वैश्‍विक अर्थव्यवस्था पर दुबारा आर्थिक संकट का खतरा – ‘वर्ल्ड बैंक’ की चेतावनी

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वॉशिंगटन – अंतरराष्ट्रीय व्यापार में निर्माण हुए तनाव, घट रहे निवेश, प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती तीव्रता और कर्ज के बढ़ते बोझ के कारण अर्थव्यवस्था पर बने दबाव की वजह से जागतिक अर्थव्यवस्था पर नए संकट के बादल छाने की चेतावनी ‘वर्ल्ड बैंक’ ने दी हैं| २०१९ और २०२० ऐसे लगातार दो वर्ष जागतिक अर्थव्यवस्था का विकास दर घटने का भी ‘वर्ल्ड बैंक’ के नए रिपोर्ट में सूचित किया गया हैं|

वर्ष २०१८ की शुरुआत को जागतिक अर्थवव्यवस्था में जबरदस्त वृद्धि का वातावरण निर्माण हो गया था| परंतु बाद के अवधि में वृद्धि की गति कम हो गई थीं| नए साल में जागतिक अर्थव्यवस्था की वृद्धि में रुकावटों की संख्या अधिक ही बढ़ने की संभावना हैं| विकासशील तथा उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक तथा वित्तीय क्षेत्र में बड़ी उथल-पुथल होने की संभावना है, ऐसे शब्दों में ‘वर्ल्ड बैंक’ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने संभावित आर्थिक संकट की ओर ध्यान आकर्षित किया हैं|

‘वर्ल्ड बैंक’ ने नए साल में ‘ग्लोबल इकोनामिक प्रोस्पेक्टस्’ नाम से रिपोर्ट प्रसिद्ध किया हैं| इस रिपोर्ट में ‘स्टॉर्म क्लाउडस् ग्रोइंग फॉर द ग्लोबल इकोनामी’ नाम से स्वतंत्र प्रकरण होते हुए आने वाले आर्थिक संकट का मुआयना किया गया हैं| लेख के शुरुआत में ही जागतिक अर्थव्यवस्था का भविष्य संकट में होने के संकेत देते हुए इस संकट के लिए जिम्मेदार साबित होने वाले घटकों की जानकारी दी गई हैं|

इनमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमरिका और चीन में शुरू होने वाले व्यापार युद्ध का उल्लेख करते हुए उसके कारण व्यापार में तनाव बढ़ने का सूचित किया गया हैं| इस व्यापार में होने वाले तनाव का परिणाम निवेश पर भी होने से उसकी चोट विकासशील तथा उभरती अर्थव्यवस्थाओं को लगनी शुरू हो गई हैं| साल २०१९ में इन अर्थव्यवस्थाओं में विकास दर घटते हुए वे लगभग ४.२ प्रतिशत रहने के संकेत ‘वर्ल्ड बैंक’ ने दिए हैं|

इसका परिणाम जागतिक अर्थव्यवस्था पर भी होते हुए २०१९ तथा २०२० से लगातार दो वर्ष तक विकास दर में गिरावट होने की संभावना हैं| साल २०१९ में जागतिक अर्थव्यवस्था का विकास दर २.९ प्रतिशत तो साल २०२० में २.८ प्रतिशत रहने की भविष्यवाणी रिपोर्ट में कथित की गई हैं|

व्यापार में होने वाले तनाव के साथ ही ऋणों का बढ़ता हुआ बोझ जागतिक अर्थव्यवस्था के लिए खतरे के संकेत साबित होने की बात ‘वर्ल्ड बैंक’ ने स्पष्ट की हैं| पिछले कुछ वर्षों में विश्व के कई विकसित देशों ने भारी मात्रा में ऋण लेने का सामने आया है| इस कारण एक ओर विकास परियोजनाओं को गति मिली तो दुसरी ओर उससे अर्थव्यवस्था पर ऋणों का बोझ बहुत बड़ी मात्रा में बढ़ गया है| पिछले चार वर्षों में कम उत्पन्न होने वाले देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर ऋणों की मात्रा ‘जीडीपी’ के ५० प्रतिशत तक जा पहुंचने की गहरी चिंता ‘वर्ल्ड बैंक’ ने व्यक्त की हैं|

पिछले वर्ष ‘अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष’ ने भी जागतिक व्यवस्था पर ऋणों का बोझ १८४ ट्रिलियन डॉलर्स के उपर (१८४ लाख करोड़ डॉलर्स) जाने की चेतावनी दी थीं| उसमें विश्व की अधिकांश उभरती अर्थ व्यवस्थाओं में ऋणों की मात्रा ‘जीडीपी’ की तुलना में ७० प्रतिशत के ऊपर जाने की बात की ओर ध्यान आकर्षित किया गया था|

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