फ्रान्स के राष्ट्राध्यक्ष इमैन्युएल मैक्रॉन ने रक्षाखर्च में की ४० प्रतिशत बढ़ोतरी – साल २०२४ से २०३० के लिए होगा ४०० अरब युरो से अधिक प्रावधान

पैरिस – फ्रान्स की स्वतंत्रता, सुरक्षा, समृद्धि और विश्व में स्थान बरकरार रखने के लिए रक्षा तैयारी ज़रूरी है, यह कहकर राष्ट्राध्यक्ष इमैन्युएल मैक्रॉन ने देश के रक्षा खर्च में ४० प्रतिशत बढ़ोतरी करने का ऐलान किया। साल २०२४ से २०३० के लिए यह बढ़ोतरी होगी, यह मैक्रॉन ने स्पष्ट किया। राष्ट्राध्यक्ष मैक्रॉन के प्रस्ताव के अनुसार इस दौरान फ्रान्स रक्षा के लिए ४१३ अरब युरो का भीषण प्रावधान करेगा। परमाणु अस्त्र, मिलिटरी इंटेलिजेन्स और ड्रोन्स को प्राथमिकता दी जाएगी, ऐसा भी मैक्रोन ने स्पष्ट किया।

शीतयुद्ध के बाद निर्मान हुआ शांति का युग अब खत्म हो चुका है, यह इशारा देकर फ्रेंच राष्ट्राध्यक्ष ने रक्षा तैयारी की अहमियत रेखांकित की। भविष्य में फ्रान्स को ‘हाय इन्टेन्सिटी कॉन्फ्लिक्ट’ जैसे विभिन्न खतरों का सामना करना पड़ सकता है, इसका अहसास मैक्रॉन ने कराया। साल २०१९ से २०२५ के लिए फ्रान्स ने रक्षाखर्च के लिए २९५ अरब युरो का प्रावधान किया था। लेकिन, यह अवधि खत्म होने से पहले ही फ्रेंच राष्ट्राध्यक्ष ने रक्षाबलों का खर्च बढ़ाने का कदम उठाया है।

युद्ध का स्वरूप तेज़ी से बदल रहा है। इसकी वजह से मौजूदा सदि के विभिन्न खतरों के लिए फ्रान्स को वर्तमान और भविष्य में भी रक्षाबलों को मुस्तैद रखना पडेगा। फ्रान्स ने हमेशा भविष्य के युद्ध के लिए तैयार रहना पडेगा’, इन शब्दों में मैक्रॉन ने रक्षाबलों के लिए किए गए इस बड़े प्रावधान की भूमिका स्पष्ट की। ‘फ्रान्स ने प्राप्त किए परमाणु अस्त्र यूरोप के अन्य देशों से फ्रान्स को अलग साबित करनेवाली शक्ति है। यूक्रेन में जारी संघर्ष की पृष्ठभूमि पर इसकी अहमियत बढ़ी है’, यह कहकर परमाणु अस्त्रों के आधुनिकीकरण को अहमियत दी जाएगी, ऐसा फ्रेंच राष्ट्राध्यक्ष ने कहा। परमाणु अस्त्रों के अलावा मिलिटरी इंटेलिजेन्स और ड्रोन्स निर्माण पर जोर देने की जरुरत है, यह भी राष्ट्राध्यक्ष मैक्रॉन ने अपने भाषण में कहा।

रशिया-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि पर अमरीका और यूरोपिय देशों ने यूक्रेन को भारी मात्रा में हथियारों की आपूर्ति की है। अगले कुछ महीने यह आपूर्ति करनी पडेगी, ऐसे संकेत भी हैं। इस सहायता की वजह से यूरोपिय देशों का रक्षा सामर्थ्य कम होने के दावे विभिन्न रपटों से सामने आ रही हैं। इसकी वजह से यूरोप के अधिकांश शीर्ष देशों को अपना रक्षा खर्च बढ़ाना पड रहा है। पिछले कुछ महीनों में जर्मनी और ब्रिटेन ने भी रक्षाखर्च बड़ी मात्रा में बढ़ाने का ऐलान किया था।

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