वैभवलक्ष्मी का व्रत – ४

उम्र के ५८वें साल में रिटायर होनेवाले अनेक तंदुरुस्त एवं हट्टे-कट्टे लोग भी, ‘अब इस उम्र में हम भला नया क्या कर सकते हैं?` इस विचार से क्रियाशून्य होकर बैठे हुए दिखायी देते हैं। परन्तु आज की यह कथा इन सभी धारणाओं को आरपार छेद देने वाली है। मेरे एक पेशंट, जिनके साथ काफ़ी मित्रता के संबंध थे, वे एक दिन मेरे कन्सल्टींग के सभी पेशंटस्‌‍ पूरे हो जाने तक, अपॉइंटमेंट न होने कारण बाहर रुके हुए थे। मैं जब बाहर आया, तब मैंने उन्हें देखा। मैंने उनसे कहा, “अरे, आपने भीतर संदेश क्यों नहीं भेजा? मैंने आपको देखा यह अच्छा हुआ।” उन्होंने कहा, “बापू डॉक्टर, मैं मेडिकल के काम से नहीं आया हूँ, इसलिए भीतर संदेश नहीं भेजा और अब रात का एक बज गया है, इसलिए मुझे बोलने का धीरज नहीं हो रहा है।” उनके साथ एक वृद्ध दंपती थे। उस वृद्ध दंपती के चेहरे पर अत्यधिक दारुण दुख की छाया साफ़ साफ़ दिखायी दे रही थी। मैंने उन सभी को भीतर बुलाया। उनकी कहानी जो मुझे पता चली, वह कुछ इस प्रकार थी। उस वृद्ध दंपती का उपनाम (सरनेम), मान लीजिए ‘म्हात्रे` यह है। इस म्हात्रे दंपती के बेटे और बहू का ॲक्सिडेंट में देहान्त हो गया था और तीन छोटे-छोटे पोते-पोतियों की परवरिश इस म्हात्रे दंपती को करनी थी। श्री. म्हात्रे का वह इकलौता बेटा था। उनके बेटे का अपना ही छोटा सा कारोबार था और उसका पार्टनर कोई भी हिसाब-किताब उन्हें बताने के लिए तैयार नहीं था। वे दादा-दादी उनके साथ उनके दस साल के पोते को लेकर आये थे। उनके पोते को मैं अपनी कन्सल्टींग में काम पर रख दूँ, ऐसी उनकी इच्छा थी। उनका पोता ‘चंद्रू` बहुत होशियार लग रहा था, इसलिए मैंने उनसे उसके स्कूल की पढ़ाई प्रगति के बारे में पूछा। तब पता चला कि चंद्रू बहुत होशियार है और पाँचवीं कक्षा में उसे ९४% मार्क्स मिले हैं और एक अच्छे स्कूल के सभी डिव्हिजन्स में उसने पहला नंबर प्राप्त किया है। मैंने कहा, “दादाजी, मैं आपकी असहायता समझ सकता हूँ।” म्हात्रे दादाजी रोने लगे और उन्होंने कहा, “डॉक्टर, हम क्या करें? मेरी उम्र ७२ साल है और मेरी पत्नी की उम्र ७० साल है। हम क्या कर सकते हैं? यह लड़का अपने पैरों पर खड़ा हो जाये, तो अच्छा है। एक भी रिश्तेदार हमारी तरफ़ देखने के लिए भी तैयार नहीं है। जिन पर हमने उपकार किये थे, वे भी आज मुँह फेरकर चले गये हैं।” मैंने श्री. म्हात्रे से कहा, “दादाजी, बच्चों की पढ़ाई जारी रहेगी। तीनों बच्चों की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी मैं उठाता हूँ।” श्री. म्हात्रे ने कहा, “डॉक्टर, पढ़ाई की ज़िम्मेदारी तो आप ले लेंगे, पर यहाँ हमारे पास खाने तक के लिए पैसे नहीं है। मानो आसमान ही फट गया है, आप उसके एक छोटे से छिद्र को सीने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन बाकी की बातों का क्या किया जाये?” मैंने उन्हें अगले दिन फिर से मिलने के लिए बुलाया और कहा, “यदि आपको मुझ पर विश्वास हो रहा है, तो आप कल ज़रूर आइए, हम यक़ीनन कोई अच्छा रास्ता ढूँढ़ निकालेंगे।” श्री. म्हात्रे ने कहा, “डॉक्टरसाहब, हमारे इन पड़ोसी से आपके स्वभाव के बारे में जो कुछ सुना है, इसी कारण पोते को आप के यहाँ काम पर रखकर शांति से मर जाने के लिए मैं यहाँ आया हूँ। हम कल ज़रूर आयेंगे।”

अगले दिन चारों लोग फिर से आ गये। मैंने उस वृद्ध दंपती को समझाया कि घर पर ही बैठकर वे किस तरह धन कमा सकते हैं और उसके लिए कुछ रास्ते भी सुझाये। उनकी बूढी और निराश आँखों में एक चमक दिखायी देने लगी। उन्होंने मेरी सलाह के अनुसार करने का निश्चय मेरे पास व्यक्त किया और वे काम में जुट गये। पास ही रहनेवाली शर्ट्‌स्‌‍ और पँट्स्‌‍ की बटन्स की एक फॅक्टरी से उन्होंने बटन्स में छेद बनाने के लिए बटन्स घर पर लाना शुरू किया। घर बैठे बैठे एक छोटे स्क्रू ड्रायव्हर जैसे साधन की सहायता से उन्होंने यह काम शुरू किया। दादा-दादी और तीनों नाती यह काम करने लगे। एक किलो बटन्स में छेद करने पर उन्हें तीन रुपये मिलते थे। साथ ही दादी ने घर में ही आसान सी सींगदाने की चिकी और अदरक से वडियाँ (अदरक और शक्कर से बनायी वडियाँ) बनाना शुरू किया और चंद्रू दोपहर में एक बजे स्कूल के बाद जल्दी से अपनी पढ़ाई पूरी करके उस चिकी और वडियों को एस. टी. स्टँड पर जाकर बेचने लगा। एक दिन चंद्रू की स्कूल अध्यापिका (टीचर) ने गणपति उत्सव मनाने के लिए गाँव जाते समय, एस. टी. स्टँड पर ही उसकी दादी के हाथों बनायी चिकी खायी और वह उन्हें बहुत ही पसंद आयी। उस अध्यापिका को उसके छात्र के परिश्रमों का भी बहुत ही कौतुक महसूस हुआ। उस अध्यापिका के पति का खाने की चीज़ें बेचने का एक स्टॉल था। गाँव से लौटते ही उन्होंने उस स्टॉल पर चंद्रू की चिकी और अदरक वडियाँ बेचने के लिए रखना शुरू किया। धीरे धीरे एक के बाद एक करके चंद्रू के पास ७-८ दुकानों से चिकी की ऑर्डर दी जाने लगी और अब मन से निश्चय कर चुके दादा-दादी ने बटन्स के काम को बाजू में रखकर, नयी उम्मीद के साथ सारा दिन चिकी और वडियाँ बनाने का ही काम शुरू किया। एक दिन म्हात्रे पति-पत्नी चिकी और वडियों लेकर मेरे पास आ गये। दादी-दादी की उम्र मानो दस साल कम हो गयी थी ऐसा ही लग रहा था। मैंने उनसे कहा, “दादी, चिकी बहुत ही स्वादिष्ट है, यक़ीनन आप बहुत अच्छा खाना बनाती हैं। फिर ऐसी कौन सी खाने की चीज़ें हैं, जिन्हें ये स्टॉल वाले लोग आप से खरीदेंगे, इस बारे में पूछकर देखिए।” भगवान की ही मर्ज़ी, दोनों को भी कड़क बुंदी के लड्डू, चिवडा और तीखी सेव के ऑर्डर्स मिलने लगे। अब चंद्रू भी दसवीं पास हो गया था और सुबह के समय कॉमर्स कॉलेज में पढ़ाई करके पूरे दिन भर यह व्यवसाय करने लगा। उम्र के ७२वें साल में हताश हो चुके यह दंपती अब ७८वें साल में भी ज़ोरदार और संतोष से आगे बढ़ रहे थे। इसके बाद ३-४ साल बीत गये और एक दिन ये दादा-दादी तीनों पोते-पोतियों को लेकर मेरी कन्सल्टींग में आ गये। चंद्रू ने पाँच साल के क़रार (ॲग्रीमेंट) पर एक छोटा हॉटेल चलाने के लिए लिया था और उसका महूरत मेरे हाथों हो, ऐसी उनकी इच्छा थी। मैंने दादी से कहा, “आपकी साईनाथ के प्रति रहनेवाली श्रद्धा ने ही आप की सहायता की है। फिर महूरत भी साईनाथ की उपस्थिति में ही कीजिए।” मैंने मेरे पास रहनेवाली साईनाथ की एक फोटो उन्हें दे दी और उसकी उपस्थिति में ही महूरत करने के लिए कहा। ज़ाहिर है कि मैं कौतुक और खुशी से महूरत के समय वहाँ पर था ही। महज़ ९-१० साल पहले बुढापा, दारुण दुख और असहायता से विकलांग हो चुके वे वृद्ध म्हात्रे दंपती उस दिन गर्व से विचरण कर रहे थे। मैंने दादाजी को गल्ले पर बिठाया और दादी से हॉटेल में खाने की पहली चीज़ बनाने के लिए कहा और चंद्रू से कहा, “चंद्रू, भले ही तुम पढ़ी हुई सारी बातें भूल जाओ, लेकिन तुम्हारे दादा-दादी की साईनाथ के प्रति रहनेवाली श्रद्धा और तुम तीनों के प्रति रहनेवाले प्यार और तुम्हारे लिए उन्होंने इस उम्र में किये हुए परिश्रमों को कभी भी मत भूलना। यदि तुम इन्हें पहले प्रणाम नहीं करते हो, तो वह साईनाथ तुम्हारे प्रणाम को स्वीकार नहीं करेंगे।” चंद्रू ने वैसे ही किया।

भगवान के चरणों में दृढ विश्वास और प्रामाणिक परिश्रम करने की तैयारी ये दो बातें एक साथ आ जाने पर कुछ भी असंभव नहीं होता; क्योंकि उस वैभवलक्ष्मी का पति अपने भक्तों का कभी भी त्याग नहीं करता।

सौजन्य : दैनिक प्रत्यक्ष

(मूलतः दैनिक प्रत्यक्ष में प्रकाशित हुए अग्रलेख का यह हिन्दी अनुवाद है|)

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