डॉ. होमी जहांगीर भाभा

तमिलनाडू के कुंडकुलम् नामक स्थान पर एक हजार मेगावॅट क्षमता की चार परमाणु केन्द्रों के निर्माण की घोषणा कुछ वर्ष पूर्व भारतीय अणुऊर्जा महामंडल के अध्यक्ष ने की। इन चार अणु केन्द्रों सहित कुल छह अणुऊर्जा प्रकल्प में से कुल १७ अणु केन्द्रों के कारण भारत के समक्ष रहनेवाली ऊर्जा से संबंधित अनेक समस्याओं का उपाय मिल जायेगा। भारत की प्रथम अणु केन्द्रों को (तारापूर) अभी-अभी ४० वर्ष पूर्ण हुए हैं। सच पूछा जाए तो इस क्षेत्र के एक महत्त्वपूर्ण ‘पाथ फांईडर’ के रूप में श्रेय दिया जाता है वैज्ञानिक डॉ. होमी भाभा को। डॉ. होमी जहांगीर भाभा का अणु एवं अवकाश संशोधन क्षेत्र में आन्तरराष्ट्रीय कीर्ति का नाम है।

अणुसंशोधन का साथ साथ अंतरिक्ष संशोधन का उपयोग शांततामय विकास कार्य के लिए किया जा सकता है, इसपर निष्ठा रखनेवाले वैज्ञानिकों में से होमी भाभा का नाम भी आता है।

होमी जहांगीर भाभा का जन्म मुंबई के एक सधन सुशिक्षित पारसी परिवार में हुआ। इस परिवार का डोराबजी टाटा, होमी के भाभा, सर दिनशॉ मानिकजी पेटीट (टेक्सटाइल मिल के मालिक) इन सभी सुप्रसिद्ध एवं महत्त्वपूणर्र् जानी-मानी हस्तियों के साथ मित्रतापूर्ण रिश्ता था।

मुंबई में महाविद्यालयीन शिक्षा पूर्ण कर भाभा ने केंब्रिज विश्‍वविद्यालय के ‘गॉनव्हिले अ‍ॅण्ड कायस’ इस विश्‍वविद्यालय में प्रवेश प्राप्त किया। १९३० में ‘मेकॅनिकल सायन्सेस ट्रॉयपॉस परीक्षा उत्तीर्ण की। १९३४ में उन्हें केंब्रिज महाविद्यालय से पी. एच. डी. उपाधि प्राप्त हुई। गणित एवं सैद्धांतिक विज्ञान (Principle of Physics) यह भाभा का पसंदीदा विषय था।

डॉ. होमी जहांगीर भाभा, संशोधन कार्य, भाभा हाइटलर सिध्दांत, TIFR, BARC, अणुऊर्जा विकास, मुंबई, बंगलुरुकॅवेंडिश प्रयोगशाला में अभ्यास के दौरान उनका अनेक संशोधकों के साथ परिचय हुआ। उसी समय जे. डी. क्रॉफ्ट, ई.टी.एस. वॉल्टर, जेम्स चॅडविक ये एक विश्‍वप्रसिद्ध अणुसंशोधन कर्ता अणुकेन्द्र के स्वरूप एवं प्रारूप इन विषयों पर चर्चा करते थे, महत्त्वपूर्ण संशोधन सिद्ध कर रहे थे। डॉ. भाभा ने झुरिच, रोम, कोपनहेगन नामक स्थानों के संशोधन केन्द्रों का दौरा किया, वहाँ पर निरीक्षण किया। इलेक्ट्रॉन एवं पॉझिट्रॉन (पॉझिट्रॉन अर्थात् इलेक्ट्रॉन जितना द्रव्यमान रहनेवाला परन्तु पॉझिटिव्ह विद्युत् भारयुक्त कण) कणों के एक-दूसरे के साथ टकरा जाने से तथा इससे उनके बिखरने से कितने क्षेत्रफल की दूरी तक परिणाम हो सकता है, इस संबंध में डॉ. भाभा का यह प्रथम संशोधन था। इस संशोधन को ‘डॉ. भाभा संशोधन’ इस नाम से जाना जाता है। सभी दिशाओं से अंतरिक्ष से पृथ्वी पर आनेवाली भेदक किरणों से संबंधित यह संशोधन ‘प्रपात प्रक्रिया’ के नाम से जाना जाता है। गॅमा किरणें कैसे मिलती हैं, इसका अध्ययन डॉ. भाभा ने अपने संशोधन में किया है, यह भी ज्ञात होता है।

उनके महत्त्वपूर्ण संशोधन कार्य में ‘भाभा हाइटलर सिध्दांत’ तथा येसॉन नामक मूल कण के अस्तित्व का संशोधन इनका समावेश है। १९४१ में लंडन की रॉयल सोसायटी ने उन्हें अपना सदस्यत्व देकर सम्मानित किया। आन्तरराष्ट्रीय स्तर पर इसे विशेष महत्त्व प्रदान किया जाता है।

संशोधक कार्य के पश्‍चात् द्वितीय महायुद्ध का आरंभ हो जाने से ये वैज्ञानिक अपनी मातृभूमि में लौट आये। उस समय के बंगलुरु के ‘इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ सायन्सेस्’ में नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. रामन के मार्गदर्शन में भौतिक विभाग का काम वे संभालने लगे। कुछ वर्षों पश्‍चात् डॉ. भाभा ने डॉ. जे. आर. डी. टाटा के सहकार्य में ‘टाटा इन्स्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च’ नामक संस्था मुंबई में स्थापित की। १९४८ में भारत सरकार ने अणुऊर्जा आयोग की स्थापना की और उसके प्रथम अध्यक्ष के रूप में डॉ. भाभा की नियुक्ति की गई। १९५४ में अणुऊर्जा विकास के लिए भारत सरकार ने एक स्वतंत्र मंडल की स्थापना की।

उसके प्रथम सचिव पद का भार भी डॉ. भाभा ने सँभाला था। इस अणुऊर्जा मंडल ने मुंबई में चेंबूर, देवनार विभाग में देश के प्रथम अणु संशोधन केन्द्र की निर्मिति डॉ. भाभा के नेतृत्व में की। रूस के बाद एशिया खंड के प्रथम अणु ऊर्जा संशोधन केन्द्र की शुरुआत की गई। १९६२ में ‘इंडियन नॅशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च’ के अंतरिक्ष संशोधन कार्यक्रमों के विवरण के लिए भी इनकी ही नियुक्ति की गई। १९५५ में जिनिव्हा में संयुक्त राष्ट्र के आधार पर आयोजित किए गए ‘अणु ऊर्जा के शांतिमय विकास कार्य हेतु इसका उपयोग’ इस परिसंवाद के डॉ. भाभा अध्यक्ष थे। केन्द्र सरकार को सलाह देनेवाली वैज्ञानिक सलाहगार समिति के १९६५ से ही वे अध्यक्ष थे।

भारत सरकार के पद्मभूषण सम्मान से लेकर अनगिनत राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तरों के बहुचर्चित सम्मान डॉ. भाभा को प्राप्त हुए हैं। भौतिक विज्ञान, गणित इनजैसे जटिल समझे जानेवाले विषयों के साथ साथ संगीत, वास्तुशिल्पकला, चित्रकला इन जैसे विविध कला गुणों से भी परिपूर्ण होनेवाले इस वैज्ञानिक का २४ जनवरी, १९६६ के दिन स्वित्झर्लंड में शिखर पर हुई विमान दुर्घटना में देहान्त हो गया। उनके पश्‍चात् १९६७ में चेंबूर-देवनार स्थित अणु संशोधन केन्द्र का ‘भाभा अणु संशोधन केन्द्र’ यह नामानिधान किया गया। बी. ए. आर. सी. इस नाम से आज पहचाने जानेवाला यह केन्द्र भारतीय अणु कार्यक्रमों का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

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