एशिया-पैसिफिक के व्यापारी समझौते में ब्रिटेन शामिल होगा

लंदन – ब्रिटेन ने एशिया-पैसिफिक क्षेत्र की ११ प्रमुख देशों का समावेश वाले ‘कॉम्प्रिहेन्सिव ऐण्ड प्रोग्रेसिव ऐग्रीमेंट फॉर ट्रान्स पैसिफिक पार्टनरशिप’ (सीपीटीपीपी) में शामिल होने का ऐलान किया है। यूरोपियन महासंघ से ब्रिटेन के बाहर होने की घटना का एक वर्ष पूरा हो रहा है तभी किया गया यह ऐलान ध्यान आकर्षित कर रहा है। यह ऐलान करने से पहले शुक्रवार को एक जागतिक परिषद में ब्रिटेन के व्यापारमंत्री ने ऐसा गंभीर आरोप किया था कि, चीन ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था की विश्‍वासर्हता खोखली कर दी है।

britain-asia-pacificब्रिटेन आर्थिक संपन्नता के लिए तेज़ कदम उठा रहा है, यह दावा करके व्यापारमंत्री लिज़ ट्रुस ने ‘सीपीटीपीपी’ में शामिल होने की जानकारी प्रदान की। सोमवार के दिन ब्रिटेन के व्यापारमंत्री ‘सीपीटीपीपी’ के संस्थापक सदस्य देश रहे जापान और न्यूज़ीलैण्ड के व्यापारमंत्रियों से बातचीत करेंगे। इस चर्चा के दौरान ब्रिटेन के समावेश का अधिकृत प्रस्ताव रखा जाएगा, ऐसा ट्रुस ने कहा। ‘सीपीटीपीपी’ के माध्यम से ब्रिटेन को विश्‍व की सबसे तेज़ गति से बढ़ रही अर्थव्यवस्था और गतिशील आर्थिक क्षेत्र में शामिल होने का अवसर मिलेगा, ऐसा दावा भी उन्होंने किया।

वर्ष २०१६ में अमरीका और जापान के साथ १२ प्रमुख देशों ने ‘ट्रान्स पैसिफिक पार्टनरशिप’ के व्यापक व्यापारी समझौते का प्रस्ताव पेश किया था। चीन के बढ़ते वर्चस्व को चुनौती देना ही इसके पीछे प्रमुख उद्देश्‍य होने की बात कही जाती है। लेकिन, अमरीका के पूर्व राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प ने वर्ष २०१७ में इससे बाहर होने का ऐलान करने से यह समझौता खत्म होगा, यह समझा जा रहा था। लेकिन, इसके बाद ‘ट्रान्स पैसिफिक पार्टनरशिप’ का हिस्सा होनेवाले अन्य ११ सदस्य देशों ने यह समझौता आगे भी कायम रखने के लिए पहल की और इसी से ‘कॉम्प्रिहेन्सिव ऐण्ड प्रोग्रेसिव ऐग्रीमेंट फॉर ट्रान्स पैसिफिक पार्टनरशिप’ को आकार प्राप्त हुआ था। ५० करोड़ से अधिक जनसंख्या और १३.५ ट्रिलियन डॉलर्स ‘जीडीपी’ वाले देशों के बाज़ार वाला यह समझौता विश्‍व के चार सबसे बड़े व्यापारी समझौतों में से एक के तौर पर जाना जाता हैं।

britain-asia-pacific‘सीपीटीपीपी’ में कनाड़ा, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैण्ड, सिंगापुर, वियतनाम, मलेशिया, चिली, मैक्सिको, पेरू और ब्रुनेई का समावेश है। विश्‍व में तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था वाला जापान और सबसे तेज़ गति से बढ़ रही अर्थव्यवस्था के तौर पर उभरा वियतनाम का समावेश इस समझौते की विशेषता समझी जाती है। ब्रिटेन ने इसमें शामिल होने का निर्णय ‘ब्रेक्ज़िट’ के बाद ब्रिटेन ने अपनाई स्वतंत्र और आक्रामक नीति का हिस्सा समझा जा रहा है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन ने यूरोपिय महासंघ से बाहर होते समय ‘ग्लोबल ब्रिटेन’ का ऐलान किया था। इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ब्रिटेन का स्थान अधिक मज़बूत करने का प्रमुख उद्देश्‍य है और ‘सीपीटीपीपी’ में शामिल होना इसी का हिस्सा साबित होता है।

इसके साथ ही ब्रिटेन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की हरकतों के खिलाफ भी आक्रामक भूमिका अपनाई हैं और व्यापक मोर्चा तैयार करने की दिशा में कोशिश कर रहा है। ब्रिटेन ने स्वतंत्र ‘इंडो-पैसिफिक’ नीति के भी संकेत दिए हैं और इस क्षेत्र में जारी चीन की गतिविधियों पर फटकार भी लगाई है। ‘सीपीटीपीपी’ में शामिल होने का ऐलान करने से पहले ‘वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम’ की बैठक में भी ब्रिटेन के व्यापारमंत्री ने चीन पर आलोचना की। ‘चीन की हुकूमत तकनीक का हस्तांतरण करने के लिए बना रही दबाव, सरकारी उपक्रमों को दिया जा रहा अनुदान एवं बौद्धिक संपदा का उल्लंघन करने जैसी घटनाओं के कारण अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था की विश्‍वासार्हता को बड़ा झटका लगा है’, ऐसा आरोप ट्रुस ने किया।

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