हार्पून मिसाईल और टोर्पेडो की भारत को बिक्री करने के लिए अमरिकी प्रशासन ने दी मंज़ुरी

वॉशिंग्टन – भारत को हार्पून मिसाईल और टोर्पेडो की बिक्री करने के लिए अमरिका के ट्रम्प प्रशासन ने मंज़ुरी दी है। ये मिसाईल भारतीय रक्षादलों के बेडे में शामिल होने पर भारत की समुद्री सुरक्षा अधिक मज़बूत होगी, यह बयान पेंटॅगॉन ने किया है।

भारत को हार्पून मिसाईल और टोर्पेडो की बिक्री करने हेतु लिये गए निर्णय की जानकारी ट्रम्प प्रशासन ने मंगलवार के दिन अमरिकी काँग्रेस के सामने रखीं। वर्ष २०१६ में अमरिका ने भारत को ‘प्रमुख सुरक्षा सहयोगी देश’ का दर्जा प्रदान किया था। इस वजह से भारत को प्रमुख, अत्याधुनिक और अहम रक्षा तकनिक एवं सामान की बिक्री करने का रास्ता खुल चुका था। इसी के तहत अमरिका अब हार्पून और टोर्पेडो की बिक्री भारत को करेगी। इसके लिए कुल १५ करोड डॉलर्स का समझौता हुआ है, यह बात पेंटॅगॉन ने कही है।

अमरिका इस समझौते के तहत भारत को १० ‘एजीएम ८४-एल हार्पून ब्लॉक – २ एअर लौंच मिसाईल’ प्रदान कर रही है। इस मिसाईल की क़ीमत ९.२ करोड़ डॉलर्स हैं। इसके अलावा १६ ‘एमके-५४ लाईटवेट टोर्पेडोज’ और इसी वर्ग के प्रशिक्षण के लिए बनाए तीन टोर्पेडो भी भारत को अमरिका से प्राप्त होंगें। इस खरीद के लिए दोनों देशों ने ६.३० करोड़ डॉलर्स का समझौता किया है।

हार्पून मिसाईल की तैनाती, पनडुब्बी विरोधी ‘पी८आय’ लडाकू विमान पर हो सकती है। साथ ही, जमीन पर होनेवाली जंग में भी इस मिसाईल का प्रयोग करना संभव होगा। ‘एमके-५४ लाईटवेट टोर्पेडोज’ भी पनडुब्बी-विरोधी युद्ध की क्षमता बढ़ाने के लिए उपयोगी साबित होंगें। इस वजह से समुद्री सुरक्षा की क्षमता बढेगी, ऐसा अमरिकी रक्षा विभाग के मुख्यालय पेंटॅगॉन ने कहा है।

भारत को प्रदान हो रहें हार्पून मिसाईलों का निर्माण बोर्इंग कंपनी करेगी। इसके अलावा टोर्पेडो का निर्माण रेथॉन कंपनी कर रही है। अमरिका की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के अनुसार, अमरिका अपने प्रमुख रक्षा सहयोगियों के साथ संबंध मजबूत करने के लिए प्राथमिकता दे रही है और इसी के तहत यह मिसाईल भारत को प्रदान करने के लिए मंज़ुरी दी गई है, यह बात पेंटॅगॉन ने स्पष्ट की। साथ ही, इन मिसाईलों की इस बिक्री से इस क्षेत्र में लष्करी संतुलन बिगड़ेगा नही, यह बात भी पेंटॅगॉन ने रेखांकित की है।

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