परमहंस-११६

परमहंस-११६

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख एक बार रामकृष्णजी से मिलने आये एक बैरागी से उन्होंने – ‘तुम कैसे भक्ति करते हो’ ऐसा पूछा। उसपर उसने – ‘मैं केवल नामस्मरण करता हूँ, क्योंकि हमारे शास्त्रों द्वारा कलियुग में ईश्‍वरप्राप्ति का वही प्रमुख साधन बताया गया है’ यह जवाब दिया। ‘सच कहा तुमने’ रामकृष्णजी ने कहा, ‘लेकिन […]

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परमहंस-११५

परमहंस-११५

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख ईश्‍वरप्राप्ति के लिए श्रद्धावान को चाहिए कि वह शांत, दास्य, सख्य, वात्सल्य, मधुर आदि भावों से ईश्‍वर को देखना सीखें; इन भावों की उत्कटता को बढ़ाएँ। ‘शांत’ भाव – ईश्‍वरप्राप्ति के लिए तपस्या करनेवाले हमारे प्राचीन ऋषि ईश्‍वर के प्रति शांत, निष्काम भाव रखते थे। वे किसी भौतिक सुखोपभोगों के […]

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परमहंस-११४

परमहंस-११४

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख रामकृष्णजी यह कभी नहीं चाहते थे कि उनके शिष्यगण सूखे ज्ञानी – क़िताबी क़ीड़ें बनें। इस कारण – महज़ धार्मिक ग्रंथों के एक के बाद एक पाठ करने की अपेक्षा, उन ग्रन्थों में जो प्रतिपादित किया है उसे जीवन में, अपनी दिनचर्या में उतारने के प्रयास वे करें, ऐसा रामकृष्णजी […]

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परमहंस-११३

परमहंस-११३

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीखसद्गुरुतत्त्व की, उस ईश्‍वरी तत्त्व की करनी अगाध होती है, कई बार वह अतर्क्य, विपरित प्रतीत हो सकती है। इसलिए उसका अर्थ लगाने के पीछे मत पड़ जाना, यह बात अंकित करने के लिए रामकृष्णजी ने एकत्रित शिष्यगणों को एक कथा सुनायी – ‘एक मनुष्य घने जंगल में जाकर नित्यनियमपूर्वक कालीमाता […]

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परमहंस-११२

परमहंस-११२

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख हालाँकि दया, करुणा ये रामकृष्णजी के स्वभावविशेष थे और जनसामान्यों के प्रति उनके दिल में अनुकंपा भरभरकर बह रही थी, लेकिन उनके पास आनेवाले लोग जब ईश्‍वर को न मानते हुए ‘समाजसेवा’, ‘दीनदुर्बलों की सेवा ही असली धर्म है’ आदि बातें करने लगते थे, तब वे खौल उठते थे; फिर […]

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परमहंस-१११

परमहंस-१११

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख रामकृष्णजी की ख्याति सुनकर दक्षिणेश्‍वर आनेवाले जनसामान्य उन्हें देखकर तो मंत्रमुग्ध हो ही जाते थे; लेकिन उनमें से कुछ लोग, जिन्हें रामकृष्णजी के साथ थोड़ा अधिक समय बीताने का अवसर मिल जाता था, वे एक और बात से आश्‍चर्यचकित होते थे – ‘इतने महान योगी, ‘परमहंस’ के रूप में सर्वत्र […]

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परमहंस-११०

परमहंस-११०

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख एक बार रामकृष्णजी से मिलने कुछ व्यापारी लोग आये थे। वे रामकृष्णजी के लिए फल, क़ीमती मिठाइयाँ आदि चीज़ें ले आये थे। लेकिन रामकृष्णजी ने उनमें से किसी चीज़ को नहीं खाया। कुछ देर बाद उन व्यापारियों के चले जाने के बाद रामकृष्ण ने अपने शिष्यों से कहा कि ‘ये […]

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परमहंस-१०९

परमहंस-१०९

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख सांसारिक इन्सानों को होनेवाली भौतिक बातों की आसक्ति के बारे में बात करते हुए रामकृष्णजी ने निम्न आशय का विवेचन किया – ‘जिस तरह कोई साप किसी बड़े चूहे को निगलना चाहता है। लेकिन वह चूहा उसके जबड़े में जाने के बाद, वह साँप उस चूहे के बड़े आकार के […]

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परमहंस-१०८

परमहंस-१०८

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख आध्यात्मिक दृष्टिकोण से इन्सान प्रायः चार प्रकार के होते हैं – १) हमेशा गृहस्थी में ही आकंठ डुबे हुए और उसके अलावा और कोई भी सोच न होनेवाले; २) मोक्ष की आकांक्षा रखनेवाले; ३) इस सांसारिक आसक्ति से मुक्त हो चुके; और ४) नित्य जीवन्मुक्त। इस बात को स्पष्ट करते […]

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परमहंस-१०७

परमहंस-१०७

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख जब एक भक्त ने ऐसा सवाल पूछा कि ‘सभी में ईश्‍वर हैं, फिर यदि कोई मनुष्य किसी भक्तिमार्ग चलनेवाले श्रद्धावान के साथ बुरा बर्ताव कर रहा है, तो फिर वह श्रद्धावान क्या करें’; तब, श्रद्धावानों को इस व्यवहारिक दुनिया में जीते समय, दुनिया के बुरे लोगों से खुद की रक्षा करते […]

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