वैभवलक्ष्मी का व्रत-३

मेरी उम्र कुछ १२-१३ साल की रही होगी। हम सभी छोटे बच्चे मेरी नानी के परेल स्थित घर (जहाँ मेरा जन्म हुआ और जहाँ में बड़ा हुआ) के पास की पहाड़ी पर खेल रहे थे।  वहीं पर एक बोरियों से बनाया गया छोटा सा झोपड़ा था। वहीं पर वेणूबाई नाम की एक महिला अपने ५-६ छोटे-छोटे बच्चों के साथ रह रही थी। उसका पति पूरा शराबी और निकम्मा था। वेणूबाई घरों में काम करती थी और उस नीच पति को पोसती थी और ऊपर से उसकी मार-पीट भी सहती थी और वह शराबी पति घर के बर्तन और कपड़े तक बेच देता था। उस दिन जब हम उस झोपड़े के पास खेल रहे थे, तब उस झोपड़े में से बच्चों की दिल दहला देने वाली रोने की आवाज़ और चिल्लाना सुनायी देने लगा। हम बच्चों ने अंदर झाँककर देखा। वेणूबाई सभी बच्चों को मेहंदी के पेड़ की एक टहनी से उसके मन में आये उस तरह पीट रही थी, बच्चों के शरीर पर काफ़ी ज़ख्म हुए थे और वेणूबाई की आँखों से भी झरझर आँसू बह रहे थे और वह कह रही थी, “निगोड़े खाना माँग रहे हैं, क्या अपनी हड्डियाँ खिलाऊँ?” मैं दौड़कर चला गया और मेरी नानी को यह बात बतायी। नानी उसके स्वभाव के अनुसार तेज़ी से वेणूबाई के घर आ गयी। मेरी नानी के स्वभाव के कारण सभी प्यार से उसका सम्मान करते थे। नानी के आ जाते ही, एक पल में वेणूबाई की मार-पीट रुक गयी। नानी ने उसे अपने करीब लिया और मुझे घर भेजकर दाल-चावल मँगवाये। नानी ने धीरे धीरे उसे शांत किया और उससे कहा, “अरी वेणू, हताश होकर भूखे बच्चों को क्यों पीट रही हो? तुम्हें इस हाल में रखनेवाले तुम्हारे पति को पीटना।” वेणू ने कहा, “मामी, हमारी ज्ञाति का वटसावित्री का व्रत माँ ने प्यार से दिया था, ये संस्कार पति को एक गाली तक देने की भी अनुमति नहीं देते।” नानी ने कहा, “अरी, जब तुम्हारा पति शराब पीकर आयेगा तब उस बरगद की ही टहनी लेकर उसे पीटना शुरू करो; तुमने जिस बरगद की पूजा की है, वह बरगद ही तुम्हें ताकत देगा और ऐसे समय पर किसी बच्चे को भेजकर मुझे बुला लेना।” नानी उसे हाथ से पकड़कर बरगद के पेड़ के पास लेकर गयी और बरगद के पेड़ से आशीर्वाद लेकर सच्ची सावित्री बनने की सीख दी। महज़ एक हफ़्ते में लगातार सात दिनों तक पीटे जाने के बाद वेणू के शराबी पति ने घर आने का नाम ही नहीं लिया और कॉटनग्रीन के पास के एक शराब की भट्ठी पर ही वह रहने लगा। दस सालों बाद पहली ही बार वेणूबाई के झोपड़े में शांति रहने लगी और अहम बात यह थी कि डर का साया दूर हो गया था। नानी के परिचय के कारण वेणूबाई को एक प्रायव्हेट नर्सिंग होम में आया का काम मिल गया। वेणूबाई के, खानदानी अमीर बहन और भाई निर्धन वेणूबाई की तरफ़ आँख उठाकर भी नहीं देखते थे। लेकिन अब वेणूबाई अपने पैरों पर खड़ी थी। उसे किसी की भी ज़रूरत नहीं थी।

लेकिन शांत हो चुकी वेणूबाई से अब मेरी नानी ने कहा, “वेणू, अगर तुम तुम्हारे रिश्तेदारों की तरह ही आर्थिक दृष्टि से अच्छी स्थिति में आ जाओगी, तो ही तुम्हें मानूँगी।” ऐसा बार बार कहकर उसे प्रेरित करना शुरू किया और वेणूबाई की आँखों के सामने बच्चों की पढ़ाई और समृद्ध जीवन का चित्र बनने लगा। नानी के साथ ही वेणूबाई विठ्ठल भगवान के जाप में और जन्माष्टमी के उत्सव में शामिल होने लगी। नानी ने उसे दिया हुआ विठ्ठल भगवान का गजर वह निरंतर करती रहती थी। आठ घंटों तक हॉस्पिटल में ड्युटी करने के बाद बाकी का समय खाली होता था, क्योंकि बारह साल की उसकी बड़ी बेटी घर का पूरा काम करके रखती थी। नानी ने वेणूबाई को गुदड़ी, दुलाई, छोटे बच्चों के लँगोट, फ्रॉक, बच्चों की चौगोशी टोपियाँ बनाना सिखाया। वेणूबाई थोड़े ही समय में इस काम में निपुण हो गयी। दिन-रात कड़ी मेहनत करके वह यह काम करने लगी। इस काम में पूँजी तो वैसे केवल परिश्रम और ज़िद ही थी। उसी समय नौकरी करने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ने लगी थी और आज की तरह छोटे बच्चों के तैयार नॅपीज़ बाज़ार में मिलते नहीं थे। इसी लिए वेणूबाई द्वारा बनाये गये इन छोटे बच्चों के कपड़ों की बहुत माँग थी। नौकरी से और उसकी अपेक्षा भी इस व्यवसाय से अधिक पैसा मिलने लगा। वेणूबाई ने पास ही की एक चाल में दो कमरे ले लिये और इसी कारण प्रतिष्ठित महिलाओं को भी उसके घर आना-जाना आसान हो गया

…. और एक दिन वैभवलक्ष्मी ने परिश्रम के इस व्रत को और विठ्ठल-भक्ति को सफल बनाया। वह जहाँ नौकरी करती थी, उस नर्सिंग होम में एक महिला की डिलिव्हरी हुई। इस महिला की सास और माँ दोनों भी नहीं थीं और यह उसकी पहली डिलिव्हरी थी। वहाँ की लेडी डॉक्टर ने उस नवप्रसूता महिला का परिचय वेणूबाई से कराया। वेणूबाई ने तुरन्त उसके बेटे की लिए ज़रूरी रहनेवाली चीज़ें उसे दे दीं और इतना ही नहीं, उससे कहा, “तुम्हारी माँ और सास नहीं है ना, इसलिए अगर किसी बात की ज़रूरत हो तो मुझे बुला लेना। अरी, मेरी छह डिलिव्हरी हो चुकी हैं और ऊपर से यह नर्सिंग होम में काम करने का पाँच सालों का अनुभव भी है” और इस तरह वेणूबाई ने उस महिला को पूरा सहारा दिया। उस समय वेणूबाई यह जानती तक नहीं थी कि अगले ही महिने में इस महिला का पति बहुत बड़े कारोबारी का सचिव (सेक्रेटरी) बनने वाला है। वह सेक्रेटरी बन गया और वेणूबाई द्वारा किये गये उपकारों का स्मरण रखते हुए उसने वेणूबाई को उसके मालिक के तैयार कपड़ों की दुकान का कॉन्ट्रॅक्ट दिलवाया। वेणूबाई काम में जुट गयी। मेरी नानी के पैर छूकर उसने दो कमरे किराये पर ले लिये और बारह सिलाई मशिन खरीद लीं। धीरे धीरे प्रगति करते हुए अगले पाँच सालों में उसके यहाँ साठ मज़दूर महिलाएँ काम करने लगीं और वेणूबाई प्रतिष्ठित दुकानों में कपड़ों की आपूर्ति (सप्लाय) करने लगी। दोनों बेटियों ने सिलाई के विषय में डिप्लोमा किया और वे वेणूबाई की सहायता करने लगीं और उसके चारों बेटों ने सुव्यवस्थित रूप से पढ़ाई की और उचित रास्ते पर आगे बढ़ गये।

वेणूबाई आज (सन २००६) जीवित नहीं है। लेकिन वेणूबाई ने अपनी कार खरीदी थी और दोनों बेटियों की शादी में वह अपनी बहनों से ज़्यादा गहने पहनकर शान दिखा रही थी। जिस अमीर बहन ने ‘उस` प्रसंग (बच्चों को मार-पीट हुई थी वह प्रसंग) के घटित होने से एक दिन पहले, उसके घर मदद माँगने गयी वेणूबाई के बारे में, उसके घर आयी सहेली से यह कहा था कि ‘वेणूबाई यह गाँव में रहनेवाली एक भिखारन काम करने वाली है`; उस बहन को अपनी बेटी की शादी में चांदी की थाली, कटोरी और लोटा देते समय वेणूबाई के दिल में रहनेवाली आख़िरी चुभन भी चली गयी थी। बरगद की पूजा कैसे करनी है, यह बतानेवाली मेरी नानी और स्वयं की दुर्बलता को दूर करके बड़ी तेज़ी से काम में जुट गयी वेणूबाई वैभवलक्ष्मी की लाड़ली भक्त बन गयीं।
 
सौजन्य : दैनिक प्रत्यक्ष
 
(मूलतः दैनिक प्रत्यक्ष में प्रकाशित हुए अग्रलेख का यह हिन्दी अनुवाद है|)

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