परमहंस-१११

परमहंस-१११

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख रामकृष्णजी की ख्याति सुनकर दक्षिणेश्‍वर आनेवाले जनसामान्य उन्हें देखकर तो मंत्रमुग्ध हो ही जाते थे; लेकिन उनमें से कुछ लोग, जिन्हें रामकृष्णजी के साथ थोड़ा अधिक समय बीताने का अवसर मिल जाता था, वे एक और बात से आश्‍चर्यचकित होते थे – ‘इतने महान योगी, ‘परमहंस’ के रूप में सर्वत्र […]

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क्रान्तिगाथा-७१

क्रान्तिगाथा-७१

असहकार आंदोलन के समय भारतीय गाँधीजी की कार्यपद्धति से परिचित हो गये। आख़िर निश्‍चित रूप से क्या स्वरूप था इस असहकार आंदोलन का? सरकारी नौकरियों पर बहिष्कार (बॉयकॉट) करना, संक्षेप में सरकारी नौकरी करनेवाले उस नौकरी को त्याग देंगें और यदि सरकारी नौकरी मिल भी रही हो तो उसका स्वीकार न करना। वकील और जज […]

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नेताजी- १६९

नेताजी- १६९

सुभाषबाबू अ‍ॅनाबर्ग के सैनिक़ी शिविर में भारतीय युद्धबन्दियों से बात करने आयें, यह सन्देश उनके द्वारा वहाँ भेजे गये प्रतिनिधियों ने भेजा तो था, लेकिन सुभाषबाबू फ़िलहाल ‘आज़ाद हिन्द रेडिओ’ के प्रसारण की तैयारी में जुटे हुए थे। ७ जनवरी १९४२ से प्रसारण शुरू हुआ। एक खास ध्वनिलहर जर्मन सरकार ने ‘आज़ाद हिन्द रेडिओ’ के […]

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परमहंस-११०

परमहंस-११०

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख एक बार रामकृष्णजी से मिलने कुछ व्यापारी लोग आये थे। वे रामकृष्णजी के लिए फल, क़ीमती मिठाइयाँ आदि चीज़ें ले आये थे। लेकिन रामकृष्णजी ने उनमें से किसी चीज़ को नहीं खाया। कुछ देर बाद उन व्यापारियों के चले जाने के बाद रामकृष्ण ने अपने शिष्यों से कहा कि ‘ये […]

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समय की करवट (भाग ६९) – क्युबन रिव्हॉल्युशन

समय की करवट (भाग ६९) – क्युबन रिव्हॉल्युशन

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी – १६८

नेताजी – १६८

अमरीका के पर्ल हार्बर स्थित नौसैनिक़ी अड्डे को टहसनहस करके जापान के विश्‍वयुद्ध में उतर जाने से सुभाषबाबू को जल्द से जल्द ‘आज़ाद हिन्द सेना’ की स्थापना करने की ज़रूरत महसूस होने लगी और इस सेना के लिए मनुष्यबल को एकत्रित करने पर ध्यान देना उन्होंने तय किया। जर्मन फ़ौजों के कब्ज़े में आ चुकीं […]

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परमहंस-१०९

परमहंस-१०९

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख सांसारिक इन्सानों को होनेवाली भौतिक बातों की आसक्ति के बारे में बात करते हुए रामकृष्णजी ने निम्न आशय का विवेचन किया – ‘जिस तरह कोई साप किसी बड़े चूहे को निगलना चाहता है। लेकिन वह चूहा उसके जबड़े में जाने के बाद, वह साँप उस चूहे के बड़े आकार के […]

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क्रान्तिगाथा-७०

क्रान्तिगाथा-७०

१९२० का अगस्त महीना शुरू हो चुका था। अगस्त महीने की १ तारीख थी और उस दिन एक बहुत ही दुखद घटना हुई। इस घटना से सारा भारत शोक में डूब गया। हुआ भी वैसा ही था। १ अगस्त १९२० को ‘लोकमान्य’ इस उपाधि से गौरवान्वित बाळ गंगाधर टिळकजी का स्वर्गवास हो गया। ‘स्वराज्य यह […]

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नेताजी-१६७

नेताजी-१६७

६ नवम्बर १९४१ की ‘आज़ाद हिन्द केन्द्र’ की मीटिंग में कई बातें तय की गयीं। ‘जय हिंद’ यह अभिवादन (‘सॅल्युटेशन’) तो पहले ही तय किया गया था। मुख्य रूप से, केन्द्र का नाम ‘आज़ाद हिन्द केन्द्र’, आकाशवाणी केन्द्र का नाम ‘आज़ाद हिन्द रेडिओ’ और भविष्य में गठित की जानेवाली सेना का नाम भी ‘आज़ाद हिन्द […]

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परमहंस-१०८

परमहंस-१०८

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख आध्यात्मिक दृष्टिकोण से इन्सान प्रायः चार प्रकार के होते हैं – १) हमेशा गृहस्थी में ही आकंठ डुबे हुए और उसके अलावा और कोई भी सोच न होनेवाले; २) मोक्ष की आकांक्षा रखनेवाले; ३) इस सांसारिक आसक्ति से मुक्त हो चुके; और ४) नित्य जीवन्मुक्त। इस बात को स्पष्ट करते […]

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