संयुक्त राष्ट्र को ख़त लिखने से हालात नहीं बदल सकते : भारत की पाकिस्तान को फटकार

नई दिल्ली, दि. १ (पीटीआय) – भारतीय सुरक्षाबलों द्वारा जम्मू-कश्मीर में किये जानेवाले तथाकथित ज़ुल्मों का मुद्दा उठाने के लिए पाकिस्तान ने दुनिया के प्रमुख देशों में अपने २२ सांसद भेजने का निर्णय लिया था| पाकिस्तान के इस निर्णय पर भारत ने प्रतिक्रिया दी है| ‘विदेश में २२ लोगों को भेजने से अच्छा, ‘पाकिस्तान सीमापार आतंकवाद की निर्यात नहीं करेगा’ ऐसा संदेश देकर यदि पाक़िस्तान एक ही दूत भेजता, तो वह ज़्यादा अच्छा होता’ ऐसा भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा| साथ ही, कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र को पाकिस्तान कितने भी ख़त भेजेगा, तो भी हालात में बदलाव नहीं होगा, ऐसा स्वरूप ने कड़े शब्दों में कहा|

संयुक्त राष्ट्र पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने संसद के २२ सदस्यों को प्रमुख देशों में भेजने की घोषणा की थी| जम्मू-कश्मीर में भारतीय सुरक्षाबलों द्वारा किए जानेवाले तथाकथित अत्याचारों के खिलाफ़ ये सांसद प्रमुख देशों के पास शिक़ायत दर्ज़ करनेवाले हैं| कश्मीर मुद्दे की ओर दुनिया का ध्यान खींचने के लिए प्रधानमंत्री शरीफ ने यह निर्णय लिया है, ऐसा कहा जा रहा है| इसपर बात करते समय विकास स्वरूप ने पाकिस्तान को तीख़े शब्दों में ताना मारा कि पाकिस्तान ने २२ सांसदों को अलग अलग देशों में भेजने से अच्छा, आतंकवाद के सिलसिले में सही संदेश लेकर एकही दूत भेजा होता| ‘सीमा के पार की जा रही आतंकवाद की निर्यात हम रोक रहे हैं’ यह संदेश देकर पाकिस्तान एक ही दूत सही जगह पर भेजता, तो उनके लिए यह फ़ायदेमंद साबित होता’ ऐसा दावा स्वरूप ने किया|

साथ ही, संयुक्त राष्ट्र को बार बार खत भेजनेवाले पाकिस्तान की नीति पर भी विकास स्वरूप ने हमला किया| ‘पाकिस्तान चाहे इस तरह के कितने भी ख़त भेजता रहें, तो भी हालात बदलनेवाले नहीं हैं| जम्मू-कश्मीर भारत का अविभाज्य भूभाग था और आगे भी रहेगा’ ऐसा स्वरूप ने ज़ोर देकर कहा| इस दौरान, पाक़िस्तान के प्रधानमंत्री ने २२ सदस्यों को विदेश भेजने का निर्णय लेकर भूल की है, ऐसा दावा पाकिस्तान की मीडिया ने किया है| ‘जिन सांसदों को अपने मतदार क्षेत्र के मसले सुलझाने नहीं आते, क्या वे कश्मीर का मुद्दा सुलझा सकते हैं?’ ऐसा सवाल विश्‍लेषक कर रहे हैं| ‘यही नहीं, बल्कि जिन सांसदों को अँग्रेज़ी बोलना तक नहीं आता, क्या वे दूसरे देश में जाकर कश्मीर की दलील पेश कर सकते हैं?’ ऐसा सवाल ये विश्‍लेषक पूछ रहे हैं|

लेकिन कुछ लोग, ‘इसके पीछे प्रधानमंत्री नवाझ शरीफ की राजनीति है’ ऐसा इल्जाम लगा रहे हैं| ‘भ्रष्टाचारों के इल्ज़ामों से घिरे और पाकिस्तानी सेना के साथ साथ, विरोधी पक्ष के असंतोष का भी सामना कर रहे प्रधानमंत्री शरीफ, अपनी सरकार बचाने की जानतोड़ कोशिश कर रहे हैं| इसके लिए अपनी मर्ज़ी के २२ सांसदो को, विदेश सफर कराने की योजना प्रधानमंत्री शरीफ ने रची है| कश्मीर के बहाने, खासदारों को विदेश सफर भेजा जाए, तो अपनी कुर्सी बनी रहेगी, ऐसा शरीफ को लग रहा है| इसके लिए उन्होंने यह निर्णय लिया है’ ऐसा इल्जाम विश्‍लेषक लगा रहे हैं|

शरीफ के इस निर्णय की वजह से, ‘पाकिस्तान सरकार कश्मीर मुद्दे पर गंभीर नहीं है’ ऐसा संदेश दुनिया को मिल रहा है, ऐसा अफ़सोस पाकिस्तानी विश्‍लेषक जता रहे हैं|

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