परमहंस-१३६

परमहंस-१३६

बीमारी पर ईलाज के चलते रामकृष्णजी का जो वास्तव्य श्यामापुकुर में चल रहा था, उससे शिष्यगणों के दिलों में संमिश्र भावनाएँ उमड़ रही थीं। यहाँ पर, पहले कभी नहीं मिला था इतना रामकृष्णजी का सान्निध्य उन्हें प्राप्त हो रहा था। दर्शन के लिए आये भक्तों को किये जानेवाले मार्गदर्शन के माध्यम से, रामकृष्णजी के उपदेशामृत […]

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परमहंस-१३५

परमहंस-१३५

रामकृष्णजी का वास्तव्य अब कोलकाता की भरी बस्ती में होने के कारण, आनेवाले भक्तों को दक्षिणेश्‍वर की तुलना में यहीं पर अधिक सुविधाजनक साबित हो रहा था और यहाँ पर भक्तों की अधिक ही भीड़ इकट्ठा होने लगी थी। दरअसल उनके पुराने निष्ठावान् भक्तों में से कइयों का प्रवास संन्यास धारण करने की दिशा में […]

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परमहंस-१३४

परमहंस-१३४

ऐसे कई हफ़्तें बीत गये, लेकिन रामकृष्णजी की बीमारी कम हो ही नहीं रही थी। लेकिन इस व्याधि से जर्जर हो चुके होने के बावजूद भी रामकृष्णजी का मन आनन्दमय ही था। मुख्य बात, अब वे अधिक ही तेजःपुंज दिखायी देने लगे थे। उनकी कांति अधिक से अधिक प्रकाशमान् होती चली जा रही है, ऐसा […]

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परमहंस-१३३

परमहंस-१३३

इसी बीच दुर्गापूजा उत्सव नज़दीक आया। वैसे तो यह उत्सव यानी दक्षिणेश्‍वर में रामकृष्णजी के शिष्यों के लिए मंगल पर्व ही होता था। क्योंकि यह देवीमाता का उत्सव होने के कारण रामकृष्णजी भी उसमें दिल से सम्मिलित होते थे। इस उत्सव के उपलक्ष्य में जो सत्संग होता था, उसके दौरान रामकृष्ण भावसमाधि को प्राप्त होने […]

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परमहंस-१३२

परमहंस-१३२

श्यामापुकूर में अब रामकृष्णजी के रहने का तथा सेवाशुश्रुषा का प्रबंध अब सुचारू रूप से हो गया था और चूँकि शारदादेवी भी वहाँ रहने के लिए आयी थीं, परहेज़ के खाने की समस्या भी हल हो गयी थी। लेकिन रामकृष्णजी की बीमारी सुधरने का नाम ही नहीं ले रही थी। पैसों का भी सवाल था। […]

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परमहंस-१३१

परमहंस-१३१

कोलकाता के श्यामापुकुर स्ट्रीट स्थित मक़ान में रामकृष्णजी निवास के लिए आये थे। नीचली मंज़िल पर एक बड़ा दीवानखाना और एक मध्यम आकार का कमरा और ऊपरि मंज़िल पर दो एकदम छोटे कमरें, ऐसा इस जगह का स्वरूप था। नीचली मंज़िल पर के उस मध्यम आकार के कमरे को रामकृष्णजी निवासस्थान के रूप में इस्तेमाल […]

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परमहंस-१३०

परमहंस-१३०

रामकृष्णजी के उस स्त्रीभक्त द्वारा दिये गए आमंत्रण के अनुसार, उनके कुछ शिष्यगण उसके पास जब भोजन के लिए गये थे, तब ‘वह’ सँदेसा आया था – ‘रामकृष्णजी के गले से से रक्तस्राव शुरू हुआ होने के कारण वे वहाँ नहीं आ सकते।’ उपस्थितों के दिल की मानो धडकन ही रुक गयी और भोजन को […]

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परमहंस-१२९

परमहंस-१२९

पानिहाटी से आये हुए अब एक महीना बीत चुका था, लेकिन रामकृष्णजी के गले की बीमारी कम होने का नाम ही नहीं ले रही ती; उलटी दिनबदिन उनकी परेशानी बढ़ती ही चली जा रही थी। अब तो उन्हें खाना निगलने में भी दिक्कत होने लगी। उनपर ईलाज करनेवाले डॉक्टरों ने – ‘क्लर्जीमन्स सोअर थ्रोट’ ऐसा […]

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परमहंस-१२८

परमहंस-१२८

रामकृष्णजी के पीछे पीछे उनकी पत्नी शारदादेवी भी एक-एक करके आध्यात्मिक पायदान चढ़ रही थीं। रामकृष्णजी बीच बीच में उनकी परीक्षा भी लेते थे। एक बार एक धनवान भक्त रामकृष्णजी को दस हज़ार रुपये देना चाहता था। रामकृष्णजी द्वारा उनका स्वीकार किया जाना तो असंभव ही था। मन ही मन देवीमाता को – ‘यह क्या […]

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परमहंस-१२७

परमहंस-१२७

पानिहाटी का ‘गौरांग चैतन्य महाप्रभु’ उत्सव यह रामकृष्णजी और उनके शिष्यों के लिए आनंदपर्व ही था। रामकृष्णजी को वहाँ के भक्तिसत्संग में गाते-नाचते एकदम भान खोकर भावसमाधि में जाते हुए देखना, यह उपस्थितों के लिए पर्व ही होता था। अतः हर साल उस उत्सव की सभी लोग बेसब्री से प्रतीक्षा करते थे। लेकिन इस साल, […]

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