एडवर्ड टेलर

आज तक दो विश्‍वयुद्धों में, साथ ही अन्य युद्धों में भी सारे स्तरों पर अपरिमित हानि ही हुई है, जीवन ध्वस्त ही हुए हैं। तीसरा विश्‍वयुद्ध यदि कभी होता है और उसमें अण्वस्त्रों का उपयोग किया जाता है तो ऐसे में संपूर्ण प्राणिजगत् का विनाश होना निश्‍चित है। विज्ञान तंत्रज्ञान की बहुत बडे प्रमाण में हो रही अत्यधिक प्रगति का मानवसमाज यदि विनाशकारी इस्तेमाल करता है तो उसके कारण चिंताजनक घटनाएँ, दुर्धर बिमारियाँ इनके बढ़ने की संभावना है। दूसरे विश्‍वयुद्ध के बाद के समय में रशिया का प्रभाव बढ़ रहा था। इस देश के पास रहनेवाले बम की अपेक्षा प्रभावी अस्त्र अमेरिका के पास होना चाहिए, ऐसा बड़े शास्त्रज्ञ और राजकर्ताओं का मत था। संशोधक एडवर्ड टेलर को यह जिम्मेदारी सौंप दी गयी और अमर्याद लालसा के कारण हायड्रोजन बम की निर्मिति हुई।

अमेरिका के विज्ञान तंत्रज्ञान की प्रगति में सबसे बड़ा हाथ हंगेरियन शास्त्रज्ञ का था। हंगेरी के बुड़ापेस्ट शहर में १५ जनवरी सन् १९०८ के दिन जन्में हुए एडर्वड टेलर को हायड्रोजन बम की खोज लगानेवाले संशोधक के रूप में पहचाना जाता है। उनके पिता व्यवसाय में वकील थे। शुरुआत में तीन वर्ष तक एडवर्ड बोल नहीं पाता था, इस वजह से वह कहीं मतिमंद तो नहीं है, ऐसा उसके माता-पिता मॅक्स टेलर और इलोना को लग रहा था। किंतु फिर वह अच्छी तरह से बोलने लगा, इतना ही नहीं, तो उसे गणित विषय में अच्छी प्रगति है, ऐसा उन्होंने महसूस किया। एडवर्ड को जब नींद नहीं आती थी तब एक वर्ष में कितने सेकंड होते हैं? इस प्रकार के प्रश्‍नों का उत्तर वो ढूँढ़ निकालता था। छह वर्ष की उम्र में वह सोलहवें वर्ष में करनेवाले मॅट्रिक के गणित का अभ्यास सहजता करता था। जब से उसने पढ़ना सीखा था, तब से ही उसे वाचन का व्यसन लग गया था। ज्यूल व्हर्न की पुस्तकें उन्हें एक अलग ही दुनिया में ले गई। विज्ञान की सहायता से मनुष्य क्या कर सकता है, उसी प्रकार से विज्ञान की प्रगति में मुझे भी सहभागी होना चाहिए, ऐसा उन्हें लगने लगा।

एडवर्ड टेलरएडवर्ड की माँ चाहती थी कि उनका बेटा पियोनिस्ट बने, एक अच्छे बुद्धिबल खिलाड़ी के रूप में उनका नाम था। पाठशाला में पढ़ते समय पियानो वादन में होशियार रहनेवाला एडवर्ड मात्र बुद्धि से विज्ञान में मग्न था। हंगेरी में उस समय कम्युनिस्ट लोगों की सत्ता थी। फिर एडवर्डने आगे का शिक्षण जर्मनी में लिया। उम्र के बाईसवें वर्ष में टेलर को सैद्धांतिक वास्तवशास्त्र में डॉक्टरेट की पदवी मिली (इ.स. १९३०)। विविध संशोधकों के साथ सहकार्य करते हुए अगले चार-पाँच वर्षों में उन्होंने एक ३२ शोध निबंध प्रसिद्ध किया।

हिटलर के सत्ता में आते ही टेलर जर्मनी से बाहर चल पड़े। १९३४ में वे कोपरहेगन में गए। रॉकफेलर फेलो के रूप में उन्हें वहाँ संशोधन का अवसर प्राप्त हुआ। इ.स. १९३५ में जॉर्ज गॅमॉब का निमंत्रण स्वीकार करके वे जॉर्ज वॉशिंग्टन विश्‍वविद्यालय में व्याख्याता के रूप में नियुक्त हुए। सूर्य के भीतर उत्पन्न होनेवाली ऊर्जा के मूलस्रोत की खोज करने के लिए गॅमाब ने ही एडवर्ड टेलर को प्रवृत्त किया। हायड्रोजन बम की खोज के लिए यही बात महत्त्वपूर्ण साबित हुई।

जॉर्ज वॉशिंग्टन विद्यापीठ में एक विद्वानों की सभा का आयोजन किया गया। सारे जगत् के सैध्दांतिक वास्तव विषय के शास्त्रज्ञ एक साथ इकठ्ठा हुए थे। एडवर्ड टेलर के मित्र झिलार्ड ने सन् १९३३ में कम से कम युरेनियम की सहायता से प्रचंड संहारक बम तैयार कर सकते हैं, ऐसा वैज्ञानिक स्तर पर विचार व्यक्त किया। सन् १९३९ में झिलार्ड ने टेलर को फोन द्वारा बताया कि यह बात प्रत्यक्ष में शक्य हो गई है। झिलार्ड ब्रिगर, एडवर्ड टेलर इन बुद्धिमान शास्त्रज्ञों ने मिलकर मॅनहटन प्रकल्प में काम किया। इस दौरान टेलर को हायड्रोजन बम के निर्मान की कल्पना सूझी। मॅनहटन प्रकल्प के संचालक रॉबर्ट जे. ओपेनहायमार (अणुबम का जनक के रूप में जिनका नाम लिया जाता है) के द्वारा आयोजित किए गए एक बैठक में अन्य अणुशास्त्रज्ञ के साथ एडवर्ड टेलर को भी बुलाया गया था। अणुबम के निर्माण के संबंध में एक योजना निश्‍चित की गई। टेलर के दिमाग में बसे हायड्रोजन बम पर चर्चा होने लगी और इस हायड्रोजन बम को ‘द सुपर’ नाम दिया गया। वहाँ के बोर्ड पर टेलर ने इस बम प्रक्रिया के बारे में शास्त्रीय जानकारी देते हुए उसके गणित की रचना बनाकर दिखायी। इस गणित के अनुसार यह देखा गया कि ‘द सुपर’ के विस्फोट में से इतनी प्रचंड ऊष्मा बाहर निकलेगी कि वातावरण की नायट्रोजन गैस जलकर पूरी पृथ्वी के नष्ट होने का खतरा निर्माण हो जाएगा। ओपनहायमार ने टेलर को रुकने को कहा।

इसके बाद टेलर शिकागो विद्यापीठ में संशोधन करने लगे। किंतु हायड्रोजन बम के निर्माण की कल्पना उन्हें चैन से बैठने नहीं दे रही थी। रशिया ने अगस्त १९४९ में अणुबम का स्फोट करवाया। ओपन हायमर के धोखा की सूचना देने के बावजूद बम निर्मिती की चर्चा को रोककर हायड्रोजन बम के निर्माण की आज्ञा दे दी गई। इसकी ज़िम्मेदारी एडवर्ड को सौंपी गई।

न्यूट्रॉन कणों का उपयोग करके युरेनियम या प्लुटेनिअम इन मूलद्रव्यों के अणुकेंद्र दुभंग (डिव्हाईड) कर सकते हैं। इसे अणुविच्छेदन ऐसा नाम दिया गया। अणुद्वारा ऊर्जा प्राप्त करने का यह एक प्रकार हुआ। उसके विरुद्ध प्रक्रिया करके भी प्रचंड ऊर्जा प्राप्त करना मुमकीन है। दो अणुकेंद्र के संयोग से एक नया अणु निर्माण हो सकता है। इस प्रक्रिया का नाम फ्युजन है। यही हायड्रोजन बम का मूल सूत्र है। हायड्रोजन बम में डयूटेरियम और ट्रिटिअम इन हायड्रोजन के दो प्रकारों का फ्युजन किया गया।

ड्यूटेरियम + ट्रिटिअम = हिलिसम + न्यूट्रॉन + १७.६ दस लाख इलेक्ट्रॉन व्होल्ट ऊर्जा नवंबर १९५२ में पॅसिफिक महासागर के मार्शल टापू पर यह स्फोट किया गया। इस बम का सांकेतिक नाम ‘माइक’ था। हिरोशिमा बम की तुलना में यह बम पाँच सौ गुणा अधिक सामर्थ्यशाली था। इस स्फोट के बाद साधारण तीन मील चौड़ा ऐसा प्रचंड बादल बना और जिस टापू पर यह विस्फोट किया गया था, उस टापू का नामोनिशान नक्शे से गायब हो गया। इ.स. १९५४ वर्ष में अमेरिका में फिर से तीन हायड्रोजन बम की परीक्षा की गई। किंतु ‘परमाणुसंगठन के द्वारा ऊर्जानिर्माण’ यह उनका स्वप्न उनके रहते हुए पूरा नहीं हो सका। उम्र के ९१वें वर्ष में अमेरिका में उनका निधन हो गया।

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