श्‍वसनसंस्था भाग – ३३

अब तक हमने देखा कि शरीर में प्राणवायु का वहन कैसे होता है। आज हम दूसरी महत्त्वपूर्ण वायु का यानी कर्बद्विप्रणिल वायु (CO2) का वहन कैसे होता है, यह देखेंगे।

प्राणवायु की तुलना में कर्बद्विप्रणिल वायु का वहन सहजता से होता है। बिल्कुल असाधारण परिस्थिति में भी इस वायु का वहन बड़ी मात्रा में और सहजता से होता है। सर्वसाधारण परिस्थिति में प्रत्येक १०० मिली. रक्त से ४ मिली कार्बनद्विप्रणिल वायु का वहन होता है। इस वायु का रक्त में प्रवास विभिन्न रूपों में होता है। पेशियों (कोशिकाओं) से रक्त में प्रवेश करने के बाद इस वायु का रूपांतरण अन्य रासायनिक घटकों में होता है और उसी रूप में उसका वहन होता है। अब हम यह देखेंगे कि यह वहन कौन-कौन से रूपों में होता है।

* पेशियों से रक्त में प्रवेश करने के पश्चात् इसमें से थोड़ी वायु रक्त के द्राव में घुल जाती है (Dissolves) और इस घुली हुई अवस्था में ही वह फेफड़ों तक जाती है। परन्तु यह मात्रा काफी कम होती है।

* रक्त में प्रवेश करने के बाद काफी मात्रा में कर्बद्विप्रणिल वायु लाल रक्त पेशियों में घुलती है। यहाँ पर पानी के साथ उसकी क्रिया होती है तथा कार्बोनिक आम्ल तैयार होता है। सर्वसाधारण परिस्थिति में भी यह रासायनिक क्रिया काफ़ी सावधानी पूर्वक घटित होती है। परन्तु लाल रक्त पेशियों में कार्बोनिक अनहैड्रेज नामक एक एन्झाइम होता है। यह एन्झाइम पानी और कर्बद्विप्रणिल वायु के बीच क्रिया का वेग अनेक गुना बढ़ा देता है। इसके कारण लाल पेशियों में प्रवेश करने के बाद पल भर में उसका रूपांतरण कार्बोनिक आम्ल में हो जाता है। (H2CO3) नामक इस आम्ल का पुन: विघटन होता है। इस विघटन के बाद बायकार्बोनेट (HCO3) तैयार होता है। और हैड्रोजन का एक अणु मुक्त होता है। (H2CO3 = H+HCO3) बायकार्बोनेट का अणु लाल रक्तपेशी से बाहर प्लाझ्मा में आता है। तथा उस स्थिति में ही फेफड़ों तक उसका वहन होता है। रक्त की ७० प्रतिशत कार्बद्विप्रणिल वायु का वहन कार्बोनेट के रूप में होता है। ऍसिटाझोलामाइड जैसी दवाईयां जिनका उपयोग Glancoma जैसी बीमारियों में होता है, वे दवाईयां कार्बोनिक अनहैड्रेज के कार्यों में बाधा लाती है। फलस्वरूप रक्त में कार्बनडायऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है तथा रक्त का PCO2 80 mm of Hg तक बढ़ जाता है।

* रक्त में प्रविष्ट हुयी कार्बनडायऑक्साइड वायु में से ३० प्रतिशत वायु हिमोग्लोबिन से जुड़ जाती है। इस जोड़ को कार्बअमिनोहिमोग्लोबिन कहा जाता है। इस स्थिति में ही इसका वहन फेफड़ों तक होता है और फेफड़ों में यह हिमोग्लोबिन से अलग होकर अलविओलाय में प्रवेश करती है।

इस प्रकार कर्बद्विप्रणिल वायु का वहन विभिन्न पद्धतियों से होता है। इस काम में प्राणवायु का भी सहभाग होता है। प्राणवायु का वहन देखते समय हमने पेशी की केशवाहनियों में होनेवाली क्रिया का अध्ययन किया। पेशियों में तैयार होनेवाली कर्बद्विप्रणिल वायु के रक्त में मिलते ही वह हिमोग्लोबिन से प्राणवायु को मुक्त करता है। इसके विपरित क्रिया प्राणवायु द्वारा की जाती है। फेफड़ों की केशवाहनियों में जब प्राणवायु प्रवेश करती है तो वह कर्बद्विप्रणिल वायु को दूर करके हिमोग्लोबिन से जुड़ती है। कर्बद्विप्रणिल वायु का अलविओलाय में डिफ्युजन आसानी से होने के लिये प्राणवायु किस प्रकार उपयोगी होता है, अब हम यह देखेंगे।

प्राणवायु के हिमोग्लोबिन से जोड़े जाने के बाद वो हिमोग्लोबिन को ज्यादा ऍसिडिक बनाती है (हिमोग्लोबिन के आम्लीय गुणधर्म बढ़ जाते हैं)। कर्बद्विप्रणिल वायु पर इसका परिणाम दो प्रकार से होता है।

१) ऍसिडिक हिमोग्लोबिन से कर्बद्विप्रणिल वायु से जोड़ा नहीं जाता, वो उससे दूर जाता है।

२) ऍसिडिक हिमोग्लोबिन से हैड्रोजन के अणू कार्बोनेट के साथ रिऍक्ट होते हैं और कार्बोनिक आम्ल का विघटन पानी और कर्बद्विप्रणिल वायु में होता है तथा कर्बद्विप्रणिल वायु अलविओलाय में डिफ्यूज होता है।

ऊतियों की केशवाहनियों में कर्बद्विप्रणिल वायु के प्रवेश करने के बाद जो घटनायें घटित होती हैं उनके विरुद्ध घटनायें फेफड़ों की रक्तवाहनियों में घटित होती है। यहाँ पर वायु के वहन का चक्र पूर्ण होता है।(क्रमश:)

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