समर्थ इतिहास-१६

समर्थ इतिहास-१६

दक्षिण भारत में तामिळहम्‌‍ प्रदेश के लोकमानस और राजमानस के सिंहासन पर ये अनभिषिक्त सम्राट (महर्षि अगस्त्य) राज करने लगे; लेकिन उनका साम्राज्य प्रेम का, सेवा का, पवित्रता का और उन्नयन का था। तमिल भाषा की उस समय प्रचलित रहनेवाली लिपि यह मूलतः ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई थी। उसका ‘कोळएळत्तु` यह नाम था। ‘कोळ` […]

Read More »

समर्थ इतिहास -१५

समर्थ इतिहास -१५

तामिळहम्‌‍ (तमिलनाडू + केरल) इस प्रदेश में अगस्त्य ऋषि ने प्रवेश किया, उस समय सूर्यपूजन तो था ही; परन्तु सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि यहाँ पर लिंगपूजन यह ‘भगवान शिव` का पूजन था। भगवान शिव ही सबसे श्रेष्ठ आराध्य देवता थे और अभिषेक, फूल चढ़ाना, नैवेद्य अर्पण करना और आरती करना ये उपचार शिवपूजन […]

Read More »

समर्थ इतिहास-१४

समर्थ इतिहास-१४

अगस्त्य ऋषि ने दण्डकारण्य में रहनेवाले उनके आश्रमों की ज़िम्मेदारी सुतीक्ष्ण नामक प्रमुख शिष्य को सौंपी और ‘नक्कीरर` नामक राजकीय अधिकारी के साथ उन्होंने विंध्याचल पर चढ़ना शुरू किया; परन्तु संपूर्ण विंध्याचल घने जंगलों से व्याप्त था। सूरज की छोटी सी किरन तक को अंदर आने से प्रतिबंध करनेवाले प्रचंड बड़े और अकराल-विकराल पेड़ और […]

Read More »

समर्थ इतिहास-१३

समर्थ इतिहास-१३

अगस्त्य ऋषि के दौर से पहले यानी अतिप्राचीन कालखंड में ऑस्ट्रेलिया से दक्षिण अफ़्रीका तक एक अतिप्रचंड भूभाग अस्तित्व में था और यह भूभाग आज के दक्षिण भारत के साथ एकसंघ था। इस भूभाग को पाश्चात्य अनुसंधानकर्ताओं ने ‘लेमूरीया` यह नाम दिया है। इस पूरे भूभाग में द्रमिल संस्कृति के मानवसमूह वास्तव्य कर रहे थे। […]

Read More »

समर्थ इतिहास-१२

समर्थ इतिहास-१२

‘अगस्ति’ यह इनका मूल नाम नहीं है। इनका मूल नाम ‘मान्य मांदार्य’ यह है। ‘अगं स्त्यायति इति’, पर्वत (विंध्य) के विस्तार को प्रतिबंध करनेवाला, यह ‘अगस्ति’ नाम की उपपत्ति (स्पष्टीकरण) है (अगस्ति – अगस्त्य)। ‘अगस्त्य’ यह गौरवशाली नाम उन्हें, उनके द्वारा उनके जीवन में किये गये एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्य के कारण प्राप्त हुआ। तमिल […]

Read More »

समर्थ इतिहास-११ (अखंड भारत के आद्य जनक – महर्षि अगस्ति – अगस्त्य)

समर्थ इतिहास-११ (अखंड भारत के आद्य जनक – महर्षि अगस्ति – अगस्त्य)

महर्षि अगस्ति से मेरी पहली मुलाकात हुई, रामचरित में और वहाँ निर्माण हुआ स्नेह आगे चलकर बढ़ता ही गया। चारों वेद और पुराण तथा दक्षिण भारत की लोककथाएँ, प्रथाएँ एवं लोकगीत, साथ ही महर्षि अगस्ति के मंदिर इनके एकत्रित तेज से, अनंत की प्राप्ति करनेवाले इन ऋषिश्रेष्ठ की एक प्रतिमा बनती गयी। इन्होंने क्या कुछ […]

Read More »

समर्थ इतिहास-१०

समर्थ इतिहास-१०

समुद्रगुप्त के बारे में लेख लिखकर पूरे किये और समुद्रगुप्त के बारे में एक आख्यायिका ज्ञात हुई। उसे लोककथा कहा जा सकता है, प्रत्यक्ष इतिहास नहीं कहा जा सकता, परन्तु मेरी राय में लोककथाओं को भी ऐतिहासिक खज़ाने की रक्षा का सूत्र होता ही है; दर असल लोककथा यह मूल ऐतिहासिक तने में उत्पन्न हुई […]

Read More »

समर्थ इतिहास-९

समर्थ इतिहास-९

आदर्श राजा, आदर्श शासनव्यवस्था, आदर्श शासकीय अधिकारी, आदर्श लष्करी व्यवस्था, आदर्श धर्माचार्य, आदर्श भक्तिमार्ग, आदर्श शिक्षापद्धती, आदर्श आचार्य, आदर्श व्यापार और आदर्श प्रजा यानी ‘रामराज्य’ और ऐसा रामराज्य अयोध्या के बाद भारतीय इतिहास ने फिर एक बार देखा, महाविष्णु के नि:सीम भक्त रहनेवाले समुद्रगुप्त, दत्तदेवी और धर्मपाल के कालखंड में ही। समुद्रगुप्त के बाद वर्ष […]

Read More »

समर्थ इतिहास-८

समर्थ इतिहास-८

समुद्रगुप्त के कार्यकाल में वेग एवं बल प्राप्त हुआ एक सुंदर सांस्कृतिक प्रवाह था, नारदप्रणित भक्तिमार्ग का प्रवाह। स्वयं समुद्रगुप्त अत्यंत धार्मिक, श्रद्धावान और भक्तिसंगीत में रममाण होते थे। वे स्वयं भगवान विष्णु के उपासक थे, परन्तु इसके बावजूद भी उन्होंने उतने ही प्रेम से शिवमंदिरों का निर्माण किया और वे स्वयं भी शिवपूजन में […]

Read More »

समर्थ इतिहास-७

समर्थ इतिहास-७

समुद्रगुप्त के संपूर्ण साम्राज्य में ‘वसंतोत्सव’ को राष्ट्रीय उत्सव का स्थान प्राप्त हुआ था| सभी पंथीय एवं भाषिक प्रजाजन एक साथ आकर वसंतोत्सव मनाते थे| माघ शुक्ल पंचमी के दिन वसंतोत्सव का आरंभ होता था और फाल्गुन पूर्णिमा तक यह उत्सव मनाया जाता था| चैत्र-वैशाख यह वसंत ऋतु का काल माना जाता है, परन्तु मकर […]

Read More »