क्रान्तिगाथा-८३

केरल में ब्रिटिशविरोध की शुरुआत १८वीं सदी के अंत में और १९वीं सदी के आरंभ में हुई। केरल के मलबार, त्रावणकोर और क कोचीन ये राज्यही ब्रिटिशों का विरोध करने में जुट गये।

त्रावणकोर राज्य के प्रधानमंत्री ने ब्रिटिशों के विरोध में मोरचा खोला। कोचीन में भी उस राज के प्रधानमंत्री ने ही ब्रिटिश विरोध की शुरुआत की। लेकिन मलबार प्रांत में तो वहाँ के राजा ने ही ब्रिटिशों के विरोध में पहला कदम उठाया। दुर्भाग्यवश इन सभी विरोधों को अँग्रेज़ों ने बड़ी ही क्रूरतापूर्वक कुचल डाला और इन प्रदेशों को निगल लिया।

भारत की स्वतंत्रता के लिए लडनेवाले भारतीयों ने अपने देशवासियों को कई मामलों में जागरूक करने के प्रयास इसी स्वतंत्रतासंग्राम के दौरान किये। सामाजिक विषमता, गलत रूढियाँ, गलत रीतीरिवाज इनके विषय में जनजागृती करने के लिए कई आंदोलन किये गये।

‘असहकार’ और ‘स्वदेशी’ आंदोलन के दौरान दक्षिण भारत में भी ‘स्वदेशी को अपनाना और विदेशी चीज़ों को नकारना’ इन बातों का पुरस्कार किया गया।

के. माधवन् नायर, के.पी. केशव मेनन, के. केलप्पन, जॉर्ज जोसेफ, ए.व्ही. कुट्टीमालुअम्मा ऐसे कई देशभक्त व्यक्तियों का केरल में उदय हुआ।

के.पी. केशव मेनन ने ‘मातृभूमि’ नामक समाचारपत्र शुरू किया। इनका जन्म पालघाट के राजवंश में हुआ था। स्वतंत्रतासंग्राम में शामील होने के लिए उन्होंने वकालत छोड दी। शुरुआती समय में होमरुल लीग और उसके पश्‍चात् रासबिहारी बोस द्वारा स्थापित इंडियन इन्डिपेन्डस् लीग से वे जुड गये। अँग्रेज़ों का विरोध करते हुए इन्होंने कई बार कारावास भी भुगता। सिंगापूर में इंडियन इन्डिपेन्डस् लीग का कार्य करते समय उन्हें गिरफ्तार किया गया और द्वितीय महायुद्ध के पश्‍चात् उन्हें रिहा कर दिया गया। जीवन के अंत तक यानि नवम्बर १९७८ तक उन्होनें ‘मातृभूमि’ समाचारपत्र की जिम्मेदारी बखूबी निभायी।

के. माधवन् नायर भी ‘मातृभूमि’ समाचारपत्र की स्थापना में सक्रिय रहनेवाले व्यक्तित्व थे। कानून की डीग्री हासिल कर चुके माधवन् नायर पहले होमरुल लीग और उसके बाद इंडियन नॅशनल काँग्रेस के माध्यम से कार्य कर रहे थे। सन १९३३ में उनकी मृत्यु तक उन्होंने हर संभव मार्ग से ब्रिटिश विरोध करने के अपने रवैय्ये को कायम रखा।

साऊथ मलबार में १८८९ में जन्मे के. केलप्पन मुंबई में कानून की पढाई करने के लिए आये थे। लेकिन असहकार आंदोलन के दौरान विदेशी शिक्षासंस्था का त्याग करके वे अपने जन्मस्थल लौट गये।

जन्मस्थल लौटने के बाद यहाँ से उन्होंने प्रखरतापूर्वक अँग्रेज़ों को विरोध करना शुरू किया। वे ‘मातृभूमि’ समाचारपत्र से भी कुछ समय तक जुडे हुए थे। गांधीजी के विचारों का और कार्य का इन पर गहरा प्रभाव था और उन बातों को वे अपनी कृति में उतारते भी थे। सामाजिक विषमता दूर करने के लिए और खादी का प्रसार करने के लिए उन्होंने अथक परिश्रम किये। सन १९७० में उनका देहान्त हो गया।

दक्षिण भारत में असहकार आंदोलन को बहुत बड़ा और उत्स्फूर्त समर्थन प्राप्त हुआ। भारत के अन्य प्रांतों की तरह दक्षिण भारत में स्वदेशी का पुरस्कार, विदेशी चीज़ों पर बहिष्कार, विदेशी चीज़ों को बेचनेवाले दुकानों के सामने धरना देना आदि बातों के साथ सामाजिक विषमता को दूर करने के प्रयास बड़े पैमाने पर किये जा रहे थे।

छोटे बड़े गाँवो में जातिव्यवस्था अपनी जड़े मज़बूत कर चुकी थी। इस जातिव्यवस्था के आधार पर समाज विभाजित हो चुका था और इस विभाजित हुए भारतीय समाज का एकसाथ होना यही समय की माँग थी। समय की इस माँग को पहचानते हुए सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए स्वतंत्रता सेनानी कोशिशें कर रहे थे। केरल के वायकोम में मार्च १९२४ में हुआ सत्याग्रह यह सामाजिक विषमता को दूर करने की दिशा में बढाया गया एक कदम था।

भारत के अन्य प्रांतों की तरह दक्षिणी भारत में भी महिलाएँ स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुई थी।

१९०५ में केरल में जन्मी ए.व्ही. कुट्टीमालुअम्मा युवा अवस्था में ही स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गयी। खादी और स्वदेशी का प्रसार ये उनके प्रमुख कार्य थे। अपने दो महिने के बच्चे को साथ लेकर इन्होंने ब्रिटीश सरकार के विरोध में निकाले गये मोरचे की अगुवाई की। महत्त्वपूर्ण बात यह थी की यह केवल महिलाओं का मोरचा था। इस समय उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेजा गया। उन्हें जेल भेजते समय अँग्रेज़ों ने उनके बेटे को उनसे अलग कर दिया। उस समय उन्होंने सरकार का विरोध करते हुए, अँग्रेज़ सरकार के नियमों के आधार पर ही अपने बेटे को अपने साथ रखा। ये ‘मातृभूमि’ समाचारपत्र के साथ भी जुड़ी हुई थी। के. माधव मेनन यह उनके पति थे और अपने पति के साथ उन्होंने ‘मातृभूमि’ के कार्य को आगे बढाया।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए क्रांतिकारों के आडे कभी भी उनका धर्म, पंथ, जाति, भाषा, व्यवसाय आदि बातें नहीं आयी। जोसेफ जॉर्ज, के. केलप्पन, सी. केशवन, टी.एम्.वर्गीस, महंमद अब्दुर रहमान, एस्. नीलकांत अय्यर जैसे व्यक्तित्व भारत की स्वतंत्रता के लिए दक्षिणी भारत में लड़ रहे थे।

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