इन्शुलिन और निकोलाई पॉलेस्कू

मधुमेह (डायबीटीज्) की दवाइयों में संजीवनी साबित होनेवाला ‘इन्शुलिन’, जिसके कारण मधुमेह को नियंत्रण में रखने का जैसे मंत्र ही रोगी को मिल गया। इसके कारण मौखिक औषधों के प्रभाव से कम न होनेवाले मधुमेह पर इलाज करना मुमकीन हो गया। मधुमेह के मरीजों को ‘नॉर्मल’ जीवन जीने के लिए इन्शुलिन बहुत ही लाभदायी सिद्ध हुआ। इसके जनक निकोलाई पॉलेस्कू ने इस इन्शुलिन की खोज की। किन्तु इसके लिए नोबेल पुरस्कार दूसरे संशोधक को दिया गया, ऐसा कहा जाता है।

इन्शुलिन

निकोलाई पॉलेस्कू का जन्म सन् १८६९ में बुकारेस्ट में हुआ। पॅरिस में शिक्षा पूर्ण करनेवाले निकोलाई को रसायनशास्त्र और भौतिकशास्त्र में विशेष रुचि थी। इसकी चमक भी निकोलाई ने अपने शालेय जीवन में दिखाई थी। सन् १९०० में निकोलाई अपने रोम स्थित घर में वापस आ गए। इसके बाद लगातार १० वर्षों तक काम करके उन्होंने फिजिओलॉजिस्ट नाम प्राप्त किया।

अपने ३० वर्षों के संशोधन के कष्टमय जीवन में निकोलाई ने ९० स्कॉलर पेपर्स विभिन्न प्रकार के नियतकालिकों में प्रसिद्ध किया। किंतु इन सबमें इन्शुलिन यह निकोलाई का सबसे बड़ा और सबसे महत्त्वपूर्ण संशोधन साबित हुआ। रक्त में शक्कर की मात्रा नियंत्रित करनेवाले स्वादुपिंड के हार्मोन्स को विलग करने में निकोलाई सफल हुए। सन् १९१६ से निकोलाई ने इस क्षेत्र में संशोधन का कार्य शुरु किया। किंतु पहले महायुद्ध के कारण इस संशोधन में रुकावट आ गई।

इन्शुलिन

इसके बाद निकोलाई ने सन् १९२१ में हार्मोन एक्स्ट्रँक्ट की खोज को घोषित किया। इस समय निकोलाई ने इसे ‘पेनक्रेईन’ यह नाम दिया था। किंतु पूरे विश्‍व में इसे ‘इन्शुलिन’ के नाम से ही जाना जाता है। इस इन्शुलिन के प्रयोग की जाँच करने के लिए निकोलाई ने सर्वप्रथम यह प्रयोग मधुमेह से ग्रसित कुत्ते पर किया। यह प्रयोग सफल होने के बाद निकोलाई ने समाचार पत्र में इस संशोधन की जानकारी दी। किंतु इस समय भाषा की बहुत गड़बड़ थी, जिसके कारण निकोलाई का यह लेख योग्य अधिकारियों के पास तक नहीं पहुँच पाया।

किया गया भाषांतर बहुत ही कम दर्जे का होने के कारण निकोलाई का मूल हेतु और संशोधन ध्यान में आने में कठिनाई निर्माण हुई और इसी कारण निकोलाई के संशोधन को दुर्लक्षित कर दिया गया। इसके कारण निकोलाई के नोबेल पुरस्कार के बारे में अनेक वादग्रस्त घटनाएँ घटित हुईं। सन् १९२३ में इन्शुलिन के संशोधन के लिए नोबेल पुरस्कार अन्य संशोधक को दिया गया, जिसके विरोध में निकोलाई ने कोर्ट में केस की। और अनेक जगह पर इसके बारे में प्रचार किया।

इसके बाद निकोलाई के संशोधन की रचना की एक-एक गुटि सामने आते गई। किन्तु कुछ कालांतर के बाद निकोलाई को नोबेल पुरस्कार विभाजित रूप में दिया गया। निकोलाई के संशोधन का लेख फ्रेंच भाषा में होने के कारण वह ठीक से नहीं पढ़ा गया और उनका संशोधन दुर्लक्षित हो गया। किन्तु इसके बावजूद इन्शुलिन का संशोधन ज्यादा समय तक अंधकार में नहीं रहा। यदि निकोलाई का विभाग हुए नोबेल पुरस्कार में संतोष करना पड़ा। किन्तु इन्शुलिन का संशोधन कनिष्ठ दर्जे का साबित न होते हुए बहुत ही अनमोल साबित हुआ।

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