समय की करवट (भाग ६९) – क्युबन रिव्हॉल्युशन

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।

इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं।
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‘यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से युरोप एक होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। सोव्हिएत युनियन के टुकड़े होना यह जर्मनी के एकत्रीकरण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है; वहीं, भारत तथा चीन का, महासत्ता बनने की दिशा में मार्गक्रमण यह सोव्हिएत युनियन के टुकड़ें होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।’
– हेन्री किसिंजर
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इसमें फिलहाल हम पूर्व एवं पश्चिम ऐसी दोनों जर्मनियों के विभाजन का तथा एकत्रीकरण का अध्ययन कर रहे हैं।

यह अध्ययन करते करते ही सोव्हिएत युनियन के विघटन का अध्ययन भी शुरू हो चुका है। क्योंकि सोव्हिएत युनियन के विघटन की प्रक्रिया में ही जर्मनी के एकीकरण के बीज छिपे हुए हैं, अतः उन दोनों का अलग से अध्ययन नहीं किया जा सकता।

सोविएत युनियन का उदयास्त-२९

अमरीका से आज़ादी प्राप्त होने के बाद आगे के कई साल क्युबा में सत्तासंपादन का खेल चलता रहा। सत्ता में आये नेताओं ने अपनी सत्ता को क़ायम रखने के लिए तानाशाही की शुरुआत की। उसे कुछ साल बाद कोई नया नेता चुनौती दे देता था और फिर पुराने तानाशाह की सत्ता का त़ख्ता पलट जाता था। लेकिन कुछ साल बाद यह नया नेता भी तानाशाह ही बन जाता था। सन १९५० के दशक तक यह सिलसिला चालू ही रहा।

आगे चलकर सन १९५३ में अचानक क्युबा के राजकीय रंगमंच पर एक नया नाम झलका – फिडेल कॅस्ट्रो!

क्युबन रिव्हॉल्युशन के लिए आवश्यक असंतोष का माहौल जिसके कारण तैयार हुआ, वह क्युबन तानाशाह बॅटिस्टा

२६ जुलाई १९५३ को फल्गेन्शिओ बॅटिस्टा इस तत्कालीन क्युबन तानाशाह की सत्ता का त़ख्ता पलट देने के लिए जो पहली बग़ावत हुई, उसका प्रणेता सूत्रधार!

एक अमीर किसान का बेटा होनेवाले कॅस्ट्रो पर हवाना युनिव्हर्सिटी में क़ानून की पढ़ाई करते समय कम्युनिझम के संस्कार हुए।

सन १९४०-१९४४ इस कालावधि में क्युबा के राष्ट्राध्यक्ष होनेवाले बॅटिस्टा ने शुरुआती दौर में क्युबा में अच्छे सुधार हाथ में लिये थे। इस कारण उसे क्युबा की, उस समय तक नगण्य होनेवाली कम्युनिस्ट पार्टी का समर्थन प्राप्त हुआ। लेकिन सन १९४४ में उसकी राष्ट्राध्यक्षपद की नियत अवधि ख़त्म होने के बाद उसने चुने हुए उत्तराधिकारी को हार का सामना करना पड़ने के बाद उसने अमरीका में पनाह ली। वह क्युबा लौटा सन १९५२ के चुनावों के साथ।

लेकिन वह चुनाव हारनेवाला है, यह ध्यान में आ जाते ही उसने सेना का समर्थन प्राप्त कर सत्ता हस्तगत की और क्युबा का संविधान ख़ारिज करके सर्वाधिकार अपने हाथों में ले लिये। उसने पहले के सुधारों की प्रक्रिया को तो रद ही कर दिया; साथ ही, पहले से ही जिसके बारे में शिक़ायतें हो रही थीं, वह क्युबा के सरकारी क्षेत्र का भ्रष्टाचार बॅटिस्टा के शासनकाल में चरमसीमा तक पहुँच गया। राजनीतिक दमनतन्त्र का भी इस्तेमाल होने लगा।

उसी समय, हवाना युनिव्हर्सिटी में क़ानून की पढ़ाई कर रहा कॅस्ट्रो क्युबा की सद्यःस्थिति के बारे में सोचते हुए इस निर्णय तक आ पहुँचा कि बॅटिस्टा यह तानाशाह होने के कारण, क्युबा के भले के लिए उसे सत्ता से हटाना आवश्यक है;

और बॅटिस्टा को चुनौती देने का मौक़ा जल्द ही कॅस्ट्रो के पास चला आया।

क्युबन रिव्हॉल्युशन के प्रणेता सूत्रधार फिडेल कॅस्ट्रो

२६ जुलाई १९५३ को बॅटिस्टा की सत्ता का त़ख्ता पलट देने के लिए समविचारी बाग़ियों ने कॅस्ट्रो के नेतृत्व में क्युबा के सँटियागो शहरस्थित सेना के बेस पर हमला किया। क्युबन क्रांति का यह पहला चरण था।

हालाँकि यह बग़ावत नाक़ाम हुई, कॅस्ट्रो को क्युबा छोड़कर भागना पड़ा, लेकिन चिंगारी भड़की थी!

आगे चलकर रौल कॅस्ट्रो इस अपने भाई के साथ अन्य ८२ बाग़ियों का साथ लेकर कॅस्ट्रो ने मेक्सिको में से सन १९५५ तक इस आन्दोलन को अधिक निश्चित स्वरूप दिया और पहली नाक़ाम बग़ावत २६ जुलाई इस दिन को हुई होने के कारण अपने संगठन को भी ‘२६ जुलाई मुव्हमेंट’ यही नाम दिया।

सन १९५६ तक प्राथमिक तैयारी कर ये ८२ बाग़ियों ने बोट से क्युबा की भूमि पर कदम रखा। दरअसल उस समय वे सरकार की ब्लॅकलिस्ट में थे। अतः, वे क्युबा में आ रहे हैं इसकी भनक लगने के कारण बॅटिस्टा ने सेना सुसज्जित रखी थी। इस कारण आते ही उन्हें सेना के साथ सामना करना पड़ा।

एकसाथ लड़कर, संख्या से बहुत ही अधिक होनेवाली सेना का मुक़ाबला करने की अपेक्षा, पर्बतगुफाओं में आश्रय लेकर छोटी छोटी टुकड़ियों के माध्यम से सेना को सताने के गुरिला युद्धतंत्र का उन्होंने अवलंबन किया। लेकिन उनमें से एक एक जन सेना की गोलीबारी का शिकार होते होते ८२ बाग़ियों में से केवल १२ लोग बच गये।

मग़र फिर भी ज़िद क़ायम थी!

यह क्युबन क्रांति की शुरुआत थी।

यह सिविल वॉर आगे के २ सालों तक चलता रहा और सन १९५९ में बॅटिस्टा क्युबा में से भाग जाने के बाद ही ख़त्म हुआ।

अब कॅस्ट्रो के हाथ में क्युबा की सत्ता इकट्ठा हुई थी। उसकी छात्रावस्था में और बाद की क्रांति की अवधि में उसने कुल मिलाकर जो चिंतन किया था, उसके परिणामस्वरूप, क्युबा को किस प्रकार की राज्यपद्धति अपनानी चाहिए, इसके बारे में उसके मन में चल रहे विचार तब तक पक्के हुए थे – सिंगल पार्टी कम्युनिस्ट रेजिम – एकपक्षीय कम्युनिस्ट शासनव्यवस्था! सरकारी क्षेत्र में चल रहा भ्रष्टाचार, धनिकों द्वारा किया जानेवाला श्रमिकों का शोषण इन सब समस्याओं पर यह जादू की छड़ी है ऐसा अन्यों की तरह उसे भी लगने लगा था।

अपने विचारों को मूर्तरूप देने की दृष्टि से वह झट से काम पर लग गया।

क्युबा के इस घटनाक्रम की ओर और कॅस्ट्रो उठा रहे कदमों की ओर अमरीका बेचैन होकर देख रही थी। अब तक अमरीकापरस्त राष्ट्राध्यक्ष ही जहाँ रहते थे, उस क्युबा में बाकी सबकुछ छोड़कर कम्युनिस्ट राज्यप्रणाली आये, यह बात ‘भरोसेमन्द भैंस को पाड़ा होने जैसी’ अमरीका को लग रही थी।

इसपर अमरीका ने क्या कदम उठाये?

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