वैभवलक्ष्मी का व्रत – ५

वैभवलक्ष्मी के व्रतों का अचूकता से पालन करनेवाले अनेक लोग हम हमेशा ही देखते हैं, लेकिन अधिकांश बार कई साल गुज़र जाते हैं, फिर भी माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हुई दिखायी नहीं देतीं। फिर स्वयं के नसीब को अथवा ग्रहों को अथवा जादू-टोने को दोष दिया जाता है। लक्ष्मी माता यक़ीनन ही कृपालु, दयालु और प्रेमल भक्तवत्सला ही हैं, इसमें कोई संदेह ही नहीं है। फिर ऐसा क्यों होता है? इसका उत्तर ढूँढ़ना हो, तो पहले इन लक्ष्मी माता के बारे में अच्छी तरह जानकारी लेते हैं।

ये माता लक्ष्मी जो धन, वैभव, सुखसंपदा की दात्री (देनेवाली) एवं अधिष्ठात्री देवता हैं, वे सदैव उन शेषशायी महाविष्णु के चरणों की सेवा करती हैं, इस सिद्धान्त को हमें ठीक से समझना होगा। इसी का अर्थ यह है कि मानव ने, उसे पूजन करने में सुविधा हो इसके लिए भले ही लक्ष्मी की स्वतंत्र ऐसी सोने की मूर्ति बनायी हो, मग़र फिर भी मूल लक्ष्मी भगवान के चरणों में ही रहती हैं, इस बात पर हमें ध्यान देना होगा। इसलिए जहाँ पर भगवान के चरण नहीं हैं, वहाँ पर ये माता लक्ष्मी संपत्ति का स्रोत देती नहीं हैं और पुण्यबल के कारण यदि देना भी पड़ जाये, तब भी सुखसंपत्ति कभी भी नहीं देती और फिर धन होने पर भी शांति और संतोष कभी भी प्राप्त नहीं होता।

महाविष्णु के चरणों में हमेशा रहनेवाली ये लक्ष्मीदेवी हमेशा पाँच पकवानों का नैवेद्य चाहती हैं, ऐसा बताया जाता है। पाँच मधुर अन्नपदार्थ नैवेद्य के रूप में उन्हें अर्पण करने में कोई भी आपत्ति नहीं है। सवाल अपने अपने भाव और क्षमता का है। लेकिन इन वैभवलक्ष्मी को प्रिय रहनेवाले वास्तविक पाँच पकवान हैं, मानव के द्वारा स्वीकार किये गये पाँच गुण और वे हैं – १) स्वच्छता, २) परिश्रम, ३) श्रद्धा, ४) सबुरी और ५) दान। जो व्यक्ति इन पाँच गुणों को स्वीकार करता है, उसी के नैवेद्य का स्वीकार लक्ष्मीमाता करती हैं और उसे ही प्रतिसाद देती है, इस बात पर गौर कीजिए। भारत में जगह जगह पर आज भी घर की सफ़ाई करनेवाले झाडू का लक्ष्मी माता के प्रतीक के रूप में पूजन किया जाता है, इस पर हमें इस संबंध में ध्यान देना चाहिए। दिवाली में लक्ष्मीपूजा के दिन भोर के समय जल्दी उठकर, अभ्यंगस्नान करके झाडू की पूजा करने के बाद ही उसका इस्तेमाल कर घर को साफ़ करके जो कूडा-करकट जमा होता है, उसे घर के सभी लोग उचित स्थान पर ले जाकर डाल देते हैं और दिवाली में बनायी गयी मिठाइयों का, झाडू को उस दिन नैवेद्य अर्पण किया जाता है और बाद में गरीबों को वह नैवेद्य दक्षिणा के साथ दिया जाता है। लक्ष्मीपूजा के दिन बिलकुल भी आलसीपन न करना और स्वयं का हर एक काम स्वयं ही करना, यह नियम यही दर्शाता है कि माता लक्ष्मी को स्वावलंबन (आत्मनिर्भरता), परिश्रम और स्वच्छता ये गुण कितने प्रिय हैं।

कोजागिरी पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) की रात में भी लक्ष्मीमाता ‘को जागर्ति` (कौन जाग रहा है) यह पूछते हुए हर एक के घर जाती हैं, यह कथा बतायी जाती है और जो सोया हुआ होगा उसे आशीर्वाद नहीं देतीं, ऐसा भी कहा जाता है। इसलिए इस डर से कई लोग कोजागिरी के दिन कम से कम मध्यरात्रि तक तो जागरण करते ही हैं, वहीं कुछ लोग पूरी रात भी जागरण करते हैं। लेकिन अधिकांश स्थानों पर कोजागिरी जागरण के दिन एक तो पत्ते खेलते हैं और वह भी जुआ खेलने के लिए अथवा दांडिया खेला जाता है, मौजमस्ती करने के लिए और वह भी कई बार लक्ष्मी देवी के बजाय मदिरादेवी का प्रसाद खाकर ही। लेकिन क्या लक्ष्मीदेवी का पूजन अथवा स्मरण किया जाता है?

जो लोग वैभवलक्ष्मी का व्रत करना चाहते हैं, वे उस पूजाविधान को करें तो उसमें कोई आपत्ति नहीं है; परन्तु ‘वैभवलक्ष्मी ये मूलतः श्रमलक्ष्मी और श्रद्धालक्ष्मी हैं` यह भूलकर किया गया कर्मकाण्ड किसी उपयोग का साबित नहीं होगा, यह बात हमें मन में दृढ़ करनी चाहिए।

.गत चार अग्रलेखों में हमने वैभवलक्ष्मी के कृपाप्रसाद की चार कथाएँ पढ़ीं। इन कथाओं को जो मन में दृढ करेगा और उसके अनुसार लक्ष्मी माता को प्रिय रहनेवाला नैवेद्य जो कोई निरंतर, नित्यनियम से करुणामयी लक्ष्मी माता को अर्पण करता रहेगा, उसके लिए हर एक दिन यह वैभवलक्ष्मी व्रत का ही होगा और हर रात माता लक्ष्मी की आज्ञा से कुबेर के पदचिह्नों को तिजोरी पर अंकित करने वाली ही होगी।

माता लक्ष्मी आप सबकी माँ हैं और आप पर कृपा करने के लिए उत्सुक ही हैं; लेकिन उन्हें मानव का जो आचरण करना पसंद है, उस आचरण को न करते हुए और मुख्य रूप से आपके परमपिता को हृदय में धारण किये बिना, क्या आप आपकी माँ की वत्सलता के लिए योग्य बन पाओगे?

सौजन्य : दैनिक प्रत्यक्ष

(मूलतः दैनिक प्रत्यक्ष में प्रकाशित हुए अग्रलेख का यह हिन्दी अनुवाद है|)

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