सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या(१८६०-१९६२)

m-visvesvarayaविश्वविख्यात वृंदावन गार्डन्स, कृष्णराज सागर बाँध मैसूर विश्वविद्यालय और स्टेट बैंक ऑफ मैसूर इन सब के निर्माणकर्ता एक ही व्यक्ति है और इस निर्माण का श्रेय जाता है- सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या को। १०१ वर्ष तक की दीर्घायु जीने वाले व्यक्ति को देखकर हम यह कह सकते हैं कि दुनिया में यदि इच्छा और कुछ कर दिखाने की ज़िद हो, तो एक मनुष्य भी बहुत कुछ कर सकता है। बड़ा से बड़ा कार्य कर सकता है।

आधुनिक भारत के उद्योगीकरण के एक शिल्पकार के रूप में पहचाने जाने वाले मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या का जन्म १५ सितम्बर १८६० के दिन उस समय के मैसूर संस्थान के कोलार जिला के मुदेनहल्ली नामक गाँव में हुआ था।  उम्र के १५ वे वर्ष ही इनके पिता का साया इनके सिर से उठ गया था। २१ वे वर्ष इन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से पदवी प्राप्त की। इसके पश्‍चात् उन्होंने पून कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से अपनी इंजीनियरिंग की शिक्षा पूरी की। शिक्षा पूर्ण होने पर तुरंत ही उन्होंने उस समय के मुंबई शहर में सरकारी सहायक अभियंता के रूप में अपना कारोबार आरंभ कर दिया। इसके पश्‍चात् स्थलांतर होने पर वे भारतीय जलसंधारण आयोग में ही काम करने लगे।

भारतीय जलसंधारण आयोग में काम करते समय उन्होंने दक्षिण भारत की समस्याओं की ओर विशेष ध्यान दिया। उनके द्वारा की गई जलसंधारण की व्यवस्था कुछ उलझी हुई थी। फिर भी उस समय में भी बहुत प्रसिद्धि प्राप्त की। पूने के खड़कवासला में बाँध का काम संभालते हुए उससे संबंधित किये गये परिश्रम के कारण उनका नाम विख्यात हो गया। भारत में पहली बार ही ‘बाँध के पानी का स्तर एक विशिष्ट ऊँचाई तक आते ही अपने आप खुल जाने वाली घटियां के दरवाजें’  यह उनकी विशेष कारिगरी मानी जाती है। उस समय में हैदराबाद शहर को बाढ़ से बचाने के लिए उन्होंने एक विशेष यंत्रणा तैयार की एशिया का प्रथम ‘शिवसमुद्रम’ जलविद्युत प्रकल्प बनाने में विश्वेश्वरय्या ने केवल अगुबाई ही नहीं की बल्कि स्वयं विशेष परिश्रम भी किया।

विश्वेश्वरय्या के कार्यक्षेत्र में निखार आया जब उन्होंने तत्कालीन मैसूर (आज का कर्नाटक राज्य) प्रांत में अपना कार्य शुरु किया। १९०८ में सरकारी नौकरी का राजीनामा देकर वे मैसूर संस्थान में जाकर काम करने लगे। इससे पूर्व उन्होंने १९०६ में यूरोप का प्रवास कर वहाँ के इंजीनियरिंग क्षेत्र में होने वाली प्रगति का अध्ययन किया। भारत लौटने पर उन्होंने मैसूर संस्थान के प्रमुख अभियंता के रूप में काम करना आरंभ कर दिया। आज कर्नाटक राज्य में हमें जो कुछ भी नामचीन उद्योग अथवा आधारभूत क्षेत्रों की सुविधाएँ दिखाई देती हैं उसकी शुरुआत विश्वेश्वरय्या के प्रयत्नों से ही हुई है।

उनकी काम के प्रति निष्ठा एवं भाग-दौड़ को देखते हुए मैसूर के ओडियार महाराज ने विश्वेश्वरय्या की नियुक्ति संस्थान के दिवान (मुख्य प्रधान) के रूप में कर दी। उस पद पर कार्यरत रहने वाले कार्यकाल में उनके द्वारा की जाने वाली सर्वोत्कृष्ट कारीगरी थी कृष्णराजसागर। उस समय में भारत में बनाये जाने वाले सबसे बड़े बाँध का निर्माण तांत्रिक कौशल्य, अनुभव तथा चुनौतियों का स्वीकार करने की स्वयं की वृत्ति इन्हीं गुणों के बल पर विश्वेश्वरय्या को कावेरी नदी पर लगभग १२०,००० एकड़ जमीन को प्रभावित करने वाला महत्त्वाकांक्षी एवं प्रचंड कृष्णराजसागर नामक बाँध बनाने में सफलता प्राप्त हुई। उस जलप्रपात के पानी पर बिखरते दिखाई देने वाला जगत् प्रसिद्ध ‘वृंदावन’ बाग को पुष्पित करने वाली कल्पना भी विश्वेश्वरय्या की ही है।

महज़ एक ही बाँध की निर्मिती करके वे संतुष्ट नहीं हुए। मैसूर प्रांत को स्वयंपूर्ण बनाने की उनकी कोशिशें जारी रहीं। इसके लिए उन्होंने शैक्षणिक एवं औद्योगिक विकास को प्राधान्य देने का निश्‍चय किया। उस समय मैसूर प्रांत में लड़कियों के लिए अलग से विश्वविद्यालय, कृषि विद्यालय, इंजीनियरिंग विश्व विद्यालय इस प्रकार की कोई भी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थी। विश्वेश्वरय्या ने स्वयं आगे बढ़कर इस कार्यों की नींव डाली। विश्वविद्यालयों के साथ ही स्वतंत्र मैसूर विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए विश्वेश्वरय्या ने विशेष परिश्रम किया।

किसी भी प्रांत अथवा देश को प्रगति पथ पर लाने के लिए वहाँ के उद्योग-धंधो की बढ़ोत्तरी भी होना अत्यन्त आवश्यक है। यह बात वे भली-भाँति जानते थे।  और इस बात का उन्हें विश्‍वास भी था। इसी विश्‍वास के आधार पर उन्होंने भद्रावती आयर्न एवं स्टील जैसे डूबती कंपनीयों को योग्य मार्ग प्रदान किया। सैडल ऑईल फॅक्टरी, मैसूर सोप, मैसूर शुगर मिल जैसे नये-नये उद्योगों को बढ़ावा देते हुए औद्योगिकरण को दिशा प्रदान कि।

आधुनिक भारत की उन्नति के लिए विश्वेश्वरय्या का बहुत बड़ा योगदान रहा। शैक्षणिक एवं औद्योगिक प्रगति के लिए संघर्षरत रहने वाले विश्वेश्वरय्या ने आर्थिक योजना में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्टेट बैंक ऑफ मैसूर की स्थापना यह उन्हीं का एक उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है। विविध संस्थाओं का निर्माण, अपने जीवन में प्राप्त करने वाला मान-सम्मान, बड़े अधिकार प्राप्त पद, ये सब कुछ होकर भी विश्वेश्वरय्या ने हमेशा अभिमान रहित एवं सीधे-सरल वृत्ति का व्यक्तित्व ही बनाये रखा। इस बात का एक छोटा सा उदाहरण हम देख सकते हैं।

मैसूर प्रांत का दिवानपद स्वीकार करने से पहले उन्होंने एक छोटे से पारिवारिक समारोह का आयोजन किया और उस में उन्होंने अपने सभी रिश्तेदारों को आमंत्रित किया और उन सब के सामने यह शर्त रखी कि मेरे इस पद पर आने के पश्‍चात् कोई भी मेरे नाम का उपयोग कर किसी भी प्रकार का लाभ उठाने की कोशिश नहीं करेगा, तब ही जाकर मैं मैसूर राज्य के इस दिवान पद का स्वीकार करूँगा अन्यथा नहीं।

आपने पास होने वाले हुनर एवं दूरदृष्टि के जोर पर पूरे प्रांत का कायापालट करके देश को उन्नति की दिशा में अग्रसर करने वाले विश्वेश्वरय्या सही मायने में आधुनिक भारत के सच्चे सपूत थे। इस महान सुपुत्र को उनके कार्य के समान ही दीर्घायु प्राप्त हुई। उम्र के १०१ वर्ष पूरे हो जाने पर १२ अप्रैल १९६२ के दिन मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या का मुदेनहल्ली गाँव में जहाँ पर उनका जन्म हुआ था, वहीं पर उनका निधन भी हुआ।

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