परमहंस- २९

बड़े भाई की मृत्यु के पश्‍चात्, दक्षिणेश्‍वर कालीमातामंदिर का प्रमुख पुजारी बन जाने पर गदाधर का आंतरिक प्रवास अब एक विशिष्ट दिशा में तेज़ी से होने लगा था। मंदिर में होनेवाले सेवाकर्मी और वहाँ पर नियमित रूप में आनेवाले अन्य लोग भी अब उसकी ओर सम्मान की भावना से देखने लगे थे।

लेकिन गदाधर को इस सारे मानसम्मान से कोई लेनादेना नहीं था। उसे तो बस्स, कालीमाता के प्रत्यक्ष दर्शन की आस लगी थी और दिनबदिन उसकी यह आस बढ़ती ही जा रही थी, जिस कारण उसका अधिकांश समय भावोत्कट अवस्था में मंदिर में ही व्यतीत होता था। कालीमाता को तो वह मनचाहे फ़ूलों से आदि सुशोभित करता ही था;

लेकिन नित्यपूजन करते हुए भी, मंत्रोच्चारण के समय उसे उस उस मंत्र के आशय का अनुभव होता था, ऐसा बताया जाता है। उदाहरण के तौर पर, अग्नि से संबंधित मंत्र का उच्चारण करते समय उसे, उसकी चहुँ ओर वर्तुलाकार अग्निकंकण है ऐसा प्रतीत होकर, वह उसके बीचोंबीच बैठकर पूजन करता हुआ खुद को देखता था।

कालीमाता की प्रत्यक्ष भेंट की उसकी आस बढ़ती ही जा रही थी। ‘हे माता, हे भवतारिणी! तुम यदि यहीं पर हो, तो मुझे दिखायी क्यों नहीं देती? इससे पहले कई लोगों को तुम्हारे दर्शन होने की कथाएँ सुनी हैं, फ़िर मुझे ही क्यों नहीं? मैं कहाँ कम पड़ रहा हूँ?’ यह सवाल उसका मन आक्रंदन करते हुए माता से अक़्सर पूछने लगा था।

लेकिन उसकी ऐसी स्थिति कालीमाता के दैनंदिन पूजन तक ही सीमित नहीं थी। दैनंदिन पूजनकाल के अलावा, अन्य समय में भी अब वह अधिक से अधिक बेचैन होने लगा था।

मग़र उसके ये प्रयास यहीं पर रुके नहीं थे। पूजन संपन्न होने के बाद जब आम लोग खाना खाकर आराम करने की तैयारी में रहते थे, तब गदाधर अकेला ही मंदिरसंकुल के नज़दीक होनेवाले, एक ऊबड़खाबड़, पथरिले, घनी झाड़ी रहनेवाले ‘पंचवटी’ नामक इला़के में ध्यानधारणा के लिए जाता था। ध्यानधारणा के लिए आवश्यक रहनेवाला एकान्त उसे मंदिर में न मिलने के कारण उसने इस निर्जन स्थान को चुना था। यहाँ पर कुछ समय बीताकर वह पुनः मंदिरसंकुलस्थित अपने कमरे में लौट आता था।

उसकी इस बढ़ती भावावस्था के कारण हृदय हालाँकि अधिक से अधिक चिंतित होने लगा था, मग़र फ़िर भी गदाधर की सेवा वह बिना चूके कर रहा था।

अपने मामा दोपहर को पंचवटी की दिशा में जाते हैं, यह हृदय जानता था, लेकिन उसने कभी इसकी वजह मामा से नहीं पूछी थी। लेकिन एक दिन उसे बहुत बड़ा झटका लगा।

उस रात बीच में ही उसकी नींद खुल गयी, तब उसे पता चला कि गदाधर अपने बिस्तर में नहीं है। वह हैरान हो गया। इतनी रात गये मामा कहाँ गये होंगे, वह उसकी समझ में नहीं आ रहा था। गये होंगे कहाँ पर, ऐसा सोचते हुए थोड़ी देर राह देखने पर वह सो गया।

लेकिन इसी बात का दो-तीन बार अनुभव करने के बाद हृदय का कौतुहल जाग गया और उसने एक दिन चोरीछिपे मामा का पीछा करने का तय किया।

उस रात हृदय नींद में होने का बहाना करके बिस्तर पर लेटा था। हररोज़ की तरह नियत समय पर गदाधर उठा और दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गया। उसके पीछे पीछे हृदय भी कमरे से बाहर निकला और उसने हल्के से, कदमों की आवाज़ न करते हुए गदाधर का पीछा करना शुरू किया।

लेकिन गदाधर को तो – ‘अपना पीछा किया जा रहा है’ ऐसी किसी बात भी का भान नहीं था। वह ज़रासी भावावस्था में ही, लेकिन किसी ध्येय से प्रेरित हुआ हो इस क़दर तेज़ी से चल रहा था। थोड़ी देर बाद गदाधर ने पंचवटी में प्रवेश किया, यह हृदय ने देखा और वह दुविधा में पड़ गया। लेकिन पंचवटी में प्रवेश करने का साहस उससे नहीं हो रहा था।

इस कारण इस वाक़ये पर विचार करते हुए वह धीरे धीरे अपने कमरे में लौट आया….

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