परमहंस-४०

हलधारी राधाकृष्णमंदिर की नित्य पूजन-उपासना में तंत्रमार्ग या फिर अन्य अनिष्ट पद्धतियाँ अपना रहे हैं, ऐसी लोगों में शुरू हुई खुसुरफुसुर रामकृष्णजी तक पहुँची। लेकिन हलधारी का गुस्सैल स्वभाव मशहूर रहने के कारण और उनके द्वारा उच्चारित शापवाणि सच हो जाती है, ऐसी धारणा प्रचलित रहने के कारण लोग उन्हें सीधे सीधे बोलने से डर रहे थे।

ईश्‍वरभक्ति में पूरी तरह लीन हो चुके रामकृष्णजी को डर मालूम ही नहीं था। यह खुसुरफुसुर सुनकर वे सीधे जाकर हलधारी से मिले और उन्होंने ठेंठ इस विषय का ज़िक्र किया और ‘तुम जो कर रहे हो, वह ग़लत ही है’ ऐसा हलधारी को स्पष्ट रूप से कह दिया।

हलधारी क्रोधित हुए और ‘तुम मेरे छोटे चचेरे भाई होकर भी मुझे ही दोष दे रहे हो, यह बराबर नहीं है। इस ग़लती की सज़ा तुम्हें अवश्य मिलेगी’ ऐसा कहकर उन्होंने गुस्से में – ‘तुम्हारे मुँह से खून निकलेगा….’ ऐसी शापवाणि कही।

पूजन-उपासनारामकृष्णजी ने उन्हें शान्त करने की कोशिश की कि ‘मैं तुमपर दोषारोपण करने के लिए यह नहीं कह रहा हूँ, बल्कि तुम्हारे बारे में जो खुसुरफुसुर चल रही है, वह तुम तक पहुँचाने आया हूँ’; लेकिन इस स्पष्टीकरण से हलधारी सन्तुष्ट नहीं हुए और उनका चढ़ा हुआ पारा नीचे नहीं उतरा। तब रामकृष्णजी ने उन्हें मनाना छोड़कर वे वापस लौट आये।

उसी दौर में रामकृष्णजी ने हठयोग का अभ्यास शुरू किया ही था और वे हररोज़ उसकी साधना करते थे। वैसे ही उन्होंने उस दिन भी शुरू की।

लेकिन थोड़े ही समय में उन्हें उनके मुँह में तालु की जगह एक अजीब सा जलन का एहसास हुआ….

देखा, तो उनके मुँह से खून टपक रहा था….!

यह शायद, वे उस दौर में हठयोग की जो कठोर उपासनाएँ कर रहे थे, उसका परिणाम हो सकता है, ऐसा मत कई अभ्यासकों ने व्यक्त किया है। लेकिन हलधारी ने इस शापवाणि का उच्चारण करने के ठीक बाद ही यह क्यों घटित हुआ, इसका कोई जवाब नहीं था।

रामकृष्णजी ने हालाँकि मुँह में कपड़े का गोला ठूसकर वगैरा देखा, लेकिन खून बहना बन्द ही नहीं हो रहा था। आगे चलकर रामकृष्णजी ने ही एक बार अपने शिष्यों को यह घटना बयान करते हुए ऐसा कहा कि ‘यह खून गहरे लाल रंग का था और वह इतना गाढ़ा था कि उसकी थोड़ीसी ही बूँदें ज़मीन पर गिरीं होंगी। बाकी खून मुँह में ही जमा हो रहा था।’

देखते देखते यह ख़बर मंदिर-परिसर में फैल गयी कि भट्टाचार्यजी के मुँह से खून निकल रहा है और फिर उनके इर्दगिर्द देखनेवालों की भीड़ जमा हुई। हलधारी तक भी यह ख़बर पहुँच गयी और वे शाम का नित्य पूजाचार ख़त्म करके दौड़े ही वहाँ पर आ गये। रामकृष्णजी ने उन्हें देखकर रोते रोते ही – ‘बंधु, देख तुम्हारे शाप ने मेरी क्या हालत बना दी है’ ऐसा उन्हें सुनाया।

तब तक उनका ग़ुस्सा ठण्ड़ा हो चुका था। इस कारण, रामकृष्णजी के मुख से बह रहे खून को देखकर उन्हें भी बहुत बुरा लगा और वे रोने लगे।

उतने में ही यह ख़बर, मंदिरपरिसर में ठहरे एक ज्ञानी साधु तक पहुँची। उस समय तक दक्षिणेश्‍वर कालीमंदिर अच्छाख़ासा मशहूर हो चुका होने के कारण, आगे गंगासागर तक जाना चाहनेवाले कई तीर्थयात्री, साधु, बैरागी यहाँ पर थोड़ा आराम करके ही अगला प्रवास शुरू करते थे। उन्हीं में से एक ये साधु थे।

उन्होंने आकर यह वाक़या देखा और खून का रंग तथा रक्तस्राव का स्रोत देखकर उन्होंने दृढ़तापूर्वक कहा कि ‘भगवान का शुक्रिया अदा करो कि यह दरअसल आपके भले के लिए ही घटित हुआ है। गत कई दिनों से आप जो हठयोग की साधनाएँ कर रहे हैं, उसीका यह परिणाम मालूम होता है। आप जिस मनस्विता से ये साधनाएँ कर रहे हैं, वह देखकर मुझे लगता है कि उस साधना से आपकी सुषुम्ना नाडी जागृत हुई होगी और वह रक्तप्रवाह तेज़ी से आपके मस्तिष्क की ओर निकल पड़ा था। वह यदि मस्तिष्क तक पहुँचता, तो या तो आप जडसमाधि-अवस्था में चले गये होते या फिर मस्तिष्क में रक्तस्राव होकर आपकी जान को ख़तरा भी पैदा हो चुका होता। लेकिन बीच में ही, कैसे राम जाने, लेकिन वह प्रवाह आपके मुँह से बाहर निकला, जिसके कारण आपकी जान बच गयी। मुझे लगता है कि आपके हाथों कोई लोकोत्तर ईश्‍वरी कार्य करवाया जानेवाला है, इसी कारण उस देवीमाता ने आपकी जान बचायी।’

इस प्रकार, जो श्रद्धावान के जीवन में नित्यनियमित रूप में घटित होता दिखायी देता है, वह रामकृष्णजी के साथ भी घटित हुआ था। श्रद्धावानों के बारे में घटित होनेवालीं विपरित घटनाओं का उपयोग भी ईश्‍वर उनके भले के लिए ही करते हैं, यह बात यहाँ पर सुस्पष्ट रूप से दिखायी दी थी। हलधारी की शापवाणि सच होती थी ऐसा माना भी, तो भी – रामकृष्णजी जिस आध्यात्मिक स्तर पर थे, उस स्तर पर के इन्सान को शायद वह बाधित न भी हुई होती। लेकिन रामकृष्णजी को संभवतः उनकी कठोर हठयोगसाधना के कारण हो सकनेवाला एक और बड़ा ख़तरा टालने के लिए शायद, इस शापवाणि का भी परस्पर उपयोग कर लिया गया हो, ऐसा माना जा सकता है।

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