गलवान संघर्ष का एक साल पूरा होते समय चीन को आई ‘वुहान स्पिरीट’ की याद

गलवान संघर्षबीजिंग – गलवान में हुए संघर्ष को एक साल पूरा हो रहा है और इसी दौरान चीनी विश्‍लेषकों को ‘वुहान स्पिरीट’ की याद आई है। चीन के वुहान में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग की भेंट हुई थी। वर्ष २०१८ में हुई इस भेंट के दौरान दोनों नेताओं ने सीमा विवाद का समझदारी से हल निकालकर सहयोग बढ़ाने का निर्धार किया था। इसे ‘वुहान स्पिरीट’ कहा जाता है। लेकिन, गलवान के संघर्ष के बाद दोनों देशों की स्थिति में पूरी तरह से बदलाव आया है। भारत के रणनीतिकार एवं कुटनीतिज्ञ चीन की ओर काफी अलग नज़रिये से देखने लगे हैं, यह बात लियु झोंगी ने दर्ज़ की है।

‘रिसर्च सेंटर फॉर चायना-साउथ एशिया को-ऑपरेशन’ के महासंचालक लियु झोंगी ने ‘ग्लोबल टाईम्स’ में लेख लिखकर भारत-चीन संबंधों पर ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की है। लंदन में हुई ‘जी ७’ परिषद में चीन के खिलाफ काफी आक्रामक भूमिका अपनाई गई है। इस परिषद की शुरूआत होने से पहले ही इस बात का अनुमान होने से चीन ने भारत के सामने एक बार फिर से सहयोग और मित्रता का प्रस्ताव रखा था। लियु झोंगी के इस लेख में भी भारत को समझाने की काफी कोशिश की गई है।

बीते वर्ष १५ जून के दिन लद्दाख के ‘एलएसी’ पर स्थित गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं में संघर्ष हुआ। इस दौरान कर्नल संतोष बाबू समेत २० भारतीय सैनिक शहीद हुए थे। इसके बाद भारत में गुस्से की बड़ी लहर उठी और चीन के विरोध में काफी असंतोष निर्माण हुआ था। भारत की जनभावना का अनुमान लगाए बगैर चीन ने बाद में भी भारत को उकसाने का एवं धमकाने का सत्र जारी रखा। आज भी चीन की ऐसी हरकतें बंद नहीं हुई हैं। लेकिन, कोरोना की महामारी फैलानेवाले चीन पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा है और ऐसी स्थिति में चीन के विश्‍लेषकों ने ‘वुहान स्पिरीट’ की यादें ताज़ी करना आम बात साबित होती है।

गलवान की घाटी में हुए संघर्ष का असर दोनों देशों के संबंधों पर होने की बात लियु झोंगी ने स्वीकार की है। लेकिन, भारत इस स्थिति का लाभ उठाकर अपनी अर्थव्यवस्था से चीन को बाहर खदेड़ने की तैयारी जुटा रहा है, इस पर झोंगी ने बयान किया है। भारत ने अपनी ‘मेक इन इंडिया’ मुहिम को प्रोत्साहित करने के अवसर के तौर पर इस स्थिति को देखा। चीन को नुकसान पहुँचानेवाले निर्णयों के साथ भारत अपना भी नुकसान करा रहा है, यह उल्लेख भी झोंगी ने इस लेख में किया है।

इसी के साथ कोरोना की महामारी के दौरान अमरीका और चीन पहले जितने ताकतवर नहीं रहे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का उदय करने का यह अवसर जीवन में केवल एक बार ही मिलेगा इस सोच में भारत के रणनीतिकार होने का दावा झोंगी ने किया।

इस अवसर का लाभ उठाने के लिए भारत चीन को चुनौती देने की तैयारी जुटा रहा है। अपनी ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को गतिमान करके भारत चीन के विरोध में गतिविधियाँ करके इसके लिए अमरीका के साथ सहयोग बढ़ा रहा हैं, ऐसा अनुमान लियु झोंगी ने लगाया है। इसी दौरान भारत ने अमरीका से सहयोग बढ़ाने का रणनीतिक निर्णय किया हो, फिर भी अमरीका भारत से उम्मीद के अनुसार सहयोग नहीं करेगी, यह इशारा झोंग ने दिया है। इसके बजाय चीन भारत के लिए अधिक विश्‍वासार्ह विकल्प साबित होगा, इस तरह का हास्यकारक दावा झोंगी ने किया है।

झोंगी के इस लेख में भारत की हरकतें चुपचाप बर्दाश्‍त करनेवाला सहनशिल देश के तौर पर चीन की छवि पेश की गई है। असल में चीन की वर्चस्ववादी आक्रामक भूमिका की वजह से ही विश्‍वभर में असंतुलन निर्माण हुआ है और विश्‍व के सामने खड़ी हुई मोजूदा चुनौतियों में सबसे पहले चीन का ज़िक्र हो रहा है। इसी वजह से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के देशों ने चीन के खिलाफ मोर्चा बनाने का निर्णय करके अपनी सुरक्षा का प्रावधान किया है। फिलहाल अमरीका से फिलिपाईन्स तक के सभी देशों को चीन धमका रहा है। साथ ही चीन की शिकारी आर्थिक नीति और कर्ज के फंदे में फंसनेवाले हरएक देश को मुश्‍किल में ड़ाल रहे हैं।

ऐसी स्थिति में चीन भारत के सामने फिर एक बार मित्रता एवं सहयोग का प्रस्ताव रखकर आर्थिक स्तर के संबंध सुधारने के लिए आग्रह कर रहा है। लेकिन, ऐसा करते समय भी चीन भारत की बात स्वीकारने के लिए तैयार नहीं है। इस वजह से चीन ने कितनी भी तीव्रता से माँग की तब भी इस देश की सोच में होनेवाले ‘वुहान स्पिरीट’ को भारत का रिस्पान्स मिलने की बिल्कुल संभावना नहीं है।

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