श्रीसाईसच्चरित : अध्याय २ (भाग- ११)

सुनते ही हम हो जाते हैं सावधान।
अन्य सुख लगने लगते हैं तिनके के समान ।
भूख-प्यास का हो जाता है संशमन।
और संतुष्ट हो जाता है अन्तर्मन।

पिछले लेख में हमने देखा कि इस साईसच्चरित की कथाएँ हममें चार गुणों को प्रवाहित करती हैं।

१)सावधानता
२)आनंद
३)पूर्णत्व (अभाव का नाश, कमी का नाश)
४)संतुष्टि / समाधान

‘साईनाथ ही कर्ता हैं’

ये चारों गुण हर एक मनुष्य को स्वयं के जीवन विकास के लिए बेहद ज़रूरी होते हैं। इन चारों गुणों की प्राप्ति से ही हमें अपने प्रारब्ध के भोगों का नाश करने की ऊर्जा प्राप्त होती है। इन चारों गुणों के कारण ही हमारा गृहस्थाश्रम एवं परमार्थ दोनों एक ही समय में आनंददायी बन जाते हैं। इससे हम यह समझ सकते हैं कि ये कथायें अध्यात्मिक दृष्टि से जिस तरह महत्त्वपूर्ण हैं, उसी तरह गृहस्थाश्रमी मनुष्य को जीने के लिए आवश्यक रहनेवाली सामग्री भी प्रदान करने वाली हैं। इन कथाओं का प्रेमपूर्वक अध्ययन करने पर ये साईनाथ हमारे जीवन में ‘कर्ता’ बनकर प्रतिष्ठित होते हैं और साईनाथ के मेरे जीवन के ‘कर्ता’ बन जाने पर भला किस बात की ‘कमी’ हो सकती है? किसी भी चीज की नहीं।
ये कथाएँ जैसे-जैसे बारंबार पठन करने से, अध्ययन करने से गहराई तक उतरती चली जाती हैं, उसी प्रमाण में हमारे जीवन का ‘अहंभाव’ यानी ‘मैं’ कम होने लगता है और ‘साईनाथ ही कर्ता हैं’ यह भाव दृढ़ होने लगता है। यह कैसे होता है? इस साईनाथ की सभी कथाओं में समान सूत्र क्या है, सभी कथाओं का मूल उद्देश्य क्या है, इन कथाओं का मर्म क्या है, इन सभी बातों का विचार करने पर हमें इन प्रश्‍नों का उत्तर मिल जाता है।

इन सभी कथाओं में समान सूत्र एक ही है, मूल उद्देश्य एक ही है, मर्म भी एक ही है और वह मर्म है- ‘साईनाथ ही कर्ता हैं’! देखिए, हर एक कथा में भक्त विभिन्न प्रकार के होंगे, घटनाएँ भी भिन्न प्रकार की होंगी, उनकी समस्यायें भी भिन्न-भिन्न होंगी, उनके गुण-दोष भी विभिन्न होंगे, उन में कुछ उत्तम होंगे, कुछ मध्यम होंगे, तो कुछ सामान्य भक्त भी होंगे, परन्तु इन सभी कथाओं में उन भक्तों का जीवनविकास करने वाले, उन भक्तों को उनके संकटों से तारने वाले, उन भक्तों पर कृपा करने वाले ‘कर्ता’ एक ही हैं और वे हैं श्रीसाईनाथ!

सभी कथाओं में ‘कर्ता’ साईनाथ ही हैं और वे ही हर एक कथा में लीलाधारी बनकर लीला कर रहे हैं। हर एक भक्त को हर कथा में यही अनुभूति प्राप्त होती है। हर भक्त को इस बात का पूरा विश्‍वास हो जाता है कि मेरे जीवन में यह जो उचित, प्रगतिकारक, विकासकारक घटित हुआ है, वह केवल साईनाथ के ही कारण। ये मेरे बाबा ही सब कुछ करते हैं, वे ही ‘कर्ता’ बनकर जब से मेरे जीवन में क्रियाशील हो गये, तबसे मेरे जीवन में सुंदरता आ गयी।

हम जब प्रेमपूर्वक, श्रद्धा और सबूरी के साथ इस कथा का पठन करते हैं, इसका अध्ययन करते हैं, तब जाकर इन कथाओं के बारंबार पठन के कारण, स्मरण के कारण, चिंतन के कारण हमारे मन में बारंबार यही घुलते रहता है कि ‘कर्ता केवल ये ही हैं, एकमात्र साईनाथ ही हैं’। बाकी कुछ भी यदि हमारी समझ में नहीं भी आता है, तब भी यह एक बात तो हर किसी की सहज ही समझ में आ जाती है कि इस कथा के कर्ता नायक ये साईनाथ ही हैं। वैसे तो हम जैसे सामान्य मानवों का अहं छूटना यानी ‘मैं कर्ता हूँ’ यह अहंभाव छूटना इतना आसान नहीं होता और ‘राम ही कर्ता हैं’ यह दृढ़भाव मन में कैसे रखना है यह भी हमारे समझ में नहीं आता। इसी लिए हम जैसे सामान्य संसारी मनुष्यों के लिए श्रीसाईनाथ ने इन कथाओं का सहज, आसान, बिना किसी रुकावट वाला सुंदर राजमार्ग प्रदान किया है।

बाह्यमन से जब अन्तर्मन की ओर बारंबार एक ही बात भेजी जाती है, तब अन्तर्मन में वह बात अधिक से अधिक विशाल रूप धारण कर और भी अधिक दृढ़ हो जाती है, यह बात श्रीमद्पुरुषार्थ ग्रंथराज के पठन से हम जान ही चुके हैं। इसीलिए हमारे मन में ‘साईनाथ ही कर्ता हैं’ इस भाव को दृढ़ करने के लिए, व्यापक बनाने के लिए इन कथाओं को बारंबार बाह्यमन से अन्तर्मन के पास भेजते रहना चाहिए, जिससे ये कथाएँ हमारे अन्तर्मन में दृढ़ हो जायेंगी और ‘साईनाथ ही कर्ता हैं’ यह बात हमारे अन्तर्मन में मज़बूती के साथ हमारे मन में बैठ जायेगी। इसके साथ ही यह प्रक्रिया भी बड़े ही वेग के साथ अचूक रूप में होते रहेगी। क्योंकि इन कथाओं की रसात्मकता के कारण ही हमारा मन उसमें अपने-आप ही रम जाता है और मन की भी इन कथाओं के प्रति ‘रुचि’ बढ़ जाती है। इस तरह रसपूर्ण, साईप्रेम में स्निग्ध हुआ बाह्यमन इन कथाओं को और भी अधिक उत्साह के साथ, स्निग्धतापूर्वक रसात्मकता के साथ अन्तर्मन में भेजते रहता है और इससे अन्तर्मन भी रससंपन्न, पूर्णत: स्निग्ध बन जाता है। इन कथाओं के बारंबार श्रवण के कारण ही यह सब कुछ सहज रूप में घटित हो सकता है और ये कथाएँ अन्तर्मन में प्रवेश करते ही विशाल रूप धारण कर लेती हैं, तब स्वाभाविक ही है कि अन्तर्मन के हर हिस्से में ये साईनाथ ‘कर्ता’ बनकर सक्रिय हो जाते हैं। मन का रूपांतरण चित्त में हो जाता है और साईनाथ मेरे जीवन के सूत्र अपने हाथों में ले लेते हैं। और फ़िर ये सारी कथाएँ मेरे जीवन में घटित होने लगती हैं, अर्थात मेरे जीवन में साईसच्चरित प्रवाहित होने लगता है।

जब कभी मैं अमीर शक्कर की तरह बाबा की बात न मानकर, बाबा की आज्ञा का पालन न करते हुए गलत रास्ते पर जाने की कोशिश करता हूँ, बाबा से दूर जाने का अपराध करने लगते हैं तब बाबा ही लीलाधारी बनकर मुझे पुन: उचित मार्ग पर ले आते हैं, स्वयं ही अपनी छत्रछाया में ले लेते हैं।

जब मैं चोलकर की तरह साईचरणों में दृढ़बुद्धि रखने की मन्नत मानता हूँ, तब बाबा ही मुझे यश प्रदान कर मेरी मन्नत को पूरा करवा लेते ही हैं और ‘तसवीर के सामने कही जानेवाली हर बात को मैं सुनता ही हूँ, वह मुझे पता चलती ही है और मैं अपने भक्तों पर कृपा करता ही हूँ’, यह भी साईनाथ हमें दिखा देते हैं।

कभी मैं दामूअण्णा की तरह व्यापार के संदर्भ में साईबाबा से ही पार्टनरशिप की बात करता हूँ, तब भी बाबा उचित-अनुचित का बोध करते ही हैं और व्यापार में होने वाले नुकसान को टालकर मेरा लाभ ही करवाते हैं। कभी तर्खड बाई की तरह प्रेमपूर्वक मेरे द्वारा किए जाने वाले सत्कर्म का सबूत भी मुझे देते हैं।

ऋण, बैर, हत्या के इन जंजालो में फ़सकर यदि मैं मेंढ़क के समान क्षुद्र योनि में भी जन्म लेता हूँ, तब भी बाबा कुझे भूलते नहीं हैं और मेरी सुरक्षा हेतु दौड़े चले आते हैं। ऐसे इस करुणा के महासागर श्रीसाईनाथ की अनंत कथाएँ एवं अनंत लीलाएँ श्रीसाईसच्चरित में हैं।

इस साईसच्चरित का हर एक भक्त मानवी भाव-स्वभावों की छटाओं का निदर्शक है और ये सभी छटायें हर एक मनुष्य में कम-अधिक प्रमाण में होती ही हैं। इसीलिए उन भक्तों से होने वाली गलतियाँ मुझसे भी कभी ना कभी हो चुकी होती हैं और होती ही रहती हैं। उन भक्तों के मन में आने वाले विचार मेरे मन में भी आ चुके होते हैं तथा आते ही रहते हैं। उन भक्तों के जीवन में आने वाले प्रारब्ध भोग मेरे भी जीवन में आ चुके होते हैं और आते ही रहते हैं, उन भक्तों के समान ही मुझे भी अपने साईनाथ के प्रेम का, कृपावर्षाव का, भक्त परित्राण का, करुणा का, दया का, उनकी लीलाओं का अनुभव प्राप्त हो चुका होता है। इसीलिए इन कथाओं के साथ अपने-आप ही में जुड़ता चला जाता हूँ और मैं उस भक्त की भूमिका में प्रवेश करके उस कथा का अनुभव कब करने लगता हूँ यह मुझे भी पता नहीं चल पाता हैं।

इस तरह पूर्णत: समरस होकर जब इन कथाओं का मैं बारंबार पठन करने लगता हूँ, तब अपने-आप ही मेरा मन इस साईनाथ के मन के साथ प्रेमपूर्वक जुड़ जाता है और वह भी कभी भी विभक्त न होने के लिए। इन सभी कथाओं का सार मेरे जीवन में समाने लगता है और ‘साई ही कर्ता है’ इस भाव के साथ जीवन में अनुभव भी आने लगते हैं।

इसका अर्थ यह है कि पहले मुझे बाह्यमन से इन कथाओं को बारंबार अन्तर्मन में उतारना पड़ता है और एक बार यदि ये कथाएँ मेरे अन्तर्मन में विशाल रूप धारण कर लेती हैं तब साईनाथ ‘कर्ता’ बनकर मेरे जीवन में सक्रिय हो जाते हैं और श्रीसाईसच्चरित की कथाएँ अपने आप ही मेरे जीवन में घटित होने लगती हैं अर्थात इस साईसच्चरित के भक्तों को जिस प्रकार बाबा के अनुभव आए, वैसे ही मुझे भी आने लगते हैं। बाबा की लीलाओं से, बाबा की कृपा से मेरा जीवन अधिकाअधिक समृद्ध होने लगता है।

जैसे बिजली निर्माण करने के लिए सर्वप्रथम थोड़ी सी बिजली खर्च करनी पड़ती है, उसके पश्‍चात ही हम बड़े पैमाने पर बिजली प्राप्त कर पाते हैं। बिलकुल वैसे ही इन कथाओं को ‘सुनना’, बारंबार पठन करना, उन्हें याद करते रहना, उसका अध्ययन करना, दूसरों को बताना, चिंतन करना आदि बातों का, इतना ही नहीं इस पथ पर हमारे द्वारा किये गये परिश्रम का अचिन्त्य फल साईनाथ हमें देते हैं।

साईनाथ मेरे जीवन के कर्ता बनकर मेरा सारा बोझ स्वयं अपने सिर पर ले लेते हैं और इसके साथ ही वे मेरे जीवन का समग्र विकास करते हैं और वे मेरे लिए अविरत अनिरुद्ध गति से अपार, अथक प्रयास करते ही रहते हैं। केवल इस लिए ताकि मेरे जीवन में श्रीसाईसच्चरित प्रवाहित हो सके। बाबा अपने वचन का पालन करते ही हैं, मुझे केवल उठकर बैठने में थकना नहीं है, आलस नहीं करना है, बस इतनी ही मेहनत करनी हैं। और तब ही मैं बाबा के वचन का अनुभव कर सकता हूँ, इस में कोई शक नहीं!

साईनाथ का यह अभिवचन हम सब जानते ही हैं-
तुम्हारे भार का वहन करूँगा मैं सर्वथा।
नहीं है अन्यथा यह वचन मेरा॥

Leave a Reply

Your email address will not be published.