडितजी का जन्म हुआ। कलकत्ता युनिव्हर्सिटी से उन्होंने डिग्री प्राप्त की। उसी समय स्वास्थ के लिए महत्त्वपूर्ण रहनेवाला शारीरिक व्यायाम भी वे नियमित रूप से करते थे। उनके जीवन में इस शारीरिक व्यायाम का स्थान इतना महत्त्वपूर्ण था कि अपनी उम्र के ६० वे वर्ष तक वे नियमित रूप से व्यायाम करते थे।

भारतीय जनता में जागृति करने का महत्त्वपूर्ण कार्य पंडितजी ने शुरू किया। इसी उपलक्ष्य में उन्होंने अनेक अखबारों का संपादन किया। उस समय उपलब्ध सुविधाओं को देखते हुए विशाल जनसमूह तक अपने विचार पहुँचाने के लिए अखबार यह एक प्रमुख साधन था। उन्होंने सिर्फ़ हिन्दी भाषा में ही नहीं बल्कि अँग्रेज़ी भाषा में भी प्रकाशित होनेवाले समाचार पत्रों का संपादन एवं प्रकाशन किया।

सन १८८७ में ‘हिंदुस्तान’ का संपादन, फिर ‘इंडियन ओपिनियन’ के संपादन में सहायता, फिर ‘लीडर’ का प्रकाशन, फिर ‘मर्यादा पत्रिका’ और ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ को सुव्यवस्थित रूप देना, इन सब कार्यों में पंडितजी का अहम योगदान रहा। भारतीय संस्कृति पर हो रहे विदेशी आक्रमण के बारे में जागृति करने के लिए ‘विश्‍ववंद्य’ नाम का समाचारपत्र शुरू किया। साथ ही साहित्य के क्षेत्र में भी उन्होंने अपनी मुहर लगायी। उन्होंने छात्रावस्था से ही दो अलग उपनामों से गद्य एवं पद्य रचना करना शुरू कर दिया। ‘हिन्दी’ भाषा का प्रचार एवं प्रसार करने में पंडित मदनमोहन मालवीयजी का महत्त्वपूर्ण योगदान था या हम यूँ कह सकते हैं कि वे इस कार्य में अग्रणी थे।

इंडियन नॅशनल काँग्रेस के माध्यम से उनका देशकार्य चल रहा था। १९०९ से १९३२ के दौरान चार बार वे इंडियन नॅशनल काँग्रेस के अध्यक्ष बने। लोगों के बीच उत्पन्न मतभिन्नता को मिटाकर उनमें बड़ी आसानी से एकराय बनाना, यह उनका स्वभाव विशेष था। भारतभूमि के लिए कार्यरत रहते हुए कई बार उन्हें कारावास भी भुगतना पड़ा था।

देशसेवा और समाज उद्धार यही मानो पंडितजी के जीवन का ध्येय था, ऐसा उनके जीवन चरित्र को देखने पर हम कह सकते हैं। देशभक्ति का यह व्रत उनके परिवार ने भी लिया था। केवल उनके बेटे ही नहीं बल्कि उनके पोते की पत्नी ने भी देशकार्य में अपना योगदान दिया। भारत में स्काऊट मूव्हमेंट को बढ़ावा देने मे पंडितजी का योगदान रहा है। सन १९०९ में अँग्रे़ज़ों के द्वारा बंगलोर में स्काऊट मूव्हमेंट की स्थापना की गयी। लेकिन इस मूव्हमेंट को भारत के गाँव के छात्रों तक पहुँचाने कार्य – डॉ.अ‍ॅनी बेझंट, जस्टिस विवियन बोस, जॅार्ज अरुंडेल, हृदयनाथ कुंझरू, गिरिजाशंकर बाजपेयी और पंडित मदनमोहन मालवीयजी ने किया। इस महान देशभक्त ने १९४६ में हमसे बिदा ले ली।

स्वराज पार्टी के संस्थापकों में से एक महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व था-विठ्ठलभाई पटेल। वे वल्लभभाई पटेल के बड़े भाई थे। गुजरात के करमसद गाँव में १८७३ इनका जन्म हुआ। जन्मस्थल के क्षेत्र में प्राथमिक शिक्षा (एज्युकेशन) पूरी करके अगली पढ़ाई करने के लिए वे इंग्लैंड गये। इंग्लैंड में उन्होंने कानून की डिग्री प्राप्त कर ली और भारत लौटने के बाद वकालत शुरू कर दी।

विद्वान वकील होने के साथ ही उनका व्यक्तित्व भी बहुत प्रभावशाली था। काँग्रेस के माध्यम से उन्होंने देशकार्य करना शुरू कर दिया। धारासभा के अध्यक्ष के रूप में उन्हें चुना गया। वे संसदीय कामकाज की बारीकी से जानकारी रखनेवाले थे या यूँ कहे कि इस मामले में वे प्रकांड पंडित थे। वे अपने निर्भय एवं निष्पक्ष विचारों के लिए मशहूर थे।

१९३० में उन्हें छह महीने का कारावास भुगतना पड़ा। लेकिन कारावास के दौरान उनका स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण उन्हें रिहा कर दिया गया। मग़र इसके बाद उनके स्वास्थ में सुधार नहीं हुआ। इलाज के लिए वे जिनेव्हा गये और दुर्भाग्यवश वहीं अस्पताल में १९३३ में उनका निधन हो गया।

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