परमहंस- ४३

गदाई हालाँकि घर वापस लौटा था और माँ की प्यारभरी देखरेख में उसकी तबियत हालाँकि सुधरने लगी थी, मग़र फ़िर भी उसकी मानसिक स्थिति में कुछ भी बदलाव आने के आसार दिखायी नहीं दे रहे थे।

भौतिक दुनिया

जब वह हररोज़ उठकर स्मशान में जाकर बैठता है, इस बात का माँ को पता चला, तब उसके सीने की धड़कन ही मानो रुक गयी और ‘कहीं इसपर किसी भूतप्रेत का साया तो नहीं है’ इस विचार से उस भोलीभाली माँ ने उसके इलाज के लिए आसपास के गाँवों में मशहूर होनेवाले मांत्रिक-तांत्रिक भी बुलाये। उन्होंने रामकृष्णजी पर उनके नित्य उपचार करके देखे, लेकिन उसका भी कुछ उपयोग हो रहा दिखायी नहीं दे रहा था। लेकिन उनमें से एक माहिर मांत्रिक ने – ‘इसपर किसी भी भूतप्रेत का साया नहीं है’ इसका यक़ीन दिलाया, तब जाकर कहीं माँ के कलेजे को ठँड़क पहुँची।

इसी दौरान गदाई से मिलने आये एक परिचित से हुई चर्चा में एक नया ही ‘उपाय’ सामने आया – ‘गदाई की शादी करा दो’!

‘भौतिक दुनिया में रुचि खोये हुए गदाई की वह रुचि यदि वापस लानी हो, तो उसकी शादी करा दो। एक बार घरगृहस्थी के चक्कर में पड़ गया और परिवार की ज़िम्मेदारी कँधे पर पड़ गयी, तो फ़िर अपने आप ही उसका जीवन से हट गया चित्त पुनः ठिकाने आ जायेगा’ यह ‘अक्सीर सांसारिक इलाज’ उसकी माँ को भी रास आया।

इसपर घर में बहुत चर्चा हुई और जल्द से जल्द इस निर्णय पर अमल करने के प्रयास शुरू हुए। गदाई के लिए लड़की ढूँढ़ो, यह बात रिश्तेदारों को बतायी गयी। आसपास के गाँवों में भी गदाई के लिए लड़की की खोज शुरू हुई। लेकिन इसका पता यदि गदाई को चला, तो वह कहीं कुछ उल्टासीधा न कर बैठें, इस विचार से उसे इसके बारे में पूर्णतः अँधेरे में रखा गया था।

लेकिन जितना लगा, उतना यह काम आसान नहीं साबित हुआ। शादी की उम्र की लड़कियाँ हालाँकि मिल गयीं, लेकिन शादीब्याह के मामलों में हमेशा व्यवहारी विचार करनेवाली इस दुनिया ने यहाँ पर भी व्यवहार की नापतोल करना शुरू किया था।

रामकृष्णजी की शादी होने के आड़े आ रही थी, वह उनकी ग़रिबी। रामकृष्णजी का परिवार आसपास के इलाके में विख्यात होने के कारण उनकी ग़रिबी भी दुनिया जानती थी। उस समय वहाँ के समाज में शादी तय करते समय, लड़के ने लड़कीवालों को ‘दहेज’ देने की परिपाटि थी। लेकिन रामकृष्णजी के घरवालों की गरिबी के बारे में जानते होने के कारण, उनसे दहेज मिलने की गुंजाईश बहुत ही कम थी; और यदि दहेज मिला भी, तो भी वह बिलकुल कम आयेगा इस बात की निश्‍चिति थी। इस कारण उनके घर लड़की देने से लोग टालमटोल कर रहे थे।

….और सबसे बड़ा कारण था – रामकृष्णजी की विद्यमान मानसिक स्थिति और विचित्र प्रतीत होनेवाला आचरण। रामकृष्णजी द्वारा दक्षिणेश्‍वर कालीमंदिर में अपनायी जानेवालीं उपासनापद्धतियों के बारे में और अन्य समय के आचरण के बारे में भी नानाविध प्रवाद आसपास के गाँवों में फ़ैल गये थे। इस कारण भी अपनी बेटी उनके घर में ब्याहने से लोग डर रहे थे।

जैसे जैसे दिन गुज़रने लगे, वैसे वैसे चंद्रादेवी का सब्र टूटने लगा। यहाँ पर रामकृष्णजी को हालाँकि घरवालों ने अँधेरे में रखा था, मग़र फ़िर भी उन्होंने जो जानना था वह जान लिया ही था….केवल वे कुछ भी न दर्शाते हुए घरवालों के क्रियाकलापों के मज़े ले रहे थे।

लेकिन कई दिनों बाद भी इन प्रयासों को सफ़लता न मिलने के कारण, घरवालों का शुरुआती दौर का उत्साह कम होकर उसकी जगह निराशा छाने लगी, तब उनका मन तड़प गया और उन्होंने घरवालों से इस मायूसी का कारण पूछा।

मजबूरन घरवालों नें अपनी चिन्ता का कारण बताया – ‘तुम्हारी शादी की कोशिश में हैं, लेकिन सुयोग्य लड़की अब तक मिल नहीं रही है।’
….लेकिन इसपर, उन्हें जैसा लगा वैसा रामकृष्णजी का प्रतिकूल प्रतिसाद (रिस्पाँज) हरगिज़ नहीं था!

….उलटे रामकृष्णजी की ज़ुबान से शब्द निकले –

‘तुम लोक नाहक समय जाया कर रहे हो। मेरी नियत पत्नी, जयरामबटी गाँव में (कामारपुकूर से २-३ मील पर होनेवाला एक गाँव) रामचंद्र मुखोपाध्यायजी के घर में मेरी राह देख रही है….!’

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