डॉ. जॉर्ज वॉशिंग्टन कार्व्हर

Pg10-carver1क्या आप रहस्य जानना चाहते हो? तो फिर वस्तुओं को सूक्ष्मता से, गहराई से देखना सीखो| उसका विश्‍लेषण करो, उसके घटक द्रव्यों के प्रति ध्यान रखो| इसी में से विश्‍व की नवीन संरचना की जा सकती है| ‘जहॉं हो वहीं से आरंभ करो, हाथ में जो भी है, उसी का उपयोग करो| लगातार निर्मिति करने की कोशिश करो| कभी भी संतुष्ट मत रहना (अधिक से अधिक पुरुषार्थ करते रहना)|’ इस तरह का जीवन संदेश देनेवाले शास्त्रज्ञ डॉ.जॉर्ज वॉशिंग्टन कार्व्हर मिट्टी के, जमीन के शास्त्रों में एक युगप्रवर्तक माने जाते हैं|

एक गुलाम गृहस्थ का बे़टा| वे अपने लिए गुलाम नाम का ही प्रयोग करते थे| परन्तु जिस जर्मन परिवार ने उनका पालन-पोषण किया उन्हीं का नाम उन्हें प्राप्त हुआ| यह घटना १८७० की है और उस समय जॉर्ज ६ वर्ष के थे| इसीलिए उनका जन्म १९६४ माना जाता है| अनिश्‍चित जन्म समय एवं अतर्क्य परिस्थितीयों में पलने वाले जॉर्ज ने निसर्ग के व्यवहार की सूक्ष्मतम् सूक्ष्म जानकारी दुनिया के प्रत्यक्ष लाकर रख दी तथा निश्‍चित विश्‍वासदायक उत्पन्न बढ़ोत्तरी की योजना एवं नियम उन्होंने प्रस्तुत किया|

दिनभर किसी के घर जाकर काम मॉंगना, मिल गया तो करके रात्रि समय में टूटे हुए गोशाला के अंदर एक कोने में पड़े रहना| आगे चलकर उन्होंने फ़ोर्ट स्कॉट नामक गॉंव में अनेक शिक्षकों के बच्चों से उनकी जान-पहचान हुई| जॉर्ज स्कूल, व्यवसाय इसके अतिरिक्त शेष समय का हर एक पल पठन करने में बिताते थे|

उस काल में निग्रो लोगों को हीन और तुच्छ समझकर व्यवहार किया जाता था| इन कठिन परिस्थितियों में भी अनेक हालअपेष्टा सहन करते हुए उन्होंने अपना महाविद्यालयीन शिक्षण पूर्ण किया| सन१८९४ में जॉर्ज ने शास्त्रविशारद की पदवी प्राप्त की| आयोबा संस्थान का एक प्रथम श्रेणी के विद्यार्थी के रूप में वे मशहूर थे| उसी प्रकार नेशनल गार्डस् में कॅप्टन थे| पदवी प्राप्त होने के बाद उसी विद्यापीठ में वनस्पतिशास्त्र विभाग में उनके नियुक्ति की गई| उसके बाद उन्होंने ‘मास्टर ऑफ़ सायन्स’ की पदवी प्राप्त की|

‘कृषि वर्ग में तीन विद्यार्थी थे| व्यापार, कला, वाड्मय इनके ही सारे उपासक थे|’ इसके बारे में कार्व्हर ने लिखा है ‘‘मैं ही बोलने वाला विद्यालय बनकर घर-घर जाकर सबके सामने अपने विचार पेश करने लगा| छात्रों को कृषि कार्य के प्रति इनकी अरुचि क्यों है! कारण खोजने पर पता चला कि अन्य शिक्षक ‘शिक्षा’ के रुप में कृषि काम बता रहे हैं और वह बंद कर दिया गया|’’ उसके लिए उसने पहले एक समतल जगह पर हरेभरे और जंगली ङ्गूलों के पौधे उगाकर उस पर एक व्याख्यान दिया| ‘‘धरती माता थोड़ी सी सेवा से ही संतुष्ट होकर अनाज व खुशी देती है| किंतु वह सेवा प्रामाणिक होनी चाहिए| अनुभूतियुक्त होनी चाहिए| आँख-कान खुले रखकर ध्यान लगाने पर प्रत्येक दिन नई पहेली सामने स्पष्ट होगी| न की गई बातें करके हम इतिहास में अमर, अजर हो जायेंगे|’’

विद्यार्थियों के मन में विश्‍वास निर्माण किया| उसके बाद निरुपयोगी वस्तू, वन के घास फ़ुस, पत्ते, रास्ते के गोबर के ढ़ेर इकठ्ठा करके खेत के एक-एक भाग में ड़ालने को कहा| उसके ऊपर हल चलाकर खेत जोता गया और नये प्रकार के घेवड़े लगाए गए|

खाने के उपयोग में न लाये जाने वाले ‘घेवड़े के दस प्रकार के स्वादिष्ट पदार्थ’ जॉर्ज ने स्वयं पकाकर सबको खिलाय| रुचिकर पदार्थ की प्रसिद्धी हो गई| चारा व छिलके से सूअर का मांस बढ़ गया, स्वादिष्ट हो गया| किसानों को उत्तरी किनारे के इस ‘पागल’ की चालाकी मालूम हुई| हमने भगवान के नियम न तोड़ते हुए जो बोया वहीं उगा है| किंतु मिट्टी की ताकत व शक्ति हमने इस फ़सल चक्र से बढ़ाई है| जिसके कारण उसका प्रमाण बढ़ गया| फ़सल का दर्जा उत्तम हुआ| और ‘‘अब हम रुई लेंगे|’’ ऐसा जॉर्ज ने उन लोगों से कहा|

जीवन के उज्ज्वल समय में अपने समाज के लिए उन्होंने अपने सारे वैभव और प्रतिष्ठा को छोड़कर प्रामाणिक रुप से काम करने की शुरुआत की| सन् १८९२ में जॉर्ज ने पहली निग्रो परिषद बनाई| ‘‘सरकार तुम्हारे लिए कुछ नहीं करेगी तुम्हें ही निश्‍चय करना पड़ेगा| हमारा उत्कर्ष उद्योग और बुद्धि से होगा| हम प्रकृति माता की कृपा हासिल करेंगे, भूखमरी समाप्त करेंगे, और दीनता को दूर करेंगे|’’ ऐसा उन्होंने कहा| ‘‘मट्टी-काली माता कृपालू है| उसका ध्यान रखना है| उसकी क्षमता को बढ़ाओ| तुम्हारी दूध देने वाली गाय का वह प्रतिपाल करेगीही| ’’
जॉर्ज ने चलती फ़िरती शाल गाड़ी पर चढ़ा ली| दूध जॉंच करने का यंत्र, मक्खन निकालने का यंत्र, दो बैलों वाला हल, विविध औजार, एक दुधारू नस्ल की गाय ऐसे दर्शनीय चीजों को लेकर गाड़ी के साथ प्रवास करने लगा| हजारों लोगों को कृषि-जीवन, समृद्ध जीवन, शास्त्रीय कृषि विषयक जानकारी देने लगा|

एक वर्ष रुई गुच्छे भरते समय गूँथा गयी| इससे काफ़ि नुकसान हो गया| सब खराब हो गया| इस समय उन्होंने किसानों को धीरज बँधाया| इस आघात से भी हम जीत सकते हैं| सारे पौधे उखाड़कर जला दो और मूँगफ़ली लगाओ ऐसी सलाह दी| मूँगफ़ली यह मनुष्य के लिए उपयोगी धान्य है| बहुत सारी फ़सलें तैयार हुई किंतु सही कीमत नहीं मिली| जॉर्ज के चारों ओर लोगों की भीड़ इकठ्ठा हो गई| उस पर भी जॉर्ज ने विलक्षण उपयोग द्वारा जाहीर किया कि मैं मूँगफ़ली से मुँह में लगाने वाली पावडर, छपाई की स्याही, मक्खन, तेल, व्हिनेगार, मलहम, तैयार कॉफ़ी, रस, खोडरबरे, साबुन, लकड़ी का रंग सब कुछ बनाया है| इस में से उसके ‘चेमुरगो’ अर्थात व्यर्थ जानेवाले पदार्थ से उपयुक्त पदार्थ तैयार करने का शास्त्र उदय हुआ|

पानी, चरबी, तेल, गोंद, रंग, शर्करा, फ़रिना, लेग्यूमन, आदि सूक्ष्म द्रव्य-आम्ल इन पर विविध तापमान, उष्णता, दबाव देकर, विभिन्न प्रकार बनाने में जॉर्ज को सफ़लता मिली| जॉर्ज को ‘डॉक्टरेट’ की पदवी मिली| उसका मानसम्मान किया गया| किन्तु वे आलस व आराम से पैर फ़ैलाकर न बैठते हुए सतत काम करते रहे| अंत तक संशोधन और संशोधन करते रहना यही उनके जीवन का मंत्र बन गया था|

एडिसन ने एक लाख का मान वेतन उन्हें देना चाहा किन्तु उस पर जॉर्ज ने लिखा, ‘‘डॉक्टर ध्यनवाद! किंतु इस भाग से व इस निग्रो पददलित लोगों के जीवन से दीनता, दारिद्रय, दु:ख दूर करके अभिजात श्रेष्ठ मानवीयता लाने के लिए मैंने बुकर टी को वचन दिया है, मरने तक मैं उसका पालन करूँगा और क्षमा किजिए, मुझे लगता है कि इस भूमि क मेरी आवश्यकता है|’’

सन १९४० में फ़्रोन्झ बोस ने ‘मानव जाति का रसायन तज्ञ’ ऐसा गौरव करके आंतरराष्ट्रीय परिषद में सर्व मतानुसार कार्व्हर का सम्मान किया| टस्कगी का महान कायाकल्प करनेवाले धरती के जादूगर पर चित्रपट तैयार किया गया| उसकी ‘चलती फ़िरती पाठशाला’ (ओंडक्याची खोली)‘राष्ट्रीय सुरक्षितता’ की बात हो गई|

५ जनवरी सन १९४३ के दिन काल ने उनके जीवन को ग्रसित कर लिया| आदत के अनुसार इस दिन जॉर्ज सुबह की सैर कर रहे थे, लेकिन उस दिन उनका पैर फिसलकर वे बर्फ़ में गिर गए| उन्हें उठने, बैठने, और चल न पाने के कारण उठाकर लाना पड़ा| उस पर भी उन्होंने मात कर दी| ड़गमगाते हुए ही सही, उन्होंने घंटे भर में ही बैठकर अपना काम करना शुरू कर दिया| नाताल के उपलक्ष्य में उपहारस्वरूप भेजनेवाले चित्रों को उन्होंने बनाया| और उस चित्र के नीचे पृथ्वी के सारे सुख, समृद्धि और सदिच्छा आपको प्राप्त हो ऐसे अक्षर बनाए| और यही रहा उनके द्वारा बनाया गया अंतिम चित्र|

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