वायरलेस ट्रान्समिशन और डॉ. टेसला

pg12_ll_rad_tescoil02आदिकाल से लेकर आज के आधुनिक युग तक मानव समाज ने एक-दूसरे के संपर्क में रहने के लिए, जानकारी हासिल करने के लिए विभिन्न प्रकार के भिन्न-भिन्न साधनों का उपयोग किया। आज के आधुनिक युग में मोबाईल फ़ोन्स  तथा इंटरनेट सर्फिंग  ये सब कुछ इसी प्रकार महत्त्वपूर्ण हैं, एवं एक-दूसरे के संपर्क में रहने के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण साधन माना जाता हैं। आज पाँच वर्षीय बालक भी बड़ी ही सहजता से टॅबलेट का उपयोग करते हुए तथा इंटरनेट सर्फिंग  करते हुए हम देखते हैं। परन्तु मोबाईल फ़ोन , इंटरनेट, वायर-फ्री  इंटरनेट (वाय-फाइ) इस संकल्पना का सच्चा श्रेय सही मायने में जाता है हमारे अपने नायक डॉ. निकोल टेसला को।

कोलोरॅडो में ‘अल्टरनेटिंग करंट पावर डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम’ (ए/सी) बस उसी समय विकसित की गई थी। मुख्य तौर पर देखा जाये तो इसके लिए किसी भी तरह से पैसों की बात न करते हुए डॉ.टेसला के प्रयोगशाला के लिए आवश्यक उतना ही विद्युतभार संवाहन करने का उनके मित्र ने, कर्टिस ने उन्हें आश्‍वासन दिया। इसी लिए १८९९ में डॉ. टेसला ने कोलोरॅडो स्प्रिंग्ज में अपनी प्रयोगशाला बनाई। कोलोरॅडो में ही डॉ.टेसला ने विभिन्न प्रकार विषयों पर अलग-अलग प्रयोग किए।

ऐसे ही एक प्रयोग के समय दुनिया की हर एक वस्तु में ‘फ्रीक्वेंसी ’ होती है, इस बात की खोज डॉ. टेसला ने करके दिखायी। इसका सीधा-सादा अर्थ इस प्रकार है कि काँच की गिलास से लेकर पत्थरों तक  हर एक में विशिष्ट प्रकार की लहरें होती हैं। इसके लिए हम एक उदाहरण देखते हैं। किसी गायक ने अपने सूरों के बल पर काँच की गिलास के टुकड़े कर दिए थे और आगे चलकर इसी बात को विज्ञान ने भी सिद्धकर दिखाया यह हमने देखा है। ऐसा क्यों होता है? जब गिलास के अंदर की लहरों के साथ गायक के सूर की लहरों के कंपन एकरूप हो गये, तब गिलास के टुकड़े हो गए।

pg12_tesla-radio-patentपरन्तु बात केवल यही पर खत्म होती हैं, ऐसा नहीं है। आज के समय की इमारतें, पूल अथवा बिलकुल गाड़ियों के इंजन भी इसी तरह से डिझाईन किए गए होते हैं कि उनमें होने वाले घटकों का यांत्रिक कंपनों में से आनेवाले लहरें एवं उनकी मूल रुपरेखा अथवा मोटरों से निकलने वाली तरंग लहरीं एक दूसरे के साथ मेल नहीं खातीं। ‘रेझोनंट डिझास्टर’को टालने के उद्देश्य से ऐसी रचना की गई होती है। भूकंप आने पर इमारतें अथवा पूलों का जो नुकसान होता है, उसके पिछे भी यही कारण होता है।

इस फ्रीक्वेंसी  की खोज़ करना उस समय का एक बहुत बड़ा कार्य था और कोलोरॅडो स्प्रिंग्ज के इस प्रयोग से निकलने वाला निष्कर्ष डॉ.टेसला के भविष्य में होनेवाले संशोधन के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण था।

कोलोरॅडो में डॉ.टेसला ने अनेक ट्रांसफार्मर्स बनाये और इसके पश्‍चात् ‘इलेक्ट्रिकल सर्किट’ पर नया संशोधन शुरु किया. इसी समय डॉ.टेसला ने ‘इलेक्ट्रिकल एनर्जी’ पकड़ सके, इस प्रकार के विलक्षण उपकरणों की निर्मिती की यह एक असामान्य, विलक्षण प्रकार की संकल्पना थी। आसान शब्दों में कहें तो डॉ.टेसला ने सीधे इलेक्ट्रिसिटी का ‘रेडिओ’ बनाया था।

आज हम रेडिओ पर यदि कोई गाना सुनते हैं, तब उसके लिए हमें किसी निश्‍चित ‘रेडिओ स्टेशन’ पर उसे टयून करना पड़ता है। डॉ. टेसला ने इलेक्ट्रिसिटी के बारे में भी बिलकुल यही किया। काली-अंधेरी रात को इलेक्ट्रिसिटी के बल पर प्रकाशित कर देने का काम तथा रात्रि को दिन में रूपांतरण करने का सपना डॉ. टेसला देख रहे थे। इसके लिए आवश्यक उर्जा की आपूर्ति सीधे आकाश से प्राप्त हो सके इसीलिए उन्होंने इस प्रकार के अनोखे यंत्रणा को, वातावरण से प्रवाहित होने वाली उर्जा का लहरों के साथ संपर्क स्थापित कर के विद्युतभार संवाहन किया जा सके, इस प्रकार की दिल को दहला देने वाली योजना बना रखी थी।

इससे पहले बिजली के ‘वायरलेस ट्रान्समिशन’ के लिए डॉ.टेसला ने ‘टेसला कॉईल्स’ की निर्मिति की थी। परन्तु कोलेरॅडो स्प्रिंग्ज में किए जाने वाले संशोधन के समय डॉ.टेसला ने आकाश में से ऐसी कृत्रिम बिजली कि निर्मिति की थी कि जिस में सतत लाखों व्होल्टेज बिजली का पूरे १३५ फीट लम्बाई तक उत्सर्ग चलता रहेगा। इस प्रकार से निर्माण किए गए बिजली से उत्पन्न होनेवाली गड़गड़ाहट १५ मील की दूरी पर होने वाले कोलोरॅडो के क्रिपल क्रिक तक सुनाई दे रहा था।

रास्ते पर इस तरह बिजली के अँगारे उड़ रहे थे, इससे राह में चलने वाले नागरिकों को आश्‍चर्य चकित होने के साथ-साथ कितनी ‘हैरानी’ भी हुई होगी, इस की कल्पना करना ही उचित होगा! इस वजह से निर्माण होने वाली कंपन घर में पानी के मल को स्पर्श करने पर भी इसका अहसास होता था। उसी तरह प्रयोगशाला से १०० फुट की दूरी पर ‘स्विच ऑफ’ होनेवाले बल्ब भी जल उठे थे। इतने बड़े पैमाने पर बिजली निर्मिती करने के पश्‍चात् भी यह बिजली अनुपयोगी अथवा धोखादायक नहीं थी। कारण तितलियों के समान छोटे जीवों को भी इस बिजली के करंट से बचाया गया था। कहने का ताप्तर्य यह है कि बिजली के करंट्स् से उन्हें किसी भी प्रकार की चोट नहीं आई थी।

परन्तु इस करंट्स के कारण कोलोरॅडो स्प्रिंग्ज शहर के उर्जा कंपनी का जनरेटर जलकर खाक हो गया था। इसके लिए डॉ.टेसला को उस कंपनी को स्वखर्चे से जनरेटर बनाकर देना पड़ा। इसके बाद ही इस कंपनी ने उन्हें पुन: एक बार विद्युतभार संवाहन करने की अनुमति प्रदान की। डॉ.टेसला ने इस घटना का उल्लेख, अगस्त १९१७ में प्रसिद्ध होने वाले ‘द इलेक्ट्रिकल एक्सपरिमेंटर’ इस विज्ञान के बारे में नियतकालिका में किया। ‘सैंकडों किलो वॅट ‘उच्च लहरियों के’ ऊर्जा को मुक्त करने के पश्‍चात् छ: मील की दूरी पर होनेवाले बिजली प्रकल्प के डायनॅमोज जल गये। ज़बरदस्त हाय फ्रीक्वेंसी  करंट्स तथा इसके कारण निर्माण होने वाली बड़ी-बड़ी चिंगारियों के कारण इन्शुलेशन पूर्णत: जल गया।’ डॉ.टेसला ने इस प्रकार लिखकर रखा है। कोलोरॅडो स्प्रिंग्ज के उर्जा कंपनी में होने वाले इस छोटे प्रसंग के बाद उन्होंने अपने प्रयोग शुरु कर दिए।

१९०१ में मार्कोनी द्वारा पहली बार ही ट्रान्सअटलांटिक रेडिओ प्रसारण करने का समाचार प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार से रेडिओ प्रसारण करना असंभव प्राय: मानाजाता था। परन्तु मार्कोनी ने यह कर दिखाया, इस प्रकार की चर्चा फ़ैल  गई थी। मार्कोनी ने किस तरह रेडिओ का प्रसारण किया, ट्रान्सअटलांटिक सिग्नल परिवहन कैसे किया, इस विषय में काफ़ी कुछ लिखा गया। इस संशोधन के कारण वायरलेस टेलीग्राफी संभव कर संपर्क स्थापित करना आसान होने वाला था। इन सारी बातों का अंदाजा लगाकर मार्कोनी ने पैसों के लिए रेडिओ प्रसारण के पेटंट्स का सौदा किया।

यह इतिहास हर कोई जानता है। परन्तु १८९३ में मिसौरी के सेंट लुईस और फिलाडेल्फिया के फ्रेंक्लिन इन दो शहरों में डॉ. टेसला ने ‘वायरलेस पॉवर’ यंत्रज्ञान के द्वारा दैनिक जीवन में जानकारियों का आदान-प्रदान भी होना संभव हो सकता है, यह घोषणा की थी। इसके पश्‍चात् १९०० में डॉ.टेसला ने ‘वायरलेस ट्रान्समिशन’ का पेटंट भी प्राप्त कर लिया था। मार्कोनी के टेलीग्राफ के पेटंट्स आरंभ में नामंजूर कर दिए गए थे। कालांतर में १९०१ में उन्हें पुन: पेटंट्स दिया गया।

मार्कोनी ने जब वायरलेस टेक्नॉलॉजी का यशस्वी रुप में प्रयोग कर दिखाया, तब डॉ.टेसला ने इसके लिए अपने ही १७ पेटंट्स का उपयोग किया गया है, यह बताया था। (१८९५  में इसी प्रकार के प्रयोग पर काम करते समय, उनकी प्रयोगशाला आग में जल गई थी। उसी प्रकार इस रेडिओ लहरों का उपयोग करके डॉ.टेसला ने रिमोट कंट्रोलद्वारा नाव को दिशा प्रदान की जा सकती है, यह भी कर दिखाया था। आगे चलकर इसी संशोधन पर मार्कोनी ने १८९८ में दावा किया।)

यहीं से रेडिओ के ‘पेटंट्स युद्ध’ का आरंभ हुआ । मार्कोनी द्वारा उपयोग में लाये गए रेडिओं पेटंट्स का मूल अधिकार डॉ.टेसला के पास होने का फैसला १९०३ में किया गया। परन्तु उसके अगले साल ही, १९०४ में उस फैसले में  हेरा-फेरी करके मार्कोनी के पक्ष में फैसला सुनाया गया। डॉ. टेसला के लिए यह सबसे बड़ा आघात था। क्योंकि १९वी तथा २०वी सदी का यह काल इतिहास में रेडिओ युग के रूप में जाना जाता है। इस पेटंट्स युद्ध में अंतत: डॉ.टेसला ही विजयी हुए। परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। १९४३  में अमरीका के सर्वोच्च न्यायालय में डॉ.टेसला के नाम पर रेडिओ का पेटंट्स होने का फैसला सुनाया। ऐसा कहा जाता है कि यह फैसला अर्थात मार्कोनी कंपनी ने प्रथम महायुद्ध में अमेरिकी सरकार के विरोध में किए गए दावों को निष्प्रभ करने की एक कोशिश थी।

डॉ.टेसला के ‘वायरलेस ट्रान्समिशन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी अ‍ॅण्ड इन्फॉर्मेशन’ का सपना यदि उसी समय पूरा हो चुका होता, तो ये सारी बातें क्या आज की स्थिति में अब वैज्ञानिक कथाओं में कल्पनाओं का अंश बन चुकी होती? इस बात का विचार हमें करना चाहिए।
(क्रमश:)

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