श्‍वसनसंस्था भाग – ३१

हमारी श्‍वसनसंस्था द्वारा हमें प्राणवायु प्राप्त होती है। फेफड़ों में यह प्राणवायु रक्त के साथ मिल जाती है। रक्त की हिमोग्लोबिन की सहायता से यह शरीर की सभी पेशियों (कोशिकाओं) तक पहुँचती हैं। शरीर की सर्वसाधारण परिस्थिति में और कुछ असाधारण परिस्थितियों में प्राणवायु का वहन कैसे होता है, अब हम यह देखेंगे।

सर्वसाधारण स्थिति में रक्त में मिली हुई प्राणवायु की ९७% प्रतिशत प्राणवायु हिमोग्लोबिन के साथ जुड जाती है और शेष ३% प्रतिशत प्राणवायु रक्त पेशी और प्लाझ्मा के पानी में घुल जाती है और उसी स्थिति में शरीर की पेशियों तक पहुँचती है।

पिछले लेखों में हिमोग्लोबिन के बारे में जानकारी प्राप्त करते समय हमने देखा कि प्राणवायु और हिमोग्लोबिन में क्या नाता है। प्राणवायु, हिमोग्लोबिन से शिथिलता से जुड़ी होती हैं, बँधी होती है और वह इस बंधन से, जोड़ से, सहजतापूर्वक घट भी जाती है, इसी लिए इसको Reversible जोड़ भी कहते हैं। फेफड़ों की केशवाहनियों में Po२ ज्यादा होती है, इसी लिए यहाँ पर प्राणवायु हिमोग्लोबिन से जोड़ी जाती है। ऊती में रहनेवाली केशवाहनियों में Po२ कम होती है। वहाँ पर यह प्राणवायु हिमोग्लोबिन से मुक्त हो जाती है। प्राणवायु की हिमोग्लोबिन के साथ होनेवाली यह क्रिया प्राणवायु के वहन का मुख्य आधार है।

अब हम प्राणवायु के वहन की कुछ महत्त्वपूर्ण आँकड़े (संख्या) देखेंगे और फिर आगे की जानकारी प्राप्त करेंगें।

हमारी आरटरीज में Po२, 95 mm of Hg होता है तथा हिमोग्लोबिन में प्राणवायु का सॅच्युरेशन ९७% होता है। वेन्स में Po२, 40 mm of Hg तथा प्राणवायु का सॅच्युरेशन ७५% प्रतिशत होता है।

सर्वसाधारण स्थिति में प्रत्येक १०० मिली. रक्त ५ मिली प्राणवायु का वहन फेफड़ों से पेशियों तक करता है।

जब कोई व्यक्ति जोरदार व्यायाम कर रहा होता है तो उसके शरीर के स्नायुओं की आवश्यकता कई गुना बढ़ जाती है। हमारा रक्त यह ज़रूरत पूरी करता है। ऐसे व्यायाम के दौरान प्राणवायु का वहन लगभग २० गुना बढ़ जाता है।

रक्त अपने पास की प्राणवायु को जितनी मात्रा में पेशियों को देता है, उसे ‘युटिलाइझेशन कोइफिशंट’ कहते हैं। नॉर्मल परिस्थिति में हिमोग्लोबिन अपने पास की सिर्फ २५% प्रतिशत प्राणवायु ही पेशियों को देती है। व्यायाम के दौरान यह मात्रा ७५ से ८५ प्रतिशत तक बढ़ जाती है। यदि किसी पेशीसमूह में रक्तप्रवाह का वेग कम हो जाता है अथवा वहाँ की पेशियों की मेटॅबोलिक रेट बढ़ जाती है तो वहाँ १०० प्रतिशत प्राणवायु पेशियों को दी जाती है।

हमारी लाल रक्तपेशियों की हिमोग्लोबिन और भी एक महत्तवपूर्ण कार्य करती है। इस कार्य को हिमोग्लोबिन का ‘बफर’ कार्य कहते हैं। इससे पहले हमने देखा है कि जब Po२ की मात्रा ज्यादा होती है तब प्राणवायु हिमोग्लोबिन की ओर आकृष्ट होती है तथा जब Po२ की मात्रा कम हो जाती है तभी प्राणवायु हिमोग्लोबिन से अलग हो जाती है। पेशियों को प्राणवायु मिलने के लिए उसका हिमोग्लोबिन से अलग होना आवश्यक होता है। ऊती में रहनेवाली केशवाहनियों में Po२ सिर्फ 40 mm of Hg होता है। Po२ की इसी मात्रा में प्राणवायु हिमोग्लोबिन से अलग होती है। हमारे शरीर की पेशियों में यह सर्वसाधारण स्थित्ति होती है और इस स्थिति में प्रत्येक १०० मिली रक्त ५ मिली प्राणवायु पेशियों को पहुँचाता है। यदि Po२ की मात्रा कम हो जाती है तो बड़ी मात्रा में प्राणवायु अलग हो जाती है। व्यायाम करते समय Po२ की मात्रा पेशियों में इसी प्रकार कम हो जाती है। यह २५ से १५ mm of Hg तक नीचे आ जाती है। Po२ के १५ mm of Hg से कम हो जाने पर प्राणवायु के अलग होने की मात्रा में वृद्धी नहीं होती। इसी प्रकार यदि Po२ की मात्रा ४० mm of Hg से ज्यादा हो जाए तो प्राणवायु हिमोग्लोबिन से अलग नहीं होता। तात्पर्य यह है कि उचित मात्रा में प्राणवायु प्राप्त होने के लिए पेशियों की केशवाहनियों में Po2 की मात्रा १५ mm of Hg से ४० mm of Hg की रेंज में रहना आवश्यक है। इसी को प्राणवायु का ‘बफर’ कार्य कहा जाता है।

सर्वसाधारण स्थिति में हिमोग्लोबिन का यह कार्य महत्त्वपूर्ण होता ही है परन्तु कुछ असाधारण स्थिति के भी उदाहरण देखते हैं –

समुद्र तल पर हवा का नॉर्मल दाब अलविलोय में Po2 104 mm of Hg होता है। हमने स्कूल में पढ़ा है कि जैसे-जैसे हम समुद्र तल से ऊंचाई की ओर जाते हैं वैसे-वैसे हवा का घनत्व कम होता जाता है। अर्थात हवा में वायु की मात्रा कम होती जाती है। फलस्वरूप उसका दाब भी कम होता जाता है। जब हम किसी ऊँचे पर्वत पर जाते हैं अथवा विमान से प्रवास करते हैं तब उस ऊँचाई पर हवा का घनत्व कम होता है। फलस्वरूप अलविओलाय Po2 भी कम हो जाता है। नॉर्मल १०४ mm के बजाय वह ६० mm होता है। नॉर्मल स्थिति में प्राणवायु का सॅच्युरेशन ९७ प्रतिशत होता है। Po2 ६०० mm of Hg होने पर यह सॅच्युरेशन ८९ प्रतिशत होता है। अर्थात सिर्फ ८ प्रतिशत कम होता है तथा इस स्थिति में भी प्रत्येक १०० मिली रक्त मात्र ५ मिली प्राणवायु पेशियों को पहुँचाता है। तात्पर्य यह है कि हवा का घनत्व कम हो जाने पर भी पेशियों को उनके कार्यों के लिए उचित मात्रा में प्राणवायु मिलता रहता है।

ऊपरोक्त स्थिति के विपरित स्थितति अर्थात हवा का दाब बढ़ जाने पर क्या होता है, अब हम उसकी जानकारी प्राप्त करेंगे।

Deep Sea Diving अर्थात समुद्र की गहराई में जाने पर हवा का दाब बढ़ जाता है। ऐसे स्थान पर अलविओलाय में Po२ ५०० mm of Hg तक बढ़ जाता है। इस बढ़े हुए दाब में प्राणवायु का सॅच्युरेशन १०० प्रतिशत होता है। अर्थात नॉर्मल ९७ प्रतिशत से मात्र ३% प्रतिशत बढ़ जाता है। इस स्थिति में हिमोग्लोबिन पेशियों को बड़ी मात्रा में प्राणवायु की आपूर्ति करता है। ऊती में रहनेवाली केशवाहनियों का Po२ कम होता है परन्तु वो ४० mm of Hg से कुछ मिलीमीटर ज्यादा रहता है।

ऊपरोक्त विवेचन से हिमोग्लोबिन का ‘बफर’ कार्य का महत्त्व आपकी समझ में आ ही गया होगा। प्राणवायु के बारे में ऐसी ही अन्य बातों की जानकारी हम अगले लेख में देखेंगे।(क्रमश:)

Leave a Reply

Your email address will not be published.