परमहंस-१४४

परमहंस-१४४

रामकृष्णजी की महासमाधि के पश्‍चात् उनके शिष्यों को, ख़ासकर नित्यशिष्यों को निराधार होने जैसा प्रतीत हो रहा था। काशीपुरस्थित जिस घर में, जहाँ रामकृष्णजी के आख़िरी कालखण्ड में उनका निवास रहा, उसमे वे अभी भी रह रहे थे, क्योंकि उस घर की नियत अवधि (काँट्रॅक्ट) के कुछ दिन और बाक़ी थे। लेकिन उस कालखण्ड में […]

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परमहंस-१४३

परमहंस-१४३

इस प्रकार १५–१६ अगस्त १८८६ की मध्यरात्रि के बाद रामकृष्णजी ने इस भौतिक विश्‍व से और नश्‍वर देह से बिदा ली थी। ‘ईश्‍वर से नितांत प्रेम करके उसकी प्राप्ति की जा सकती है, जो कि आम इन्सान के लिए भी आसानी से संभव है’ इस तत्त्व को जीवनभर प्रतिपादित करनेवाले रामकृष्णजी के चले जाने से […]

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क्रान्तिगाथा-८७

क्रान्तिगाथा-८७

१८वीं सदी के उत्तरार्ध से यानी कि अँग्रेज़ों का भारत में प्रवेश होने के बाद इन आदिम जनजातियों ने अँग्रेज़ों के खिलाफ़ लड़ना शुरू किया। सन १७७४–७९ में छत्तीसगड की हलबा नामक जनजाति अँग्रेज़ों से लडने के लिए सिद्ध हो गयी। सन १७७८ में छोटा नागपूर के पहारिया सरदार अँग्रेज़ों के खिलाफ़ खड़े हुए। १९वीं […]

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परमहंस-१४२

परमहंस-१४२

रविवार, १५ अगस्त १८८६….श्रावण अमावस का दिन! रामकृष्णजी ने कुछ दिन पूर्व जोगिन से कहकर कॅलेंडर मँगवाया था और उसमें से, अगले कुछ दिनों के लिए हररोज़ की भारतीय तिथियाँ एक एक करके श्रावण अमावस तक ही पूछीं थीं और फिर रूकने के लिए कहा था। ‘वह’ श्रावण अमावस का दिन आया था। सुबह से […]

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समय की करवट (भाग ८५) – ‘ब्रेझनेव्ह-कोसिजिन’ कालखंड

समय की करवट (भाग ८५) – ‘ब्रेझनेव्ह-कोसिजिन’ कालखंड

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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परमहंस-१४१

परमहंस-१४१

१८८६ साल धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा – मई….जून…जुलाई! रामकृष्णजी की तबियत में कोई सुधार नहीं था, उल्टी वह ढ़हती ही जा रही थी। उनके इस भौतिक अवतार की समाप्ति नज़दीक आ रही होने का एहसास उनके शिष्यों को हो रहा था। रामकृष्णजी के वियोग की कल्पना हे वे सभी हालाँकि एकान्त में रो पड़ते […]

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क्रान्तिगाथा-८६

क्रान्तिगाथा-८६

दक्षिणी भारत के युवाओं को भारतीय स्वतन्त्रता के लिए सक्रिय करने में सुब्रह्मण्य भारती, व्ही. ओ. चिदंबरम् पिल्लै और सुब्रह्मण्य शिवा का बहुत बड़ा योगदान रहा है। दक्षिणी भारत के देशभक्तों में गर्व से लिया जानेवाला एक और नाम है-पट्टाभि सीतारामय्या का। आंध्र प्रदेश में १८८० में इनका जन्म हुआ। मद्रास ख्रिश्‍चन कॉलेज में से […]

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परमहंस-१४०

परमहंस-१४०

इस प्रकार आनेवाले समय के लिए रामकृष्ण संप्रदाय की नींव रामकृष्णजी के जीवन के इस आख़िरी पर्व काशीपुर के वास्तव्य के दौरान रखी गयी। लेकिन रामकृष्णजी का स्वास्थ्य दिनबदिन बिगड़ता ही जा रहा था। बीच में हो थोड़ासा सुकून मिलता था, कि उनके शिष्यवर्ग की उम्मीदें फिर से जाग जातीं थीं; लेकिन यह सुकून अल्प […]

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समय की करवट (भाग ८४) – किसिंजर का ‘रिअलपॉलिटिक’

समय की करवट (भाग ८४) – किसिंजर का ‘रिअलपॉलिटिक’

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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परमहंस-१३९

परमहंस-१३९

रामकृष्णजी के काशीपुरस्थित वास्तव्य में भविष्यकालीन रामकृष्ण संप्रदाय की नींव रखी गयी। आध्यात्मिक प्रगति करने की एकमेव चाह होनेवाले उनके कुछ पटशिष्य, जिनके मन का रूझान संन्यस्तवृत्ति की ओर था, ऐसे शिष्यों के माध्यम से यह नींव रखी गयी। उनमें से कुछ पटशिष्य – नरेंद्र – आगे चलकर ‘स्वामी विवेकानंद’ नाम से विख्यात। राखाल – […]

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