परमहंस-१२८

रामकृष्णजी के पीछे पीछे उनकी पत्नी शारदादेवी भी एक-एक करके आध्यात्मिक पायदान चढ़ रही थीं। रामकृष्णजी बीच बीच में उनकी परीक्षा भी लेते थे।

एक बार एक धनवान भक्त रामकृष्णजी को दस हज़ार रुपये देना चाहता था। रामकृष्णजी द्वारा उनका स्वीकार किया जाना तो असंभव ही था। मन ही मन देवीमाता को – ‘यह क्या माँ, अभी भी मेरी परीक्षा ले रही हो? इतने साल बीत जाने के बाद अभी भी तुम, इस क़दर मोह के पल निर्माण करनेवाले इन्सान मेरे पास भेजती हो?’ ऐसा कहकर उन्होंने उस भक्त को ‘ना’ कहा। लेकिन वह भी ज़िद पर अड़ा था। ‘आप यदि इन पैसों का स्वीकार नहीं कर सकते, तो कम से कम शारदामाँ से तो इन पैसों का स्वीकार करने के लिए कहिए’ ऐसी उसने गिड़गिड़ाकर रामकृष्णजी से विनति की।

रामकृष्ण परमहंस, इतिहास, अतुलनिय भारत, आध्यात्मिक, भारत, रामकृष्णरामकृष्णजी ने शारदादेवी से उसके बारे में पूछा – ‘यह भक्त मुझे पैसे देना चाहता है। लेकिन मैं पैसे नहीं ले रहा हूँ, यह देखकर वह ऐसी विनति कर रहा है कि कम से कम तुम (शारदादेवी) तो इन पैसों का स्वीकार करो। क्या कहती हो?’ शारदादेवी ने एक पल की भी देर न करते हुए पैसा लेने से इन्कार कर दिया – ‘मेरे द्वारा पैसों का स्वीकार किया जाना यह आपके द्वारा स्वीकार किया जाने जैसा ही है, क्योंकि आपके अलावा मेरी दुनिया ही नहीं है। और यदि मैंने उन पैसों का स्वीकार किया भी, तब भी मैं उन्हें आपकी सेवा पर ही खर्च करूँगी; अर्थात् अप्रत्यक्ष रूप में आप ही उन पैसों के मालिक साबित होंगे। यह बात आपके द्वारा अपनाये गये त्याग के और वैराग्य के ब्रीद से विपरित होगी और वह ब्रीद झूठा पड़ जायेगा। अतः मैं भी इन पैसों का स्वीकार नहीं कर सकती।’ शारदादेवी का मन परखने के लिए पूछे गये प्रश्‍न का यह उत्तर सुनकर रामकृष्णजी ने राहत की साँस ली।

रामकृष्णजी पानिहाटी से उसी दिन दक्षिणेश्‍वर लौटे सही, लेकिन दिनभर के परिश्रमों से – और डॉक्टरों ने वर्ज्य करने के लिए कही हुईं दो बातें पानिहाटी में बार बार उनके हाथों होने के कारण – अंजाम जो होना था, वही हुआ…. रात को उनके केवल गले में ही नहीं, बल्कि सर्वांग में दाह (जलन) शुरू हुआ। इतना कि उससे वे रातभर सो न सके।

दूसरे दिन वहाँ पर स्नानपर्व का विशेष अवसर था। रामकृष्णजी का विशेष पसन्दीदा दिन था, क्योंकि इस दिन भावसमाधि में जाने के वाक़ये बार बार घटित होते थे। लेकिन इस साल ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उनसे मिलने, अपनी अपनी गृहस्थी में उलझे हुए आम लोगों की इतनी भीड़ हुई और वे सभी अपनी अपनी वही घीसीपीटीं सांसारिक समस्याएँ रामकृष्णजी को बताकर, उनपर पुनः पुनः हल पूछते हुए रामकृष्णजी को इतना व्यस्त रख रहे थे कि भावसमाधि को प्राप्त होनेवाली एक भी घटना घटित नहीं हुई, क्योंकि इनमें से एक भी श़ख्स ने ईश्‍वर का ज़िक्र तक नहीं किया।

लेकिन पानिहाटी से लौटने के बाद उनके गले की बीमारी दिनबदिन बढ़ती जाने लगी। ‘यदि समय पर ही एहतियाद न बरते गये, तो यह बीमारी गंभीर रूप धारण कर सकती है’ ऐसी चेतावनी डॉक्टर ने दी।

लेकिन डॉक्टर द्वारा बताये गये ‘वे’ दो परहेज़ों का पालन करना उनके लिए अशक्यप्राय साबित हो रहा था। हर बार जब उनसे मिलने भक्त आते थे, तब उनके शिष्य उन्हें इस बात का स्मरण करा देते थे। लेकिन उसका कुछ ख़ास उपयोग नहीं होता था।

इसी दौरान उनके दर्शन करने आये एक भक्त को जब उनके शिष्यों द्वारा – ‘रामकृष्णजी अब किसीसे बात नहीं करेंगे’ ऐसा बताया गया, तब उनकी बीमारी के बारे में पता चलने पर उसने स्वाभाविक रूप में बीमारी के बारे में पूछा। तब रामकृष्णजी ने कृतक्कोप (झूठे गुस्से) से, किसी शरारती छोटे बच्चे की तरह सारा दोष अपने शिष्यों के माथे पर थोंप दिया – ‘मैं भला कहाँ पानिहाटी जाना चाहता था, लेकिन इन नये शिष्यों ने इस भक्तिउत्सव का अनुभव नहीं किया इसलिए जाना पड़ा। उन्हें वहाँ कम से कम मुझे गाने से और भक्तिसंगीत के ताल पर नाचने से रोकना तो चाहिए था; वह भी इन्होंने नहीं किया।’

लेकिन रामकृष्णजी का अपने शिष्यों पर होनेवाला अथाह प्रेम और छोटे बच्चे जैसा उनका मासूम स्वभाव शिष्यों को मालूम होने के कारण, वे रामकृष्णजी की इस टिप्पणी पर नाराज़ नहीं हुए, बल्कि उन्हें मज़े की बात ही लगी।

उस आये हुए भक्त ने भी उन्हें छोटे बच्चे की तरह समझाकर बतायाकि ‘थोड़ेसे उपचारों से और खयाल रखने से यह बीमारी अब कुछ ही दिनों में ठीक होगी।’ उसपर रामकृष्णजी एक छोटे बच्चे की तरह खुश हो गये।

बाद में उस भक्त ने उनसे – ‘अब डॉक्टर ने परहेज़ बताया ही है, तो कृपा करके ज़्यादा बात न कीजिए…. यहाँ तक कि हमारे साथ भी नहीं। आप जब ठीक हो जायेंगे, तब हम बातें करेंगे ही’ ऐसी तहे दिल से विनति की; लेकिन इस मामले में रामकृष्णजी कहाँ उसकी सुननेवाले थे! उल्टे उस भक्त को – ‘ऐसा कैसे? तुम इतनी दूर से आये हो और मैं तुमसे बात भी नहीं कर सकता?’ ऐसी डाँट पिलाते हुए, अपनी बीमारी को भूलकर उस भक्त को तथा अन्य लोगों को बहुत समय तक आध्यात्मिक मार्गदर्शन करते रहे!

Leave a Reply

Your email address will not be published.