उत्तराखंड के चमोली में हाहाकार – ग्लेशियर टूटने से हुए जलप्रलय में बहुत बड़ी हानि

चिमोली – उत्तराखंड के चमोली मैं ग्लेशियर टूटकर हाहाकार मचा है। इस जल प्रलय में दो जलविद्युत परियोजनाओं के साथ ही चीन की सीमा तक पहुंचने के लिए लष्कर द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला पुल बह गया है। जल विद्युत परियोजना में काम करने वाले सवा सौ मजदूर लापता हैं। अब तक १० जनों के शव बरामद हुए हैं। धौलीगंगा, रिषी गंगा और अलकनंदा नदी के पानी का स्तर बढ़ा है। इससे ७ साल पहले उत्तराखंड में इसी प्रकार आई महाभयंकर बाढ़ की यादें ताजा हो गई हैं। इस आपत्ति में हुई जीवित और वित्त हानि का अभी अनुमान नहीं जताया गया है। लष्कर, वायुसेना, एनडीआरएफ के पथक बड़े पैमाने पर राहत कार्य में सहभागी हुए हैं।

uttarakhand-chamoliरविवार सुबह उत्तराखंड के जोशीमठ के नज़दीक नंदादेवी ग्लेशियर के बड़े हिस्से में दरार आई। यह ग्लेशियर टूट कर, प्रचंड रफ्तार के साथ जल प्रवाह पर्वत शिखर से बहते हुए आया। इस प्रचंड प्रवाह के मार्ग में आया सब कुछ बह गया। पानी की प्रचंड रफ्तार में एनटीपीसी का तपोवन-विष्णुगंगा जलविद्युत प्रोजेक्ट, तथा रिषी गंगा जलविद्युत प्रोजेक्ट भी बह गए। रिषी गंगा जलविद्युत प्रोजेक्ट का काम शुरू था। इस प्रोजेक्ट में काम करने वाले मजदूरों के घर भी इसी इलाके में थे। यह घर भी बह गए। बहुत सारे मजदूर भी लापता है। कुछ मजदूर एक टनेल में फँस चुके हो कर, इसमें कीचड़ भरा होने के कारण इन मजदूरों को बचाने में दिक्कत आ रही है। इन मजदूरों को छुड़ाने के लिए लष्कर, आयटीबीपी और एनडीआरएफ के जवान जान तोड़ कोशिश कर रहे हैं।

इस जल प्रलय में पहाड़ी के ढलान पर होने वाले कुछ गांवों में भी भयंकर हानि हुई होकर घर बह गए हैं। इसका विवरण अभी तक सामने नहीं आया है। इस इलाके की गंगा की उपनदियों का स्तर बढ़ा है। इस कारण तटवर्ती इलाके में इमर्जन्सी के हालात पैदा हुए हैं। ग्लेशियर टूटने की जानकारी मिलते ही उत्तराखंड सरकार ने तेजी से गतिविधियां करके नदियों के तटवर्ती गांवों को सावधानी का इशारा दिया और स्थानीय लोगों को ऊंचाई वाले भागों में आश्रय लेने की सूचना की। नदियों के नज़दीकी इलाके के गांवो में पहले ही राहत कार्य हाथ में लिया गया होकर, यहां विशेष हानि नहीं हुई ऐसा बताया जा रहा है।

सन २०१३ में उत्तराखंड में केदारनाथ के पास इसी प्रकार का प्रचंड जल प्रलय हुआ था और इसमें छः हज़ार लोगों की जानें गईं थीं। साथ ही नदी के तटवर्ती इलाकों के पाँच हज़ार गांवों में हाहाकार मचा था। लेकिन इस बार तेज़ी से की गई गतिविधियों के कारण बड़ी हानि टली है, ऐसा दावा किया जाता है। पानी की रफ्तार और स्तर कम हो चुका होकर, उसका खतरा टला है, ऐसा भी बताया जा रहा है।

इसी बीच, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस आपत्ति को लेकर शोक जताया है। वही इस आपत्ति के दौर में उत्तराखंड को हर संभव सहायता की जा रही है, ऐसा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शहा ने घोषित किया है।

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