चेस्टर कार्लसन (१९०६-१९६८)

4959_Carlson-Chester-Floyd-अपनी उम्र के पच्चीसवे वर्ष ही माता-पिता का साया सिर से उठ जाना, बावीसवे वर्ष भौतिकशास्त्र की पदवी (डिग्री) प्राप्त करना, संशोधक एवं अभियंता की स्वीकृत नौकरी रास न आने से छोड़ देना, उसी समय अमरीका में चल रही ज़ोरदार मंदी। हजारों नौजवान नौकरी न होने के कारण या तो आत्महत्या कर रहे थे अथवा जो भी काम मिले वह करने को तैयार रहते थे। चेस्टर ने न्यूर्याक शहर में वॉलस्ट्रीट पर एक पेटंट से संबंधित काम करने वाले वकील के यहाँ क्लर्क की नौकरी स्वीकार कर ली।

परन्तु बचपन से ही ग्राफ़िक आर्टस् से संबंधित रहनेवाला आकर्षण कम नहीं हुआ था। इस संदर्भ के प्रयोग अधूरे रहने पर उन्होंने बीच में ही छपाई के प्रयोग करना शुरु कर दिया, उस में भी उन्हें कुछ खास सफलता नहीं मिली। मात्र छपाई का काम करते समय एक पानी की उसी प्रकार की कॉपी निकालनी है, तो उसके लिए कोई आसान पद्धति नहीं है ऐसा उन्हें प्रतीत हुआ। फिर उन्होंने सनक में आकर उससे संबंधित अपनी कल्पना एक कॉपी में साकार करनी शुरु कर दी।

क्लर्क का काम तो वल ही रहा था। परन्तु पेटंट ऑफिस के एक ही पेपर का अथवा छाया चित्र की कॉपी निकालने के लिए लगने वाले समय के प्रति वे बेचैन थे। इसके लिए कुछ उपाय ढूंढ़ना चाहिए। यह विचार उनके दिलों-दिमाग पर छा गया। उन्होंने न्यूयॉर्क के सार्वजनिक ग्रंथालय में घंटों अपना समय बिताना शुरु कर दिया। इससे संबंधित पहले हो चुके प्रयोग एवं उनमें होनेवाली त्रुटियों के प्रति उन्होंने अध्ययन करना आरंभ कर दिया।

उस जमाने में अनेक कंपनीयाँ एक समान कॉपी तैयार की जा सके इसके लिए वे रासायनिक एवं औष्णिक तत्त्वों पर आधारित प्रयोग कर रही थी। इसके पश्‍चात् चेस्ट ने एक नया मार्ग ढूंढ़ कर निकाला। ग्रंथालय में अध्ययन करते समय उन्हें ये ‘फोटोकंडक्टिविटी ’ तत्त्वों से संबंधित जानकारी मिल चुकी थी। उन्होंने अपना ध्यान पूरी तरह से उस पर केन्द्रीत कर दिया। फोटो ‘फोटोकंडक्टिविटी ’ का सूत्र बिलकुल आसान, प्रकाश की सहायता से विशिष्ट परिस्थितियों में कुछ पदार्थों में विद्युतवाहक शक्ति बढ़ाई जा सकती है और उसी में से हम अपनी इच्छानुसार परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।

चेस्टर ने इससे संबंधित प्रयोग आरंभ करने के पश्‍चात् हर बार कुछ नयी खोज होने पर उसका पेटंट तैयार करने की ज़िम्मेदारी ले ली। १८ अक्तूबर १९३७ को उन्होंने संशोधन से संबंधित प्रथम पेटंट ले लिया। जैसे-जैसे संशोधन की व्यापकता बढ़ने लगी उसी समय चेस्टर ने एक सहायक अपने साथ रखना निश्‍चित किया। साथ ही संशोधन का स्थान भी बदलने का निश्‍चय किया। इससे पहले चेस्टर के सभी प्रयोग उनके घर के छोटे से रसोईघर में ही होते रहते थे। मात्र ओट्टो कोर्नेई इस निर्वासित जर्मन संशोधक के घर पर आ जाने पर चेस्टर ने क्विन्स राज्य के अ‍ॅस्टोरिया वाले घर के पीछे नयी प्रयोगशाला बनाई।

उसके ठीक एक वर्ष पश्‍चात् २२ अक्तूबर १९३८, की सुबह की बात है। चेस्टर एवं कॉर्नेई दोनों ही सुबह से ही उत्साहित थे। कॉर्नीई ने ग्लास मायक्रोस्कोप की पट्टी पर विशिष्ट अक्षर लिखे। इसके पश्‍चात् झिंक की पट्टी पर गंधक डालकर विद्युतभार निर्माण किया और इसके पश्‍चात् उसके ऊपर प्रखर प्रकाश डालकर उस हिस्से को प्रकाशित किया। थोड़ी देर बाद गंधक के पृष्ठभाग पर एक प्रकार की विशिष्ट पावडर डालकर उस प्रतिमा को मोम के कागज पर डालकर उसे उभार दिया। मोम के कागज पर होने वाला मोम पिघल गया और उनके सामने आने वाली प्रतिमा से वे अत्यन्त हर्षित हो उठे। वह प्रतिमा थी उनके सामने होनेवाली दुनिया की प्रथम सफल ‘कॉपी’।

अनेक सफल प्रयोगों के पश्‍चात्  चेस्टर ने अपनी कल्पना को जनरल इलेक्ट्रीक, आय.बी.एम. जैसे प्रसिद्ध कंपनीयों में जाकर प्रस्तुत किया परन्तु किसी ने भी उन्हें योग्य प्रतिसाद नहीं दिया। आखिरकार न्ययॉर्क के ‘हॅलौईड’ नामक छोटीसी इस कंपनी की ओर से चेस्टर को प्रतिसाद मिला। ओहियों राज्य के एक प्राध्यापक ने इस प्रक्रिया को ‘मेरोग्राफी ’ यह नाम दिया और अपने सभी का जाना पहचाना जाने वाला झेरॉक्स का जन्म हुआ। मेरोग्राफी यह मूल ग्रीक शब्द है। और इसका अंग्रेजी में अर्थ है ‘ड्राय रायटींग’ ‘हॅलॉईड’ कंपनी ने हकीकत में देखा जाये तो इसके लिए बनायी गईं मशीनें अपने ही नाम से विक्री करने का निर्णय लिया था। मात्र झेरॉक्स इस नाम को इतनी अधिक लोकप्रियता हासिल हुई कि इस कंपनी ने अपना नाम बदलकर झेरॉक्स ही रख दिया.

१९५९ में आनेवाले  ‘झेरॉक्स’ ने ‘ ९१४ कॉपीअर’ नामक यंत्र से ऑफिस जगत में क्रांति ला दी। तीन वर्षों में ही कुल १० हजार यंत्रों की विक्री हुई और देखते ही देखते झेरॉक्स कंपनीने अमरीका के टॉप कंपनीयों में अपना स्थान बना लिया। और यह सारी महीना थी चेस्टर कार्लसन के अथक परिश्रम की।

अपने द्वारा खोजे गए संशोधन इसे संतुष्ट न रहकर कार्लसन ने निरंतर प्रयोग करते रहकर उन में और भी अधिक सुधार किया। कालांतर में आगे चलकर अन्य कई सारी कंपनीयों ने इस व्यवसाय को अपना लिया।

परन्तु आज हम जितनी सहजता से एक छोटे से कागज से लेकर बड़े चित्र तक को, किसी भी चीज की कॉपी कर सकते हैं। इन सभी बातों का श्रेय हमें चेस्टर कार्लसन को ही देना चाहिए।

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