विक्रमसिंघे का श्रीलंका के राष्ट्रपति के रूप में चयन

कोलंबो – अस्थायी राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार सँभाल रहे रानिल विक्रमसिंघे का ही श्रीलंका के नये राष्ट्रपति के तौर पर चयन हुआ। बुधवार को श्रीलंका की संसद में संपन्न हुए मतदान में विक्रमसिंघे को 134 वोट्स मिले। ‘हमारा देश नहुत ही मुश्किल हालातों से गुज़र रहा होकर, हमारे सामने संगीन चुनौतियाँ खड़ी हुईं हैं। उनका मुक़ाबला करने को मैं सर्वोच्च प्राथमिकता दूँगा’, इन शब्दों में राष्ट्रपति विक्रमसिंघे ने अपनी भूमिका रखी।

विक्रमसिंघेश्रीलंका की परिस्थिति अभी भी पूरी तरह नियंत्रण में नहीं आयी है। फॉरेन रिज़र्व्ज़ की किल्लत और कर्ज़े का भारीभरकम बोझ, इनके कारण श्रीलंका की अर्थव्यवस्था संकट में फँसी है। उसपर नियंत्रण पाने में राजपक्षे सरकार को असफलता मिलने के कारण जनता में तीव्र असंतोष पैदा हुआ। उसका रूपांतरण देशव्यापी प्रदर्शनों में होकर, प्रचंड हिंसाचार भड़क उठा। श्रीलंका में बनी यह अराजकसदृश परिस्थिति नियंत्रण में लाने की सरकार की कोशिशें नाक़ाम हुईं। इस वजह से प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे एवं राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को मजबूरन् इस्तीफ़ा देना पड़ा था।

राजपक्षे के इस्तीफ़े के बाद विक्रमसिंघे ने, पहले प्रधानमंत्री के रूप में और फिर अस्थायी राष्ट्रपति के रूप में कामकाज़ सँभाला। अब श्रीलंका की राजनीति में कुछ दशक बिताये हुए अनुभवी नेता होने के कारण रानिल विक्रमसिंघे के हाथ में राष्ट्रपतिपद की बाग़ड़ोर सौंपी गयी है। श्रीलंका में कुछ लोगों ने उनकी नियुक्ति पर सन्तोष ज़ाहिर किया। लेकिन विक्रमसिंघे को राजपक्षे की पार्टी का समर्थन प्राप्त होकर, यह बात प्रदर्शनकारियों को रास नहीं आयी दिख रही है। इसी कारण प्रदर्शनकारियों के कुछ गुटों ने इसके बाद भी अपने प्रदर्शन जारी रखने की घोषणा की है।

इसी बीच, रानिल विक्रमसिंघे का राष्ट्रपतिपद पर चयन होने के पीछे भारत का हाथ होने के दावे किये जा रहे थे। लेकिन श्रीलंका स्थित भारतीय उच्चायुक्तालय ने ये दावे ठुकराये हैं। भारत दूसरे देश के मामलों में और जनतंत्र की प्रक्रिया में दख़लअन्दाज़ी नहीं करता, ऐसा खुलासा भारत के उच्चायुक्तालय ने किया। उसी समय, श्रीलंका की स्थिरता के लिए और यह देश पूर्ववत होने के लिए भारत हर संभव सहायता करेगा, ऐसा आश्वासन भारत के उच्चायुक्तालय ने दिया है।

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