भारत ‘ग्लोबल साउथ’ परिषद का आयोजन करेगा

नई दिल्ली – भारत ‘ग्लोबल साउथ’ का हिस्सा होने वाले तकरीबन १२० से अधिक देशों के वर्चुअल परिषद का आयोजन कर रहा है। १२ से १३ जनवरी के लिए आयोजित हो रही इस परिषद में एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमरिकी महाद्वीप के अधिकांश देशों का समावेश होगा। कोरोना के प्रकोप और यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद विकासशील देशों की मांगों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे नजरअंदाज़ की पृष्ठभूमि पर इस परिषद का आयोजन हो रहा है। इस परिषद के ज़रिये ग्लोबल साउथ का हिस्सा होने वाले देशों की आवाज़ अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाना मुमकिन होगा, यह दावा भारत के विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने किया।

यूक्रेन युद्ध के बाद अनाज और उर्जा के सुरक्षा का मुद्दा सामने आया है। अनाज और खाद की किल्लत के कारण ग्लोबल साउथ यानी लैटिन अमरीका, अफ्रीका और एशियाई क्षेत्र के गरीब एवं विकसनशील देशों की स्थिति काफी बिगडी हुई है। इसमें ईंधन की कीमतें बढ़ने से इन देशों की समस्या अधिक गंभीर हुई है। ऐसी स्थिति में अपनी मांगें और प्राथमिकता की ओर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनदेखी होने की शिकायत यह देश कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गुहार लगाने के लिए इन देशों की ‘युनिटी ऑफ वॉईस, युनिटी ऑफ पर्पज्‌‍’ (एकता की आवाज़, एक समान उद्देश्य) इस संकल्पना वाले ‘वॉईस ऑफ ग्लोबल साउथ’ का आयोजन किया जा रहा है। विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने यह पृष्ठभूमि माध्यमों के सामने रखी।

लेकिन, क्या इस परिषद के लिए चीन, पाकिस्तान और यूक्रेन को आमंत्रित किया जाएगा, इस सवाल पर क्वात्रा ने सीधा जवाब नहीं दिया है। जल्द ही इस परिषद में शामिल होने वाले देशों की सूचि सार्वजनिक की जाएगी, ऐसा क्वात्रा ने कहा। यह परिषद यानी ग्लोबल साउथ को आवाज़ देने की भारत की कोशिश होगी। साथ ही अपनी समस्याओं पर गहराई से चर्चा करके इसे परास्त करने की सोच इस परिषद में होगी, यह जानकारी विदेश सचिव क्वात्रा ने साझा की। इस साल भारत में आयोजित हो रही ‘जी २०’ परिषद से पहले ‘ग्लोबल साउथ परिषद’ अहमियत रखती है क्योंकि, इस परिषद से प्राप्त होने वाली जानकारी ‘जी २०’ के सामने प्रभावी ढ़ंग से रखी जाएगी, ऐसा भारतीय विदेश सचिव ने स्पष्ट किया।

इसी बीच पिछले कुछ हफ्तों से भारत लगातार ग्लोबल साउथ की समस्या पेश कर रहा है और विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के व्यासपीठ पर इसका विशेष जिक्र किया था। संयुक्त राष्ट्रसंघ में हमारी अहमियत नहीं  है, यह भावना एशिया और अफ्रिकी महाद्विप के कई देशों के विदेश मंत्रियों ने हमारे सामने रखी, ऐसा जयशंकर ने कहा था। इसकी वजह से संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी विश्वास्नीयता और प्रभाव खो रहा है, इसका अहसास भी भारतीय विदेश मंत्री ने कराया था। ऐसे में संयुक्त राष्ट्रसंघ में भारतीय राजदूत रुचिरा कंबोज ने भी राष्ट्रसंघ प्रभावहीन होता जा रहा है और ऐसे में जी २० जैसे संगठन राष्ट्रसंघ का स्थान प्राप्त करेंगे, ऐसी चेतावनी दी थी। भारत की इस भूमिका की छबि ग्लोबल साउथ परिषद में दिखाई देगी, ऐसे स्पष्ट संकेत इससे प्राप्त होने लगे हैं।

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