श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग-४)

हम आम इन्सान हैं। हमसे छोटी-मोटी गलतियाँ होती ही रहती हैं। लेकिन क्या कभी हम यह सोचते हैं कि हमारे द्वारा की गयीं उन गलतियों के अनुपात में क्या हमें सज़ा मिलती है? जब कभी हम समय निकालकर सोचेंगे तब हमें पता चलेगा कि हमारे साईनाथ कितने क्षमाशील हैं।

इसीलिए साई का धन्यवाद। चाहा यथामति करूँ विशद।
होगा वह भक्तों के लिए बोधप्रद। पापोपनोद होगा।

इस ओवी का सरलार्थ हमने पिछले लेख में देखा। इसका मथितार्थ भी बहुत ही सुंदर है। हेमाडपंत जो यह ओवी कहते हैं, उसका मथितार्थ यह है कि साई का यह धन्यवाद अर्थात साई को यह ‘थँक्स’ कहना मुझे मेरे अनुभवों के अनुसार अधिक महत्त्वपूर्ण लगा क्योंकि भक्तों के द्वारा साई को धन्यवाद करना, बाबा को ‘थँक्स’ कहना यह बात भक्तों को हकीकत में उचित बोध प्रदान करती है, साथ ही पापों का समूल नाश करती है।

परमात्मा का ‘धाक’

बाबा को ‘थँक्स’ कहने में ही सच्चा ‘बोध’ है। हेमाडपंत स्वयं यह अनुभव करते हैं और हम भक्तों को भी पापमुक्ति का सच्चा मार्ग दिखाते हैं, हमारे प्रारब्धभोगों को खत्म करने की मार्ग दिखाते हैं। दर असल हेमाडपंत के माध्यम से साईनाथ ही यह सब कुछ कर रहे हैं।

भक्तों को सच्चा बोध कौन सा होना चाहिए? तो ‘साईनाथ का और उनके ऋणों का सदैव स्मरण बनाये रखना’ यही सच्चा बोध है। यह बोध किस कारण होता है? तो बाबा को ‘थँक्स’ कहने से। बाबा को ‘थँक्स’ कहने से हमारी ‘श्रद्धा’ सुदृढ़ होती है, साथ ही उस ‘थँक्स’ की सक्रियता के कारण ही अर्थात ‘थँक्स’ के साथ ही बाबा की लीलाओं का बारंबार स्मरण करते रहने से ही हमारी ‘सबूरी’ को भी ताकत मिलती है। ‘चाहे जो भी हो जाये, मग़र मेरे बाबा मेरा ध्यान रखने के लिए समर्थ हैं ही और मुझे मेरे संकटों से जल्द से जल्द बाहर निकालने के लिए वे परिश्रम कर ही रहे हैं और इसीलिए मुझे मेरा काम पूरी ईमानदारी के साथ करते हुए बाबा से प्रार्थना भी करते रहना चाहिए।’ इस सबूरी से श्रद्धावान उसके सामने आनेवाले संकटों का रूपांतरण विकास के अवसर रूप में करके अपना स्वयं का विकास करता रहता है।

बाबा को ‘थँक्स’ कहने से हमें श्रद्धा-सबूरी की अहमियत का पता चलता है और ‘श्रद्धा-सबूरी’ दोनों एक साथ अधिक से अधिक दृढ़ होती रहती हैं। बाबा को ‘थँक्स’ कहते रहने से मुझे बाबा का तथा बाबा के ऋणों का सदैव स्मरण रहता है। इससे बाबा की कृपा को अधिक से अधिक स्वीकार करने के लिए मैं सक्षम बनते रहता हूँ और जितने अधिक प्रमाण में साई-श्रीहरि की कृपा मेरे जीवन में प्रवाहित होती है, उतने ही प्रमाण में मेरे प्रारब्धभोग का नाश होता है और मेरे पापों के नाश के साथ-साथ मुझ से नये पापों की निर्मिति भी नहीं होती।

मनुष्य से पाप कब होता है? उत्तर बिलकुल आसान है। सद्गुरुतत्त्व का, भगवान का विस्मरण होने से ही पाप होते हैं। मेरे बाबा का स्मरण मुझे है इसका अर्थ क्या है? इसका अर्थ है- साईनाथ मेरी हर एक क्रिया को, हर एक विचार को, हर एक उच्चारण को देखते ही हैं, उनसे कुछ भी नहीं छिपा है, मेरी कृतियों की पूरी की पूरी खबर उन्हें उसी क्षण होती ही हैं, इस बात का स्मरण रखना।

बाबा के स्मरण का एहसास ही मुझे मेरे पापों से परावृत्त करता है। बाबा के स्मरण के साथ उनका ‘धाक’ भी (उनके मेरे साथ होने का आदरयुक्त भय) मेरे साथ निरंतर होता ही है और बाबा के इस धाक के कारण ही मेरा मन कोई भी पापकर्म करने से परावृत्त हो जाता है। परन्तु जिस पल बाबा का विस्मरण होता है, उसी क्षण बाबा का ‘धाक’ भी मन में नहीं रह जाता और मनुष्य पापकर्म करता है।

हमारे जीवन में बाबा का यह ‘धाक’ सदैव होना बहुत ही ज़रूरी है। बाबा का यह ‘धाक’ ही वह लक्ष्मणरेखा है, जो मेरे भीतर रहने वाली भक्तिरूपी सीता का अपहरण तामसी अहंकाररूपी रावण को नहीं करने देती। यह ‘धाक’ रुपी लक्ष्मणरेखा ही हर तरह के संकट से मेरी रक्षा करती है। परन्तु जब मैं इस ‘धाक’ को मेरे मन से निकाल देता हूँ, तब मैं ही इस लक्ष्मणरेखा को मिटा देता हूँ। मैं उसे पार कर जाता हूँ और यहीं से मेरे प्रारब्धभोगों का दौर शुरू हो जाता है।

हमारे पास कई बार भगवान के प्रति भय की भावना होती है, किन्तु उनका धाक नहीं होता है। ‘यह नहीं किया, वह नहीं किया, तो प्रभु कुपित होंगे, वे नाराज हो जायेंगे’, इसी भय के चक्कर में हम कर्मकांड करते रहते हैं। यह सब कुछ करने में ‘एक बार हमने सब कुछ कर दिया कि हम छूट जायेंगे इनके कोप से’ यह भय की भावना हममें होती है। ‘भय के कारण भक्ति’ ऐसा हम कहते हैं और सच तो यह है कि भय के कारण भक्ति हो ही नहीं सकती।

हम बकरे की, मूर्गे की बलि नहीं चढ़ा पाये इस कारण जो हमपर कुपित होता है वह भगवान हो ही नहीं सकता, क्योंकि भगवान तो सदैव भक्ति से ही प्रसन्न होते हैं। बकरे, मूर्गे आदि जानवरों की बलि से सैतान खुश होगा, भगवान नहीं। हम यदि भय के कारण यह सब कर्मकाण्ड करते हैं तो सर्वप्रथम हमें इन बुरी रूढ़ियों को तुरंत ही रोकना होगा। इस प्रकार के भय को मन में रखकर हम कभी भी सच्ची भक्ती कर ही नहीं सकते।

परमात्मा के इस धाक को ही हमारे जीवन में बनाये रखना चाहिए। बाबा को ‘थँक्स’ कहने से बाबा का एवं बाबा के ऋणों का स्मरण तो हमें होता ही है, पर साथ ही बाबा का धाक हमारे मन में सदैव होने के कारण हमारा मन पाप की दिशा में नहीं जाता। इसीलिए हेमाडपंत इस पंक्ति में ‘पापापनोद’ होगा ऐसा कहते हैं।

श्रद्धा-सबूरी के द्वारा हरिकृपा प्राप्त होने से प्रारब्ध का, पापों का नाश तो होता ही है, परन्तु इसके साथ ही हमारा मन पापकर्म की ओर खींचा ही न जाने के कारण नये पापों का निर्माण ही नहीं होता। हमारे आचार, विचार, आहार एवं विहार उचित ही होते हैं और यह सब बाबा को ‘थँक्स’ कहने से होता है। हम जान सकते हैं कि बाबा को ‘थँक्स’ कहना कितना ज़रूरी है। साथ ही इस ‘थँक्स’ में जो प्रेमभाव है, उसीका तो ये साई भूखा है। उन्हें हमारे ‘थँक्स’ कहने की कोई अपेक्षा नहीं है, बल्कि उन्हें हमारे प्रेम की ही भूख है।

हम सामान्य गृहस्थाश्रमी मनुष्य हैं, हमसे छोटी-मोटी गलतियाँ तो होते ही रहती हैं। परन्तु क्या उन गलतियों के अनुसार हमें सजा मिलती है? यदि इस बारे में हम सोचते हैं तो पता चलेगा कि साईनाथ कितने क्षमाशील हैं। हमारी हर गलती के लिए यदि वे हमें सज़ा देंगे तो हमारा क्या होगा? हर कोई अपने आप से यह प्रश्‍न पूछेगा तो उसका उत्तर उसे खुद ही मिल जायेगा।

उसमें भी मुझे केवल इस जन्म की गलतियाँ ही याद हैं और वह भी मुझे मेरी स्मरणशक्ति के अनुसार ही याद आ रही हैं। इस जन्म में याद न आने वालीं, लेकिन पिछले जन्मों में की गयी गलतियों का क्या? यह भी सोचिए कि मुझसे ग़लत हुआ है मग़र मुझे जो गलत ही नहीं लगा, उन ग़लतियों का क्या? मेरा निष्कर्ष मेरी अपनी धारणा पर ही निर्भर करता है। तो इसका मतलब यह है कि ऐसी कितनी सारी गलतियाँ होंगी, जिनके बारे में हमें पता भी नहीं चलता। इस प्रकार की कितनी सारी गलतियाँ होंगी?

अब हम बाबा के क्षमाशीलता को जान सकते हैं कि ये साई अनंत क्षमाशील हैं, सचमुच उनकी क्षमा भी अनंत ही है।

बाबा के द्वारा सदा से ही की जा रही इस क्षमा के लिए हम उन्हें चाहे कितना भी ‘थँक्स’ क्यों न कहें, वह कम ही है। हमसे होने वाली गलतियों की तुलना में हमारे प्रारब्धभोगों को देखा जाये तो हमारे क्लेशभोग बहुत ही सौम्य हैं। साथ ही उस भोग को भोगने का सामर्थ्य भी हमें साई ही देते हैं। ऊपर से उस भोग को भोगते समय हमारे विकास का अवसर भी वे ही प्रदान करते रहते हैं।

बाबा के इस क्षमादातृत्व के लिए, दयालुता के लिए उन्हें ‘थँक्स’ कहते समय जाने-अनजाने होनेवाली गलतियों के लिए उन्हें ‘सॉरी’ कहने में भी क्या हर्ज़ हैं? इस ‘सॉरी’ के लिए ‘साई, आय लव्ह यू’ कहिए। इस ‘सॉरी’ के कारण ही पुन: पुन: गलती न हो इसके प्रति सावधानता भी हमें वे ही देते हैं क्योंकि इस ‘सॉरी’ में ही सच्चा पश्‍चात्ताप होता है और इसीलिए परमात्मा साईनाथ की संधिनी शक्ति हमारे लिए हरिकृपा का द्वार खोल देती है। जब-जब गलती होती है तब उसी समय पहले बाबा को ‘सॉरी’ कहना चाहिए और पुन: वह गलती न दोहराने के लिए सतर्क रहना चाहिए। अपनी गलती को कबूल करके मन:पूर्वक ‘सॉरी’ कहना यह ‘थँक्स’ के पश्‍चात् अपने आप ही होनेवाली सहज क्रिया है।

परन्तु इस ‘सॉरी’ का अर्थ ऐसा बिलकुल भी नहीं मानना चाहिए कि आगे पुन: गलती करने के लिए अब हमारा रास्ता साफ़ है। ‘सॉरी’ एवं ‘थँक्स’ इन बहुत ही महत्त्वपूर्ण शब्दों को हमने अपने दैनिक जीवन में जहाँ जी चाहा वहाँ इसका उपयोग करके इन्हें बिलकुल हलका-फ़ुलका कर दिया है। परन्तु इन शब्दों में छिपे सच्चे भाव को पहचान कर भक्तिमार्ग में इसका उचित रूप में उपयोग करना चाहिए।

वैसे तो हम आम तौर पर भी अन्य लोगों को ‘सॉरी’ और ‘थँक्स’ कहना नहीं भूलते, सहज ही कहते रहते हैं। परन्तु जिस साईनाथ की क्षमा के कारण, करुणा के कारण हमारा जीवन सुंदर बना है, क्या उन्हें हम कभी ‘थँक्स’ कहते हैं? मेरे लिए निरंतर प्रयासरत रहने वाले साईनाथ के ऋणों का स्मरण क्या हम रखते हैं? क्या हमें इस बात का एहसास होता है कि बाबा की क्षमा के कारण मेरे प्रारब्धभोग सौम्य हुए हैं?

हेमाडपंत इस अध्याय के आरंभ में ही साईनाथ को ‘थँक्स’ कहकर हमारे उद्धार का बड़ा ही सहज एवं आसान मार्ग हमें दिखा रहे हैं। बाबा से बात करते रहें, उन्हें अपनी हर बात बताते रहें, अपनी होने वाली हर गलती के लिए मन:पूर्वक उनसे ‘सॉरी’ कहें और साथ ही उनके उस नि:स्वार्थ प्रेम के लिए, लाड़-दुलार के लिए, उनके हम पर होने वाले ऋणों का स्मरण कर उन्हें ‘थँक्स’ भी कहें।

‘यह साईसच्चरित हमें देकर साईनाथ, आप ही ने हमारे प्रेम-प्रवास को आसान एवं सुंदर बनाया है। यही कितना बड़ा ऋण है आपका बाबा हम पर! हे मेरे साई, थँक्स!’

Leave a Reply

Your email address will not be published.