परमहंस-११५

परमहंस-११५

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख ईश्‍वरप्राप्ति के लिए श्रद्धावान को चाहिए कि वह शांत, दास्य, सख्य, वात्सल्य, मधुर आदि भावों से ईश्‍वर को देखना सीखें; इन भावों की उत्कटता को बढ़ाएँ। ‘शांत’ भाव – ईश्‍वरप्राप्ति के लिए तपस्या करनेवाले हमारे प्राचीन ऋषि ईश्‍वर के प्रति शांत, निष्काम भाव रखते थे। वे किसी भौतिक सुखोपभोगों के […]

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क्रान्तिगाथा-७३

क्रान्तिगाथा-७३

अँग्रेज़ सरकार ने इस असहकार आंदोलन के मार्गदर्शक महात्मा गाँधीजी को गिरफ़्तार करके उन्हें ६ साल की सज़ा सुनायी। लेकिन आगे चलकर फरवरी १९२४ में स्वास्थ के बिगड़ जाने के कारण उन्हें रिहा किया गया। आख़िर १२ फरवरी १९२२ को इंडियन नॅशनल काँग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर असहकार आंदोलन को स्थगित किये जाने की घोषणा […]

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नेताजी- १७१

नेताजी- १७१

अ‍ॅनाबर्ग शिविर के युद्धबन्दियों के सामने सुभाषबाबू द्वारा इतनी तड़प के साथ ‘आज़ाद हिन्द सेना’ की संकल्पना सुस्पष्ट करने के बावजूद भी युद्धबन्दियों से मिला प्रतिसाद तो ठण्डा ही था। लेकिन ‘ज़िद’ (‘नेव्हर से डाय स्पिरिट’) इस शब्द की साक्षात् मूर्ति ही रहनेवाले सुभाषबाबू हार न मानते हुए अपने ध्येय के साथ अटल रहकर कोशिशों […]

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परमहंस-११४

परमहंस-११४

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख रामकृष्णजी यह कभी नहीं चाहते थे कि उनके शिष्यगण सूखे ज्ञानी – क़िताबी क़ीड़ें बनें। इस कारण – महज़ धार्मिक ग्रंथों के एक के बाद एक पाठ करने की अपेक्षा, उन ग्रन्थों में जो प्रतिपादित किया है उसे जीवन में, अपनी दिनचर्या में उतारने के प्रयास वे करें, ऐसा रामकृष्णजी […]

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समय की करवट (भाग ७१) – क्युबन मिसाईल क्रायसिस

समय की करवट (भाग ७१) – क्युबन मिसाईल क्रायसिस

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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परमहंस-११३

परमहंस-११३

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीखसद्गुरुतत्त्व की, उस ईश्‍वरी तत्त्व की करनी अगाध होती है, कई बार वह अतर्क्य, विपरित प्रतीत हो सकती है। इसलिए उसका अर्थ लगाने के पीछे मत पड़ जाना, यह बात अंकित करने के लिए रामकृष्णजी ने एकत्रित शिष्यगणों को एक कथा सुनायी – ‘एक मनुष्य घने जंगल में जाकर नित्यनियमपूर्वक कालीमाता […]

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क्रान्तिगाथा-७२

क्रान्तिगाथा-७२

अँग्रेज़ों द्वारा उनके शासनकाल में भारत में विभिन्न प्रांत यानी प्रोव्हिन्स का निर्माण किया गया था। उस समय के युनायटेड़ प्रोव्हिन्स में रहनेवाला चौरी चौरा यह एक गाँव था। भारतभर में असहकार आंदोलन की ज्वाला भड़क उठी थी और पूरे भारत में लोग यथासंभव अँग्रेज़ों से असहकार कर रहे थे। १९२२ का फरवरी का महीना […]

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परमहंस-११२

परमहंस-११२

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख हालाँकि दया, करुणा ये रामकृष्णजी के स्वभावविशेष थे और जनसामान्यों के प्रति उनके दिल में अनुकंपा भरभरकर बह रही थी, लेकिन उनके पास आनेवाले लोग जब ईश्‍वर को न मानते हुए ‘समाजसेवा’, ‘दीनदुर्बलों की सेवा ही असली धर्म है’ आदि बातें करने लगते थे, तब वे खौल उठते थे; फिर […]

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समय की करवट (भाग ७०) – क्युबन रिव्हॉल्युशन

समय की करवट (भाग ७०) – क्युबन रिव्हॉल्युशन

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी- १७०

नेताजी- १७०

अ‍ॅनाबर्ग का शिविर बर्लिन से लगभग डेढ़सौ मील दूर था। उसमें ख़ासकर जर्मन सेनानी रोमेल की सेनाओं द्वारा अफ्रिका की मुहिम में परास्त किये गये अँग्रेज़ी फ़ौज़ के युद्धबन्दियों को रखा गया था। हालाँकि उनमें अधिकतर अँग्रेज़ों के लिए जंग लड़नेवाले भारतीय सैनिक ही थे, मग़र फिर भी ‘अफ़सर’ दर्जे के युरोपीय भी काफ़ी संख्या […]

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