क्रान्तिगाथा-२७

क्रान्तिगाथा-२७

अँग्रेज़ों के भारत आने से एक और नयी समस्या उत्पन्न हो गयी थी। वह थी, उनका धर्म, उनकी संस्कृति और उनके मूल्य यहाँ के समाजमानस में जड़ें पकडने लगे थे। भारत में उस समय रहनेवाले कई धार्मिक-सामाजिक पंथों/मार्गों के सामने इन बदलावों को रोकना यह एक चुनौती थी। उसी समय अँग्रेज़ों के द्वारा भारत में […]

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नेताजी- ८३

नेताजी- ८३

सुभाषबाबू अब उत्सुक थे, विठ्ठलभाई से मिलने के लिए। मई महीने के प्रारम्भ में विठ्ठलभाई कूच ब कूच जब व्हिएन्ना पहुँचे, तब सेहत ठीक न होने के बावजूद भी उस सुबह की कड़ाके की ठण्ड़ में रेल्वे स्टेशन पर उनके स्वागत के लिए अकेले सुभाषबाबू ही आये थे। बीमार होने के कारण लाठी टेकते टेकते […]

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परमहंस- २४

परमहंस- २४

राणी राशमणि द्वारा निर्मित दक्षिणेश्‍वर के कालीमाता मंदिर का उद्घाटनसमारोहसंपन्न होने के बाद गदाधर अकेला ही पुनः अपने कोलकाता के घर वापस लौट आया, क्योंकि रामकुमार कुछ काम खत्म करके लौटनेवाला था। लेकिन वह ५-६ दिन बीतने पर भी नहीं आया, इस कारण हैरत में पड़ गये गदाधर ने पुनः दक्षिणेश्‍वर जाकर पूछताछ की, तब […]

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समय की करवट (भाग २६)- ‘युरोपियन इकॉनॉमिक कम्युनिटी’

समय की करवट (भाग २६)- ‘युरोपियन इकॉनॉमिक कम्युनिटी’

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी-८२

नेताजी-८२

शरदबाबू की चिन्ता थोड़ीबहुत दूर हो जाते ही और स्वास्थ्य में थोड़ाबहुत सुधार होते ही सुभाषबाबू ने जोरशोर के साथ अपने कार्य की शुरुआत की। एक तऱफ जर्मन भाषा सीखना शुरू ही था। अब उन्होंने व्हिएन्ना की म्युनिसिपालिटी में जाना भी शुरू कर दिया। वहाँ की नगरपालिकाओं ने आम जनता की सुखसुविधाओं पर ग़ौर करते […]

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परमहंस-२३

परमहंस-२३

कालीमाता के दृष्टान्त के अनुसार राणी राशमणि ने मंदिर का निर्माण किया, जिसके उद्घाटन के समय उत्पन्न हुआ मसला सुलझाने में रामकुमार ने अहम भूमिका निभायी और ३१ मई १८५५ को एक प्रचंड बड़े समारोह के द्वारा यह दक्षिणेश्‍वर कालीमंदिर जनता के लिए खुला कर दिया गया था। इस सारे उद्घाटनसमारोह की एवं कालीमाता की […]

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क्रान्तिगाथा-२६

क्रान्तिगाथा-२६

भारत में अब एक नये पर्व की शुरुआत हो रही थी। सशस्त्र क्रान्ति की राह पर चलकर की गयी कोशिशों को हालाँकि क़ामयाबी न भी मिली हो, मग़र फिर भी भारतीयों के मन में रहनेवाली स्वतन्त्रताप्राप्ति की आस अब भी बरक़रार थी, दर असल दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही थी। इस भारतभूमि में […]

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नेताजी- ८१

नेताजी- ८१

व्हेनिस में एक दिन रहने के बाद ७ मार्च १९३३ की रात को सुभाषबाबू व्हिएन्ना के लिए रवाना हुए। अब उनका पहला लक्ष्य था – तंदुरुस्ती। उनके आने की ख़बर वहाँ भी पहुँच ही चुकी थी। इसीलिए ८ मार्च को व्हिएन्ना पहुँचते ही वहाँ के भारतीय छात्रों ने उनका स्वागत किया। यहाँ भी उन्होंने ‘भारत […]

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परमहंस-२२

परमहंस-२२

स्वप्नदृष्टांत के अनुसार दक्षिणेश्‍वर में कालीमाता का मंदिर बनाने का ध्यास ही राणी राशमणि ने लिया था और लगभग आठ साल निर्माण का काम चल रहा और उस ज़माने में (उन्नीसवीं सदी में) पूरे नौं लाख रुपये खर्चा हुआ वह दक्षिणेश्‍वर कालीमंदिर आख़िरकार सन १८५५ में बनकर पूरा हुआ था। योजना के अनुसार मंदिर का […]

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समय की करवट (भाग २५) – ‘ट्रुमन डॉक्ट्रिन’

समय की करवट (भाग २५) – ‘ट्रुमन डॉक्ट्रिन’

हम १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं। ‘यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक  हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से युरोप एक होने से भी अधिक […]

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