‘इंडो-पैसिफिक’ की संकल्पना एकाधिकार का विरोध करती है – भारत के विदेशमंत्री एस.जयशंकर

नई दिल्ली – ‘इंडे-पैसिफिक’ क्षेत्र की संकल्पना शीतयुद्ध के दौर की मानसिकता में फंसनेवाली नहीं है बल्कि यह संकल्पना मुठ्ठीभर देशों के एकाधिकार का विरोध करनेवाली है, यह बयान भारत के विदेशमंत्री एस.जयशंकर ने किया है। जर्मनी, फ्रान्स, नेदरलैण्ड जैसे यूरोपिय देश और आसियान के सदस्य देशों ने भी ‘इंडो-पैसिफिक’ की संकल्पना का समर्थन किया है और यह देश इसके लिए योगदान भी दे रहे हैं। भारत, अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया इन जनतांत्रिक देशों के संगठन ‘क्वाड’ से भी ‘इंडो-पैसिफिक’ की संकल्पना के लिए अहम योगदान प्राप्त होने की उम्मीद है, यह बात विदेशमंत्री जयशंकर ने स्पष्ट की।

एकाधिकार का विरोध

अमरीका ने अपनी सामरिक नीति में अहम बदलाव करके ‘इंडो-पैसिफिक’ कमांड का ऐलान किया था। जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो ऐबे ने इंडो-पैसिफिक की संकल्पना सबसे पहले पेश की और इसको ऑस्ट्रेलिया से समर्थन प्राप्त हुआ था। हिंद महासागर क्षेत्र से पैसिफिक महासागर के क्षेत्र का एकसाथ विचार करने की यह संकल्पना चीन को मंजूर नहीं है। यह हमारे खिलाफ साज़िश का हिस्सा होने की आपत्ति चीन जता रहा है। तभी इस काफी बड़े समुद्री क्षेत्र में चीन के वर्चस्ववाद के कारण बनी समस्या ‘इंडो-पैसिफिक’ की संकल्पना की वजह से अधिक तीव्रता से सामने आ रही है और इसी कारण चीन इसका विरोध कर रहा है, ऐसा कुछ विश्‍लेषकों का कहना है।

इस पृष्ठभूमि पर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के देशों के सहयोग की ओर चीन आशंका से देख रहा है। अमरीका शीतयुद्ध के दौर की मानसिकता से अपने खिलाफ इस क्षेत्र के देशों का संगठन खड़ा कर रहा है, यह आरोप चीन लगा रहा है। इसका भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया एवं आसियान देश समर्थन कर रहे हैं, यह आरोप भी चीन कर रहा है। लेकिन, विदेशमंत्री जयशंकर ने एक परीषद को वीडियो कान्फरन्सिंग के माध्यम से संबोधित करते समय इंडो-पैसिफिक की संकल्पना अधिक स्पष्टता के साथ रखी।

इंडो-पैसिफिक की संकल्पना कुछ लोगों का वर्चस्व नामंजूर करनेवाली एवं जनतंत्र और संवाद का पुरस्कार करनेवाली है, यह दावा भारतीय विदेशमंत्री ने किया। इस वजह से जर्मनी, फ्रान्स और नेदरलैण्ड जैसे यूरोपिय देशों ने इस संकल्पना का सहयोग करने के लिए उत्सुकता दिखाई है, यह बयान भी जयशंकर ने किया। साथ ही आसियान देश भी इस संकल्पना के लिए योगदान दे रहे हैं, यह बात साझा करके यह संकल्पना पारदर्शिता पर बनी है, यह दावा भी भारतीय विदेशमंत्री ने किया। लेकिन, चीन का एकाधिकार और वर्चस्ववाद को विरोध किए बगैर यह संकल्पना नहीं रहेगी, यह संकेत जयशंकर ने इस परिषद में किए भाषण के दौरान दिए हैं।

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