परमहंस-१३५

परमहंस-१३५

रामकृष्णजी का वास्तव्य अब कोलकाता की भरी बस्ती में होने के कारण, आनेवाले भक्तों को दक्षिणेश्‍वर की तुलना में यहीं पर अधिक सुविधाजनक साबित हो रहा था और यहाँ पर भक्तों की अधिक ही भीड़ इकट्ठा होने लगी थी। दरअसल उनके पुराने निष्ठावान् भक्तों में से कइयों का प्रवास संन्यास धारण करने की दिशा में […]

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क्रान्तिगाथा-८३

क्रान्तिगाथा-८३

केरल में ब्रिटिशविरोध की शुरुआत १८वीं सदी के अंत में और १९वीं सदी के आरंभ में हुई। केरल के मलबार, त्रावणकोर और क कोचीन ये राज्यही ब्रिटिशों का विरोध करने में जुट गये। त्रावणकोर राज्य के प्रधानमंत्री ने ब्रिटिशों के विरोध में मोरचा खोला। कोचीन में भी उस राज के प्रधानमंत्री ने ही ब्रिटिश विरोध […]

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नेताजी- १९१

नेताजी- १९१

सुभाषबाबू को जर्मन पनडुबी में से जापानी पनडुबी में स्थानान्तरित करने में, ख़राब हवा के चलते ख़ौल उठा समुद्र यह मार्ग का रोड़ा बन रहा था। बड़ी बड़ी लहरों के कारण पनडुबियाँ भी लगातार डोल रही थीं और इस कारण कहीं वे एक-दूसरे से टकरा न जायें इस डर से उन्हें एक-दूसरे के और क़रीब […]

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परमहंस-१३४

परमहंस-१३४

ऐसे कई हफ़्तें बीत गये, लेकिन रामकृष्णजी की बीमारी कम हो ही नहीं रही थी। लेकिन इस व्याधि से जर्जर हो चुके होने के बावजूद भी रामकृष्णजी का मन आनन्दमय ही था। मुख्य बात, अब वे अधिक ही तेजःपुंज दिखायी देने लगे थे। उनकी कांति अधिक से अधिक प्रकाशमान् होती चली जा रही है, ऐसा […]

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समय की करवट (भाग ८१) – व्हिएतनाम युद्ध : रसायन ‘शस्त्र’

समय की करवट (भाग ८१) – व्हिएतनाम युद्ध : रसायन ‘शस्त्र’

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी-१९०

नेताजी-१९०

२३ अप्रैल को मादागास्कर के पास पहुँच चुकी सुभाषबाबू की पनडुबी ख़राब मौसम के कारण ख़ौलते हुए सागर का सामना करते करते २६ अप्रैल की शाम को, मादागास्कर की नैऋत्य दिशा में लगभग ४०० मील की दूरी पर नियोजित जगह पहुँच गयी। थोड़ी ही देर में, उनकी प्रतीक्षा कर रही जापानी पनडुबी भी पेरिस्कोप में […]

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परमहंस-१३३

परमहंस-१३३

इसी बीच दुर्गापूजा उत्सव नज़दीक आया। वैसे तो यह उत्सव यानी दक्षिणेश्‍वर में रामकृष्णजी के शिष्यों के लिए मंगल पर्व ही होता था। क्योंकि यह देवीमाता का उत्सव होने के कारण रामकृष्णजी भी उसमें दिल से सम्मिलित होते थे। इस उत्सव के उपलक्ष्य में जो सत्संग होता था, उसके दौरान रामकृष्ण भावसमाधि को प्राप्त होने […]

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क्रान्तिगाथा-८२

क्रान्तिगाथा-८२

‘झंड़ा सत्याग्रह’ यानी ‘फ्लॅग मार्च’ यह अँग्रेज़ों का विरोध करने की एक अनोखी कोशिश थी। १९२३ में नागपुर और जबलपुर में प्रमुख रूप से एवं सेंट्रल प्रोव्हिन्स में कुछ स्थानों पर इस झंड़ा सत्याग्रह का आयोजन किया गया था। झंड़ा सत्याग्रहियों के द्वारा फिर जगह जगह भारत का ध्वज लहराने की कोशिशें की गयी। यहाँ […]

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नेताजी-१८९

नेताजी-१८९

आख़िर सुभाषबाबू का जर्मनी से पनडुबी का स़फर शुरू तो हो गया। पनडुबी में कदम रखने से पहले अबिद के दिल में पनडुबी के स़फर के प्रति महसूस हो रहा ‘थ्रिल’ पनडुबी की भीतरी अव्यवस्था को देखकर कुछ मुरझा सा गया था। लेकिन इस स़फर के महत्त्व को जानने के बाद उसका दिल फिर झूम […]

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परमहंस-१३२

परमहंस-१३२

श्यामापुकूर में अब रामकृष्णजी के रहने का तथा सेवाशुश्रुषा का प्रबंध अब सुचारू रूप से हो गया था और चूँकि शारदादेवी भी वहाँ रहने के लिए आयी थीं, परहेज़ के खाने की समस्या भी हल हो गयी थी। लेकिन रामकृष्णजी की बीमारी सुधरने का नाम ही नहीं ले रही थी। पैसों का भी सवाल था। […]

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