अमरीका के बायडेन प्रशासन ने रखा ‘न्यू स्टार्ट ट्रीटि’ की अवधि बढ़ाने का प्रस्ताव – रशिया ने किया स्वागत

us-new-start-treatyवॉशिंग्टन/मास्को – अमरीका और रशिया के बीच परमाणु अस्त्रों की संख्या सीमित रखने के मुद्दे पर किए गए ‘न्यू स्टार्ट ट्रीटि’ का अवधि पांच वर्ष बढ़ाने का प्रस्ताव अमरीका के नए बायडेन प्रशासन ने रखा है। अमरीका के इस प्रस्ताव का रशिया ने स्वागत किया है और रशिया इस समझौते की अवधि बढ़ाने के लिए तैयार है, ऐसी प्रतिक्रिया रशियन प्रवक्ता ने व्यक्त की है। वर्ष २०१० में हुए इस समझौते की अवधि अगले महीने खत्म होनी थी। अमरीका के पूर्व राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रमप ने इस समझौते की अवधि बढ़ाने की एवं नए समझौते की संभावना ठुकराई थी।

‘न्यू स्टार्ट ट्रीटि’ में शामिल प्रावधानों के अनुसार इस समझौते की अवधि पांच वर्ष के लिए बढ़ाने की इच्छा अमरीका रखती है। राष्ट्राध्यक्ष ज्यो बायडेन ने यह समझौता अमरीका की सुरक्षा के नज़रिये से अहम होने की भूमिका रखी है। अमरीका के हितसंबंध बरकरार रखने के लिए हम रशिया के साथ समझौता करेंगे, लेकिन इसके साथ ही रशिया की लापरवाह और आक्रामक गतिविधियों का विरोध किया जाएगा’, यह बयान व्हाईट हाउस की प्रवक्ता जेन प्साकि ने किया है। अमरीका के रक्षा विभाग के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने भी इसका समर्थन किया हैं।

us-new-start-treaty‘न्यू स्टार्ट ट्रीटि’ मौजूदा स्वरूप में ही सक्रिय रहना अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा के नज़रिये से अहम है, यह बात किर्बी ने स्पष्ट की। इस समझौते की अवधि बढ़ाई नहीं गई तो रशिया के परमाणु अस्त्रों पर नज़र रखने का अवसर खोना पड़ेगा, यह इशारा भी रक्षा विभाग के प्रवक्ता ने दिया। अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष बराक ओबामा और रशिया के राष्ट्राध्यक्ष दिमित्रि मेदवेदेव ने अप्रैल २०१० में ‘न्यू स्टार्ट ट्रीटि’ पर हस्ताक्षर किए थे। ‘न्यू स्टार्ट ट्रीटि’ के अनुसार दोनों देश १,५५० से अधिक परमाणु अस्त्रों की तैनाती नहीं कर सकते। साथ ही एक-दूसरे के परमाणु अस्त्रों के अड्डों का परीक्षण करने का प्रावधान भी इस समझौते में था।

us-new-start-treatyअमरीका के पूर्व राष्ट्राध्यक्ष ने नए ‘न्यू स्टार्ट ट्रीटि’ में चीन का भी समावेश हो, यह भूमिका बड़े आग्रह से रखी थी। लेकिन, चीन ने अमरीका की यह माँग स्पष्ट शब्दों में ठुकराई थी। अमरीका और रशिया के बेड़ों में हमारी तुलना से कई गुना अधिक परमाणु अस्त्र मौजूद होने का बयान करके चीन ने इस समझौते का हिस्सा होने से इन्कार किया था।

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