श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-४४

गृहस्थी और परमार्थ को एकसाथ आसानी से सफल बनाया जा सके, हर कोई अपने जीवनविकास का मार्ग सहजता से प्राप्त कर सके इसके लिए सद्गुरु साईनाथजी का सगुण ध्यान सहजता से जिस पथ से हो सकता है, वह पथ है साईनाथजी की कथाओं का मार्ग श्री साईनाथ ने अपने श्रद्धावानों के लिए श्रीसाईसच्चरित के रूप में उजागर किया है।

निज-भक्त-कल्याण-हेतु से। यह कृपा की है श्री साईनाथ ने।
मुझे तो बस निमित्त बनाकर आगे कर। स्वयं ही यह सब दिया॥

साईनाथ ने स्वयं ही अपने निजभक्तों के लिए सद्गुरुतत्त्व तक पहुँचनेवाला यह मार्ग स्वयं ही दिग्दर्शित किया है, स्वयं ही इसका निर्माण किया है। ‘यह सब कुछ इस साईराम के प्रेम की ही करनी है’ यही यहाँ पर हेमाडपंत का भाव है। बाबा का अपने श्रद्धावानों के प्रति कितना बेपनाह प्यार है, वही हेमाडपंत बारंबार हम से कहते हैं। बाबा ने कितने प्यार भरे हृदय से मुझ पर असीम कृपा की है, इसी बात को हेमाडपंत यहाँ पर अत्यन्त सुंदर उदाहरण देकर स्पष्ट कर रहे हैं।

साईबाबा, श्रीसाईसच्चरित, सद्गुरु, साईनाथ, हेमाडपंत, शिर्डी, द्वारकामाईजिस तरह गाय का थन दूध से भरकर छलकता रहता है, परन्तु बछड़े-बछिया के बिना उसमें से दूध की धार नहीं निकलती है, अपने बछड़े-बछिया के अलावा अन्य किसी को भी वह अपना दूध नहीं पीने देती। बिलकुल वैसी ही चाह है श्री साईनाथ की अपने बच्चों के प्रति।

गाय का थन दूध से भरकर छलक उठा रहता है, फिर भी जब तक उसका बछड़ा जाकर उससे लिपट नहीं जाता है, तब तक वह दूध की धार निकलने नहीं देती। यानी अपने बच्चे के अलावा वह किसी भी अन्य को अपना दूध पीने नहीं देती है। अपने बच्चे को केवल वह देख भी लेती है तब भी उसके थन से दूध की धार बहने लगती है।

हेमाडपंत कहते हैं कि इस उदाहरण के आधार पर ही मैं अपने साईनाथ का मेरे प्रति या अन्य श्रद्धावानों के प्रति होनेवाले प्रेम के बारे में बतलाना चाहता हूँ। मेरे मन में साईनाथ के चरित्र के बारे में लिखने की इच्छा जैसे ही उत्पन्न हुई, मुझ में श्रीसाईनाथ के कथारूपी दूध का पान करने की इच्छा जैसे ही प्रबल हो गयी और ऐसा होते ही मेरे लिए यह कथारूप दूध की धार बाबा के मन से फूट पड़ी औरुसी से इस साईसच्चरित की रचना हो गयी।

अपने बछड़े के प्रेम से जैसे गाय के थन से दूध की धार प्रवाहित हो उठती है, उसी तरह हर एक श्रद्धावान के प्रति होनेवाले प्रेम से साईनाथ ने इन कथाओं का प्रसाद हमें दिया है। गाय स्वयं घूमती-फिरती रहती है, हरेभरे मैदानों आदि में हरीभरी घास चरने के लिए ढूँढ़ते-ढूँढ़ते दूर-दूर तक वह निकल जाती है, स्वयं कष्ट उठाकर वह चारा खाकर उसे पचाकर उससे दूध का निर्माण करती है। यह सब करने में गाय का अपना स्वयं का कोई भी स्वार्थ नहीं होता है।

गाय क्या उसका अपना दूध वह स्वयं पीनेवाली रहती है? नहीं। गाय दूध का निर्माण अपने बच्चे के लिए करती है। अपने बछड़े के लिए स्वयं कष्ट उठाकर, अपने बछड़े को जीवन देने के लिए वह दिन-रात प्रयास करती रहती है। बिलकुल उसी तरह ये साईनाथ भी स्वयं अथक परिश्रम करते हुए इस कथारूपी दूध का निर्माण कर रहे हैं और इसका निर्माण करने में बाबा का बिलकुल भी स्वार्थ नहीं है। यह सब कुछ वे अपने श्रद्धावानों के लिए कर रहे हैं। इसमें यदि कुछ दिखायी देता है तो वह है, साईनाथ के दिल में अपने श्रद्धावान बच्चों के प्रति होनेवाला असीम प्रेम, उनकी आत्मीयता। हमें अपने बाबा के द्वारा हमारे लिए किये जा रहे परिश्रमों का सदैव स्मरण करना चाहिए।

चातक पक्षी की प्यास बुझाने के लिए। जिस तरह आनंद-घन बरसता है।
हमारी तृषा को शांत करने हेतु। साई का प्यार बरस रहा है॥

चातक पक्षी की वह बारिश के दो चार बूँदों की ही प्यास! परन्तु चातक की छोटी सी प्यास बुझाने हेतु यह सावला घन सहस्र धाराएँ बरसाता है। हेमाडपंत कहते हैं कि साईनाथ के प्रेम की एक बूँद भी मेरी प्यास बुझाने के लिए काफी है। परन्तु जैसे चातक के प्रेमवश यह सावला घन सहस्र धाराएँ बरसाता है, बिलकुल उसी प्रकार ये आनंदघन साईनाथ अनंत कथाओं की धारा की वृष्टि कर रहे हैं। साँवले घन के बरसने से चातक की प्यास तो बुझती ही है, परन्तु इसके साथ ही धरती से लेकर, वृक्षों तथा सभी प्राणियों की प्यास भी बुझती है। वैसे ही इन कथारूपी धाराओं से समस्त श्रद्धावानों की प्यास बुझाना यही श्रीसाईनाथ का हेतु है।

यहाँ पर हेमाडपंत के ऋण का भी स्मरण हमें होना चाहिए, क्योंकि निमित्तमात्र भले ही क्यों ना हो, परन्तु उनके द्वारा इस भूमिका का स्वीकार किये जाने से साईकथाओं की वृष्टि हुई और इसी योग से यह वृष्टि हमें प्राप्त हुई। साथ ही हमें साईप्रेम में भिगो देने में भी उनका यह महत्त्वपूर्ण योगदान तो है ही!

साईनाथ के प्रेम का वर्णन करते समय हेमाडपंत की प्रतिभा सचमुच हर प्रकार से खिल उठी है। अब वे माँ के प्रेम का उदाहरण देकर हम पर होनेवाले बाबा के प्रेम का वर्णन कितने स्पष्ट रूप में कर रहे हैं कि बाबा का प्यार हमारे प्रति कैसा है, कितना अपार एवं अनंत है। हेमाडपंत कह रहे हैं कि श्रीसाईनाथ के दिल में भक्त के प्रति इतना अधिक प्रेम है कि भक्त के प्रेम की खातिर ही वे हमें प्रेमरूपी दूध पिलाते रहते हैं, फिर हमारे न माँगने पर भी, वे हमें नव अंकुर ऐश्‍वर्य भरभराकर देते रहते हैं। बिलकुल वैसे ही जैसे माँ ही अपने बच्चे के प्यार की भूखी रहती है, उसे ही अपने बच्चे के बगैर कुछ अच्छा नहीं लगता, बच्चे के न माँगने पर भी वह अपने बच्चे को स्तनपान करवाती रहती है। वैसे ही हमारे न माँगने पर भी हमें इस कथारूपी पयधारा का पान श्रीसाईनाथ करवाते ही रहते हैं। क्योंकि हमें भूख लगी है इस बात का अहसास कभी-कभी हमें नहीं होता है। परन्तु उन्हें इस बात का पूरा-पूरा खयाल रहता ही है और हमें जिस चीज़ की बाखूबी ज़रूरत होती है, वह प्रेमामृत वे हमें स्वयं ही पिलाते रहते हैं।

माँ चाहे कितनी भी थकी हारी क्यों न हो, मग़र फिर भी वह अपने बच्चे को स्तनपान करवाने में विलंब कभी भी नहीं करती। लेकिन बच्चे को इस बात का ज्ञान नहीं होता है कि उसकी माँ कितनी थक चुकी है। आखिर वह भी अपनी माँ के अलावा और किसके पास कुछ माँगेगा? परन्तु माँ है कि वह अपने बच्चे के अलावा अन्य किसी की भी परवाह नहीं करती। बिलकुल उसी प्रकार हमारे अपने प्यारे साईनाथ अपने भक्तों की खातिर निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं। इनके दरबार से कभी भी कोई भी खाली हाथ वापस नहीं लौटता है। बच्चे को गहने आदि पहनाकर सजाना, उसे काजल लगाकर तथा अन्य चीजों से सजाकर उसका कौतुक करना यह केवल माँ ही जानती है। बच्चा भला क्या समझ सकता है? माँ स्वयं ही अपने बच्चे को सजाती है और ऊपर से उसकी प्रशंसा करते हुए ‘मेरा बच्चा कितना सुंदर लग रहा है, कितना प्यारा लग रहा है, कैसा मनोहर लग रहा है, इसे कहीं किसी की बुरी नज़र न लग जाए’ यह कहकर उसकी नज़र भी उतारती है। उसी प्रकार हमारे साईनाथ भी हर किसी के जीवन को मधुर, मनोरम बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं। वे अपने हर एक श्रद्धावान को सद्गुणों से सजाते हैं और स्वयं ही उसका कौतुक भी करते हैं।

परन्तु हमें यहाँ पर एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा स्वयं अपना बनाव शृंगार नहीं करता है और कैसे शृंगार करना है यह भी वह नहीं जानता, यह सब कुछ तो माँ ही करती है। और ऊपर से कौतुक भी माँ ही करती है। वैसे ही भक्तिमार्ग में भी चाहे कितनी भी प्रगति हम क्यों न कर लें, मग़र फिर भी मुझे इस मार्ग पर चलने के लिए तैयार करनेवाला, मुझे सुंदर बनानेवाला, यह मेरा साई ही ही है, इस बात का स्मरण हमें सदैव अपने मन में बनाये रखना चाहिए।

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