परमहंस-१८

परमहंस-१८

अपना बचपन, अपना सुरक्षित घर, दोस्तों-गाँववालों का प्रेम, कामारपुकूर के सत्रह वर्षों के वास्तव्य की रम्य स्मृतियाँ….सबकुछ पीछे छोड़कर गदाधर अपने बड़े भाई के साथ कोलकाता आया था। कुछ ही दिनों में उसने अपने भाई को मदद करना शुरू किया। लेकिन पाठशाला के काम में नहीं, बल्कि घरगृहस्थी में! खाली समय में अपने भतीजे अक्षय […]

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समय की करवट (भाग २३) – युरोपीय महा‘संघ’

समय की करवट (भाग २३) –  युरोपीय महा‘संघ’

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। आज से हम पिछले लेख में बताये गये हेन्री किसिंजर के वक्तव्य के आधार पर दुनिया की गतिविधियों पर थोड़ा ग़ौर करते हैं। ‘यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक  हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से […]

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नेताजी-७६

नेताजी-७६

आयर्विन के बाद व्हाईसरॉय के रूप में भारत आया विलिंग्डन तो दिल्ली समझौते से लगभग पलट ही गया था। उस समझौते पर हस्ताक्षर करनेवाले दोनों व्यक्ति – आयर्विन की मोहलत ख़त्म होने के कारण, वहीं गाँधीजी दूसरी गोल मे़ज परिषद में उपस्थित रहने के लिए – इंग्लैंड़ जाने के कारण सरकार की तो मानो दसों […]

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परमहंस-१७

परमहंस-१७

गदाधर अब १७ साल का, हट्टाकट्टा, सुन्दर युवक हो चुका था। नम्र, प्रेमल, दयालु, तेज़ दिमाग का, हमेशा निःस्वार्थता से दूसरे की मदद करने के लिए उत्सुक गदाधर किसी भी समूह में अलग ही दिखायी देता था। लेकिन उसके मन की संरचना आम लोगों की तरह नहीं हुई थी। उसकी उम्र के लड़के जो बातें […]

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क्रान्तिगाथा-२३

क्रान्तिगाथा-२३

दास्यता और स्वतन्त्रता के बीच का फर्क मानवों की तरह अन्य सजीवों को महसूस नहीं होता और इसीलिए हमारी भूमि पर और स्वाभाविक रूप से हमारे संपूर्ण जीवन पर जब विदेशी लोग सत्ता स्थापित करते हैं, अत्यधिक ज़ुल्म, तानाशाही और अन्याय करते हैं, तब एक आम आदमी भी ‘स्वतन्त्रता’ के अपने मूलभूत मानवी हक़ को […]

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नेताजी-७५

नेताजी-७५

गाँधीजी और सुभाषबाबू को दिल्ली ले जानेवाली गाड़ी जैसे जैसे उत्तरी भारत में जा रही थी, वैसे वैसे भगतसिंगजी के प्रति वहाँ के जनमत में रहनेवाली उत्कटता भी प्रतीत हो रही थी। गाड़ी के दिल्ली पहुँचने तक भगतसिंगजी आदि को फाँसी देने की तैयारी सरकार ने पूरी कर ली है ऐसी ख़बर आयी। दिल्ली उतरकर […]

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परमहंस-१६

परमहंस-१६

ज़मीनदार लाहाबाबू के घर चल रही, वहाँ पर एकत्रित हुए पुरोहितवर्ग की शास्त्रार्थविषयक चर्चा एक मसले पर आकर रुक गयी थी और विवाद करनेवाले किसी के भी पास नया मुद्दा न होने के कारण बन्द पड़ गयी; तभी गदाई ने बीच में ही उठकर – ‘क्या मैं कुछ बोल सकता हूँ?’ ऐसा उस पुरोहितवर्ग से […]

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समय की करवट (भाग २२)- ‘अनुशासनबद्ध समूह’ संकल्पना का ‘ग्लोबलायजेशन’

समय की करवट (भाग २२)- ‘अनुशासनबद्ध समूह’ संकल्पना का ‘ग्लोबलायजेशन’

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इस अध्ययन में हमने भारत में हुए कई स्थित्यंतरों के बारे में संक्षेप में जान लिया। अब आज से हम भारत के अलावा अन्य देशों में हुए स्थित्यंतरों का संक्षेप में अध्ययन करनेवाले हैं। हाल ही में […]

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नेताजी-७४

नेताजी-७४

गाँधीजी, सुभाषबाबू तथा अन्य नेताओं के जेल में रहने के बावजूद भी, गाँधीजी के सविनय क़ायदाभंग आन्दोलन के कारण सरकार हैरान हो चुकी थी। साराबन्दी, विदेशी माल पर बहिष्कार इनका जुनून भारत भर में फैल रहा था। ग़िऱफ़्तार किये गये सत्याग्रहियों को रखने के लिए जेलें कम पड़ने लगीं। उसीमें गाँधीजी से प्रेरित होकर ‘सरहद […]

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परमहंस-१५

परमहंस-१५

लाहाबाबू की बेटी प्रसन्नमयी हालाँकि छोटे गदाई से ‘गदाई, क्या तुम ईश्वर हो?’ ऐसा ठेंठ प्रश्‍न पूछती थी, मग़र फिर भी यह प्रश्‍न गदाधर को हैरान कर देता था और वह कुछ न कुछ बातें बनाकर प्रश्‍न को टाल देता था। लेकिन प्रसन्नमयी का छोटा भाई गयाविष्णु के साथ उसकी अच्छीख़ासी दोस्ती हो चुकी थी […]

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